अभय, ये तुमने ठीक नहीं किया...

अभय, ये तुमने ठीक नहीं किया...
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अतुल तारे

हम सब याने स्वदेश परिवार बेहद खुश था यह सोचकर, देखकर कि उनका साथी आज देश के शीर्षस्थ मीडिया संस्थानों में अपनी धाक जमा रहा है। समाचार पत्रों का संचालन आज यूं ाी कुशल प्रबंधन मांगता है और हमें अच्छा लगता था कि चाहे अंग्रेजी भाषा के राष्ट्रीय समाचार पत्र हों या मराठी या फिर हिन्दी अभय जहां है, वहां उसका नाम है! पर अभय ये तुमने बिलकुल ठीक नहीं किया। हम कैसे भूल जाएं अभय तु हें कि जब स्वदेश में मशीन पर कार्य कर रहे रघुनाथ देर से आए और तुमने उसे डांट कर भगाया और खुद ही मशीन चलाने लगे। रघुनाथ आज भी स्वदेश में हम सबके साथ हैं, कारण थोड़ी ही देर बाद तुमने ही उसे फिर बुला लिया। आज उसकी आंखे नम है। हमारे वरिष्ठ सहयोगी प्रमोदजी फफक कर रो रहे हैं, यह बताते हुए कि जन्माष्टमी पर खीर अपने पैसों से अभयजी ही सबको खिलाते थे। हमारे समूह के विज्ञापन प्रबंधक केके सक्सैना बताते हैं कि अभयजी स्वदेश के मु य कार्यकारी अधिकारी थे और तब मैं स्वदेश में भी नहीं था। अपनी शादी में अपनी पत्नी से उन्होंने मेरा परिचय यह कहकर कराया था कि ये हमारे बॉस रहे हैं, हमने काम इनसे सीखा है। अभय, अब तुम बताओ मुझसे याद रखकर हर बार दीपावली के दो विशेषांक कौन मांगेगा? कौन यह बताएगा कि 26 जनवरी को स्वदेश में अवकाश था। कोई मिला नहीं पर मैं हनुमानजी के दर्शन करने गया था। यह ठीक नहीं किया तुमने अभय। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी एवं पूर्व संपादक लोकेन्द्र पाराशर आज मोबाइल पर बात करते-करते रो रहे थे और कह रहे थे कि वह वाकई स्वदेश के लिए 'विजनÓ थे। स्वदेश विजन स्वदेश प्रकाशन की ही एक सहयोगी कंपनी है।

आज अभय का यूं जाना हम सबको स्तब्ध कर रहा है। वह तो अभय थे। इसलिए जिंदादिली से जीए। हर जगह अपने काम की जबरदस्त छाप छोड़ी। वह एक शानदार 'कॉरपोरेट कल्चरÓ के भी हामी थे और मशीन पर काम करने वाले सहयोगियों के भी यार। वह उ दा कलाकार भी थे। एक संवेदनशील मन भी उनका था जो सबको जोड़े रखता था। आज अभय तुमने यह नाता तोड़कर अच्छा नहीं किया। हृदयाघात तु हें हुआ था यह चिकित्सक कह रहे हैं और हमें क्या हुआ है, यह कौन बताएगा।

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