सादाबाद। अग्नि, जल, आकाश, वायु इन पांच तत्वों से मिलकर बना है मिट्टी का दीया, जिससे रोशन होती है हमारी दीपावली। वक्त बदला, तकनीक बदली, लेकिन देशी दीये की चमक आज भी फीकी नहीं हुई है। दीपावली का पर्व जैसे जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे वैसे सादाबाद में कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। समाज के लोग पूरे परिवार सहित दिन रात मिट्टी के दिये, देवता और बर्तन बनाने में जुटे हुए हैं। उनको उम्मीद है कि इस बार लोगों के घर आंगन मिट्टी के दीपकों से रोशन होंगे, मिट्टी से बने लक्ष्मी- गणेश का पूजन होगा और उनका पुश्तैनी कारोबार फिर से पटरी पर लौटेगा।
गौरतलब हो कि इस बार दीपावली 12-13 नवंबर को मनाई जाएगी, ऐसे में चाक पर मिट्टी के दीपक बनाने और विभिन्न तरह के सांचे के जरिए लक्ष्मी गणेश व अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां तैयार करने का काम जोरों पर है। मिट्टी के दीयों की बढ़ती मांग से कुम्हारों के हाथ तेजी से चाक पर चल रहे हैं। बिसावर में पैंठ बाजार के पास स्थित मौहल्ले और सादाबाद में सहपऊ रोड पर बसे गांव नगला केसरी में कुम्हार समाज के कई परिवार निवास करते हैं। यह परिवार कई दशकों से इस हस्तकला के जरिए अपनी आजीविका चला रहे हैं।
20 से अधिक परिवार जुड़े हैं कारोबार से
सादाबाद और बिसावर के करीब 20 से अधिक परिवार इस हस्तकला कारोबार से जुड़े हुए हैं। इन परिवारों में बड़े बुर्जुर्गों से लेकर बच्चे, महिलाएं सभी दिन रात दीपक, मूर्तियों को तैयार करके इन्हें पैक करने के काम में जुटे हुए हैं। बदलते ट्रेंड के साथ लोग डिजायनर दीये खूब पसंद किए जा रहे हैं। रंग बिरंगी झालरों व मोमबत्तियों के बीच दीपक आज भी लोगों के बीच अपनी उपयोगिता बनाए हुए हैं। कारीगरों के मुताबिक, इस बार 20 लाख से अधिक का कारोबार होने की उम्मीद है।
इलेक्ट्रिक चाक और सांचे से मिली काम को रफ्तार
कुम्हार समाज की ओर से मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए उपयोग में लिए जाने वाला चाक बड़ी मेहनत से पत्थर के कारीगरों की ओर से तैयार किया जाता है। इस पर सारे मिट्टी के बर्तन बनते हैं। कुछ लोगों के पास सरकार द्वारा दिया गया इलेक्ट्रिक चाक भी हैं और मूर्ति तैयार करने वाले संाचे भी, जिसमें मेहनत कम लगती है। इलेक्ट्रिक चाक पर सभी मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं। चाक पर अंगुलियों घुमाते ही दीपक, मटका, घड़ा, करवा, गुल्लक सहित कई अन्य तरह के बर्तन तैयार हो जाते हैं। कुल मिलाकर इलेक्ट्रिक चाक ने रफ्तार को बढ़ा दिया है। इसकी मदद से एक दिन में दोगुने से तीन गुने दीपक बनकर तैयार हो रहे हैं। वहीं सांचों में मिट्टी भरकर अलग अलग देवताओं की मूर्तियां तैयार की जा रही हैं।
इको फ्रेंडली होते हैं मिट्टी के दीपक, मूर्तियां
मिट्टी से निर्मित मूर्तियां, दीए व बर्तन पूरी तरह से इको फ्रेंडली होते हैं। इनकी बनाबट रंगाई व पकाने में किसी भी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता है। इको फ्रेंडली दीए पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। अब लोग फिर से चायनीज को छोड़ भारत में ही बने सामानों की ओर रूख कर रहे हैं।