कानपुर। सुबह होती है शाम होती है उम्र यूं ही तमाम होती है मुशी अमीरुल्लाह तस्लीम का उपरोक्त शेर बहुत ही माकूल है, आज की भाग दौड़ की जिन्दगी की सच्चाई को दर्शाता है, वर्तमान समय को भौतिक युग या आर्थिक युग कहना अतिश्योक्ति नहीं है। आज इंसान अधिक से अधिक की प्राप्ति में लगा हुआ है, एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में स्वयं से ही दूर होता जा रहा है। व्यक्ति की व्यक्ति से ही नही अपितु एक देश की दूसरे देश से भी आगे निकलने की होड़ लगी हुई है। सद्गुरू बाबा हरदेव सिंह जी महाराज फरमाते थे कि चाँद पर तो हम पहुँच गये हैं, लेकिन जमी पर चलने व रहने का सलीका हमें नहीं आया। उपलब्धियाँ मुबारक है, लेकिन यह भी महसूस हो रहा है कि इंसानियत गुम होती जा रही है, आदमी खो गया है। नाग्य की विडम्बना देखिये कि यह सब हो रहा है, मानवता के उत्थान के लिये । भौतिक प्राप्तियों और समाज साधनों के जरिये सुकून अर्थात आंतरिक मन की शांन्ति एवं स्थिरता को प्राप्त करना असंभव है। क्योंकि मन की आंतरिक शान्ति एवं सुकून का स्त्रोत बाहरी वस्तुये नहीं है बल्कि व्यक्ति की मानसिक स्थितविचारों और आवरण की गहराईयों पर निर्भर करता है।
मनुष्य भौतिक वस्तुओं को जुटाने में इतना मसरूफ हो गया है कि वह स्वयं के वास्तविक स्वरूप अर्थात सूक्ष्म को प्राप्त करने के स्थान पर स्थूल को प्राप्त करने में ही लगा हुआ है। ऐसे में सुकून या अन्तर मन की शान्ति कैसे संभव हो सकती है ?जबकि इंसान जो कुछ भी प्राप्त कर रहा है। वह सुकून अंतर मन की शान्ति की प्राप्ति के लिये ही कर रहा है। इन प्रयासों से भौतिक प्रातियाँ तो मिल जाती हैं परन्तु इंसान सुकून व चौन से दूर होता जा रहा है तो यह एक विचारणीय विषय है कि ऐसा क्या है ?गहराई से विचार करने पर अहसास होता है कि आध्यात्मिकता ही एक सशक्त माध्यम है जो मानव को आंतरिक शान्ति की दिशा में अग्रसर कर सकती है।
सुकून मन की उत्कृष्ट अवस्था है जो कि ब्रह्मज्ञान द्वारा ही समय है। ब्रह्मज्ञान के उपरान्त जीवन में संतुष्टि एवं शान्ति का प्रादुर्भाव होना संभव है। मनुष्य को भली-भाँति इस बात का अहसास हो जाता है. कि मन की आन्तरिक शान्ति एवं सुकून केवल बाहरी समृद्धि एवं सम्पन्नता में नहीं है अपितु आला की आदर्श समृद्धि में है। आन्तरिक शांति का अनुभव करके आदर्शता की दिशा में अग्रसर हो सकते है जैसे कि ऋिषि मुनियों ने अपने आध्यात्मिक जीवन में अनुभव किया है। वर्तमान में ब्रह्मज्ञानी इसी दिशा में अग्रसर है परन्तु इस अवस्था को ये ही प्राप्त करते हैं जिनके जीवन में सद्गुरु की कृपा से ब्रह्मज्ञान घटित हो जाता है और इस प्रकार के निरंकार के साथ इकनिक की हो जाते हैं। इस अवस्था में वे कुछ प्राप्त करने या कुछ बनने की इच्छा या कुछ खो जाने के भय से पूरी तरह से मुक्त हो जाते हैं दिल की अंतरिम गहराईयों से शान्ति संतुष्टि भीरज एवं ठहराव की अनुभूति होती है। यह समागम सदगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के संरक्षण में निरंकारी मिशन मानव को ब्रह्मज्ञान प्रदान करके आध्यात्मिकता के माध्यम से सुकून अर्थात मन की आन्तरिक शान्ति की प्राप्ति की दिशा में प्रेरित कर रहा है आध्यात्मिकता का जीवन ने समावेश होना अत्यन्त आवश्यक है सुकून को प्राप्त करने के लिये मनुष्य अनेक उपाय करता है, परन्तु ब्रहानुभूति के उपरान्त सुकून स्वत: प्राप्त हो जाता है, कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है क्योंकि ब्रह्मज्ञान का स्वाभाविक रूपान्तरण ही सुकून है। ब्रह्मज्ञानी को किसी भी प्रकार की माया छल नहीं सकती है। अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थियों में भी उसके जीवन में स्थिरता, धैर्य ठहराव कायम रहता है । संतुष्टि, सुकून बड़े ही प्यारे और आनन्दित कर देने वाले शब्द है. ये ब्रह्मज्ञानी की ऐसी अवस्था को दर्शात है जिसमें वर्तमान ही नहीं, भविष्य भी सुनिश्चित होता है ऋषि-मुनियों, विचारकों का भी यही दर्शन है कि आध्यात्मिक व्यक्ति के पास जो भी होता है उसके हृदय में ईश्वर के प्रति अहो एवं कृतज्ञता का भाव रहता है। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि हम रूक जाएं ठहर जाए जीवन तो सतत चलते रहने का नाम है। है यदि व्यक्ति की जिज्ञासा उत्कण्ठा ही समाप्त हो जायेगी।