मलेरिया मच्छर की जनसंख्या को कम करने पर शोध

ट्रांसफेरिन प्रोटीन निकाला तो 4 गुना कम दिए अंडे, ओलीगोमर वैक्सीन बढ़ाएगी प्लांट्स की इम्यूनिटी

Update: 2023-12-02 20:09 GMT

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में बीते शुक्रवार से एसोसिएशन ऑफ माइक्रोब्स ऑफ इंडिया की 64वीं अंतरराष्ट्रीय कान्फ्रेंस शुरू हो गई। इसमें 100 से अधिक वैज्ञानिक अपने नए शोद्य पेपर पेश कर रहे हैं। हिसार की गुरु जंबेश्वरी विश्वविद्यालय की डॉ. ज्योति रानी ने मलेरिया मच्छर की जनसंख्या को कम करने के ऊपर शोद्य किया है। उन्हें कॉन्फ्रेंस में युवा वैज्ञानिक के अवार्ड से नवाजा गया। डॉ. ज्योति का कहना है कि, मलेरिया फैलाने वाले मच्छर के कोशिका (सेल) में ट्रांसफेरिन नामक प्रोटीन होता है। ये उन्हें रोगों से लड़ने की क्षमता देता है। आयरन को ट्रांसपोर्ट करके अंडा बनाने में मदद करता है। जब हमने ट्रांसफेरिन प्रोटीन को मच्छर के डीएनए से निकाल दिया तो बॉडी में अंडा बनाने की क्षमता बहुत कम हो गई। या यूं कहें कि ट्रांसफेरिन प्रोटीन निकाल देने से मादा मच्छर ने 4 से 5 गुना कम अंडे दिए। साथ ही मच्छर की रोगों से लड़ने की क्षमता भी कम हो गई और उसकी लाइफ साइकिल छोटी हो गई। हमारा टारगेट मच्छर की जनसंख्या को कम करना है। हम इस रिसर्च से मच्छर की जनसंख्या को कंट्रोल कर पाएंगे।

झींगा और मशरूम से बनाई वैक्सीन

हैदराबाद के केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अप्पा राव ने शोद्य कर प्लांट्स के लिए काइटिन ओलिगोमर वैक्सीन बनाई है। ये वैक्सीन बिल्कुल कोरोना वैक्सीन की तरह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा देती है। इससे प्लांट्स रोगों से लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।प्रो. राव बताते हैं कि ये वैक्सीन मशरूम, झींगा में पाए जाने वाले काइटिन से तैयार की गई है। सबसे पहले हमने काइटिन को छोटा-छोटा करके सूक्ष्मजीवी का उपयोग करके ओलिगोमर वैक्सीन बनाई। आज कल सब्जी, फसल और अन्य प्लांट में केमिकल यूज किए जा रहे हैं। जो सेहत के लिए बहुत ही नुकसानदायक होते हैं।लेकिन ये वैक्सीन बिल्कुल भी नुकसानदायक नहीं है। जब प्लांट्स को रोग लगने का अंदेशा हो तो स्प्रे के जरिए वैक्सीन प्लांट्स को दे दीजिए। इसके बाद प्लांट्स खुद की ताकत से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाके रोगों को पनपे नहीं देती है। वैक्सीन का असर चार सप्ताह तक रहता है।

बिफीडो बैक्टेरिया के सेवन से मिटेंगी पेट की बीमारी

सेंट्रल फूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च के चीफ साइंटिस्ट डॉ. प्रकाश हलामी बताते हैं कि प्रोबायोटिक्स बैक्टीरिया खाने से हमारी उम्र बढ़ती है। क्योंकि ये बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मारते हैं। इससे हमारी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। हम इस पर 15 साल से शोद्य कर रहे हैं। इसमें हमने काफी प्रोबायोटिक्स बैक्टीरिया दही और सब्जियों से निकाले हैं। साथ ही छोटे बेबी के फेसिस से निकाले हैं। छोटे बच्चे में बिफीडो बैक्टीरिया ज्यादा होता है। ये हमारी हेल्थ के लिए बहुत अच्छा होता है। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है तो बिफीडो बैक्टीरिया कम होते चले जाते हैं। इससे पेट की बीमारियां बढ़ने लगती हैं। हमने शोद्य कर बिफीडो बैक्टीरिया के उत्पाद तैयार किए हैं। इसे दही, सब्जियों, डेयरी उत्पाद में उपयोग कर सकते हैं। इससे गैस और पेट की बीमारी से छुटकारा मिलता है।

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