विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष श्री आलोक कुमार की स्वदेश से बातचीत
विश्व हिंदू परिषद ने हाल ही में दिल्ली सहित देश के कई भागों में चुनिंदा मुस्लिम संगठनों की तालिबानी कोशिशों के खिलाफ बड़े धरने प्रदर्शन किए हैं। इसमें उदयपुर और अमरावती में हिंदुओं की हत्याओं को लेकर भी देश में रोष व्याप्त है। इन्हीं सभी मुद्दों को लेकर दिल्ली में हमारे संवाददाता दीपक उपाध्याय ने विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार खास साक्षात्कार किया।
सवाल:- देश में अभी तनाव की स्थिति लगती है, उदयपुर और अमरावती में हिंदुओं की हत्या हुई है और उससे पहले रामनवमी और हनुमान जयंती पर पथराव भी हुए हैं। या एक कट्टरपंथी तबका देश में तनाव की स्थिति पैदा कर रहा है?
जवाब:- ये बात सच है कि एक वर्ग कट्टरपंथ की ओर झुक रहा है, इस्लाम का आतंकवादी चेहरा, जिहाद का चेहरा वो चाह रहा है कि इस देश में ऐसी घटनाएं हों, पाकिस्तान भी चाह रहा है। उदयपुर के हत्याकांड के तार पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं। ये लोग चाहते है कि कुछ ऐसा करो कि बड़ा शॉक लगे। ऐसा करने वाले लोग इस्लाम के पोस्टर बॉय के तौर पर प्रचारित किए जा रहे हैं। पर भारत का लोकतंत्र मजबूत जड़ें पकड़ चुका है और भारत में ये शति है कि वो ऐसे तत्वों को परास्त कर सके। उदयपुर में जिन्होंने किया था उनमें से 7 अपराधी पकड़े जा चुके हैं। अमरावती में जिन्होंने ये किया था, वो भी पकड़े जा चुके हैं। अगर ये मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट में गए, तो छह महीने में ही ये लोग फांसी पर लटकाए जाएंगे। ऐसा होगा तो सबको शांति मिलेगी। जुमे के दिन कुछ मुस्लमानों को भडक़ा दिया जाए और वो बाहर जाकर आग लगाएं और पथराव करें, ये उचित नहीं है। ये एक दिन हुआ था, उसके बाद पूरे देश में हमने धरनों का कार्यक्रम किया था और कहा था कि आत्मरक्षा में हिंदू भी एकजुट होगें तो या होगा। उसके बाद वो बंद हो गया। मैं समझता हूं कि भारत में वो सामर्थ है कि वो अपनी रक्षा कर सकें। हम जिहाद और शरिया के लोगों को परास्त कर देंगे।
सवाल:- दिल्ली में आपने इतनी बड़ी रैली की, इससे या संदेश देना चाहते थे?
जवाब:- हम पूरे भारत का संकल्प प्रदर्शित करना चाहते थे। किसी ने ईश निंदा की तो उसका गला काट दिया जाए तो उसका गला काट दिया जाए ये एक बर्बर कानून है, वो भी 1400 साल पुराना, ये एक शरीया का कानून है जोकि भारत में लागू नहीं होता। लेकिन इस तरह की कोशिश की गई। नुपूर को ठीक कहना या गलत कहना लोगों को अधिकार है। लेकिन उसे धमकाने का अधिकार किसी का नहीं है। नुपूर दोषी है या नहीं ये न्यायालय तय करेंगी, ये भीड़ तय नहीं करेगी। इन सब मुद्दों को लेकर देश में भाईचारे को, अखंडता को बनाए रखने के लिए जो हमारा संकल्प है, उसको आग्रह से दिखाने के लिए दिल्ली में एक लाख लोग रैली के लिए इकठे हुए थे।
सवाल:- शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश ने नूपुर शर्मा पर जो टिप्पणी की थी, उसको लेकर लोगों में भारी रोष रहा, पहली बार लोगों ने खुलेआम टिप्पणी को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया?
जवाब:- शीर्ष न्यायालय ने टिप्पणियां की, वो तो ये मामला नहीं सुन रहे थे कि नूपुर दोषी है या नहीं, वो तो ये मामला सुन रहे थे कि नूपुर के खिलाफ सारी प्राथमिकी इकठा हो जाएं या नहीं। नूपुर दोषी है या नहीं, ये न्यायाधीश ने सुनना है। पूरी प्रक्रिया पार करके सुनना है। ऐसे में एकतरफा टिप्पणियों से बचना चाहिए था। लेकिन ये टिप्पणियां न्यायालय का आदेश नहीं है, योंकि आदेश में ऐसा कुछ नहीं लिखा गया। इसलिए अगर वो टिप्पणियां नहीं होती तो अच्छा होता। हम चाहेंगे कि नूपुर के सब मामलों को एक जगह इकठा किया जाना चाहिए। जैसा कि अर्नब गोस्वामी के मामले में शीर्ष न्यायालय ने किया था।
सवाल:- क्या मुस्लमानों का एक बड़ा वर्ग कट्टरपंथ की ओर जा रहा है, इसमें मदरसों की भूमिका कितनी है?
जवाब:- मैं ऐसा नहीं मानता कि मुस्लमानों का एक बड़ा वर्ग कट्टरपंथ की ओर जा रहा है। मैं मानता हूं कि एक छोटा वर्ग है। भारत में पसमांदा मुस्लिम को अपने बच्चों की पढ़ाई और रोजी रोटी की चिंता है। लेकिन वो छोटा वर्ग इनको भडक़ाता है। इस्लाम खतरे में है ये कहता है। लेकिन मुस्लमानों में भी ये आवाज उठनी चाहिए कि जो जिहाद का उस समय का नारा था कि आपका धर्म नहीं मानता उसकी हत्या कर दो, उनकी महिलाओं को लूट लो। लेकिन ये धर्म कैसे हो सकता है, ये तो अधर्म है। इसलिए इस्लाम को भी जिहाद की प्रेरणाओं से बाहर निकलना होगा। शरीया के कानून से बाहर निकलना होगा। भाईचारा ऐसे नहीं हो सकता कि उधर से काफिर माना जाए। अगर इस तरह का विचार मुस्लमानों के भीतर से भी पैदा होगा तो समाज बेहतर होगा।
सवाल:- मदरसे की शिक्षा का देश में चिंता का विषय है?
जवाब:- मदरसें के मामले में चिंता की बात है, बहुत सारे मदरसों में वो अक्षर ज्ञान नहीं कराते, कुछ पढ़ाते नहीं है, गणित नहीं पढ़ाते, सिर्फ कुरान हिज्ब कराते हैं। सोचिए एक 18 साल का नौजवान, बस का नंबर नहीं पढ़ सकता, पैसे नहीं गिन सकता। या उसको हम कट्टरपंथ की ओर नहीं धकेल रहे। मदरसे में पढ़े लिखे छात्रों को एक अच्छे जीवन के लिए शिक्षा और कौशल की जरूरत है। मुझे संतोष है कि उार प्रदेश और असम में मदरसों में शिक्षा को सेकुलर किया गया है, बाकि राज्यों में भी इसका अनुकरण किया जाना चाहिए।