एशियन गेम्स 2018 : आइए, अपना सीना फुलाएं
याद करें, एशियाड 1982 देश की राजधानी नई दिल्ली में एशियाड का शुभारंभ हो रहा था। शुभारंभ के मु य अतिथि थे, देश के सिने स्टार, जिन्हें हम सदी के महानायक भी कहते हैं, अमिताभ बच्चन। एक विदेशी पत्रकार ने भारत के पत्रकार से प्रश्न किया कि यह किस खेल के खिलाड़ी हैं? पत्रकार ने जवाब दिया यह खिलाड़ी नहीं है, देश के लोकप्रिय अभिनेता हैं। पत्रकार की टिप्पणी थी कि अब समझ में आया करोड़ों की आबादी वाले देश की पदक तालिका सूनी क्यों रहती है?
विदेशी पत्रकार की यह टिप्पणी भारत में खेलों को लेकर केन्द्र की क्या नीति है, खेलों को लेकर भारतीय समाज कितना जागरुक है, उस पर यह तीखा कटाक्ष था। श्री अमिताभ बच्चन एक उत्कृष्ट अभिनेता हैं, पर यह देश रोल के नायकों एवं रियल के नायकों में चयन करने में भूल कर गया, यह एक यथार्थ था, पर तस्वीर बदल रही है। ''मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है।'' यह अब एक सिर्फ नारा नहीं है, एक सच्चाई है। यकीन नहीं आता तो 18वें एशियार्ई खेलों की पदक तालिका पर नजर डालिए आप किसी भी खेल में रुचि रखते हों या न भी रखते हो संभव है, आपने किसी खेल के मैदान में पांव न भी रखा हो, पर घर में रखा इंची टेप लाइए, पदक तालिका देखिए तो आपका सीना बढ़ा हुआ निकलना तय है, यह देखकर हमारे अपने होशंगाबाद की बेटी हर्षिता ने मात्र 16 साल की उम्र में कांस्य पदक जीता है। यही नहीं 15 साल के विहान ने निशानेबाजी में दिग्गजों को चित कर सबसे कम उम्र में पदक जीतने का गौरव प्राप्त किया। अपनी उंगलियों को बिलकुल ढीला न छोड़ें, आप देखेंगे सीना और चौड़ा हो रहा है, 60 साल के प्रणव वर्धन ब्रिज में सोना ला रहे हैं तो महिला कुश्ती में विनेश फोगाट पहली बार देश की झोली सोने से भर रही है। किसका नाम लें, सभी तो देश के नायक हैं, नायिका हैं, भाला फेंक हो या टेबल टेनिस, बैडमिंटन हो या निशानेबाजी भारतीय दल ने देश का मान बढ़ाया है। 15 स्वर्ण, 24 रजत एवं 30 कांस्य पदक जीत कर भारतीय खिलाडिय़ों ने अपना वह शानदार प्रदर्शन किया है, जो बीते 67 सालों में नहीं हुआ।
क्या यह मात्र संयोग है? चमत्कार है? देश के खेल मानचित्र में छोटे-छोटे शहरों के बच्चे अचानक कैसे नक्षत्र बन गए? इस पर गौर करने की जरुरत है, क्योंकि हम गौर करेंगे तो हमें दिखाई देगा कि खेल, देश में पहली बार खेलों की गंदी राजनीति से बाहर निकल रहे हैं। देश में पहली बार खेल मंत्रालय की कमान किसी राजनेता के हाथ में नहीं है, एक ऐसे उत्कृष्ट खिलाड़ी के हाथ में है, जिसे लक्ष्य संधान करना आता है। कौन नहीं जानता कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर एक शानदार निशानेबाज हैं, जिन्होंने 2004 ओल िपक में रजत पदक जीता है। केन्द्र सरकार का, देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह निर्णय साहसिक निर्णय है परिणाम सामने है। केन्द्र सरकार की 'खेलो इंडिया' एक ऐसी महत्वाकांक्षी योजना है जिसमें 2017-18 से 19-20 तक 1756 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान है। इतिहास साक्षी है, देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। आवश्यकता पहले उन्हें तलाशना फिर प्रशिक्षण देना और अवसर देने की है। 'खेलो इंडिया' इसी सूत्र पर आधारित है। 17 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की देश भर में तलाश, नियमित मार्गदर्शन गरीब छात्रों को सहायता एवं छात्र वृत्ति देने का इस योजना में प्रावधान है। 2020 ओल िपक की तैयारी देश ने शुरु कर दी है। उत्तरप्रदेश के मु यमंत्री ने प्रदेश के खेल मंत्री जो स्वयं खिलाड़ी हैं, चेतन चौहान से स्पष्ट कहा है कि हमें ओलंपिक में सोना चाहिए। 'टारगेट ओलंपिक पोडियम' केन्द्र ने प्रारंभ कर दी है। राष्ट्रीय खेल विकास निधि के तहत वर्ष 2015 से चयन एवं प्रशिक्षण की शुरुआत हो चुकी है। देश को उ मीद ही नहीं विश्वास करना चाहिए कि एशियाड की तरह ओल िपक में भी भारत इस बार अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने जा रहा है और हां इस प्रदर्शन में देश का हृदय मध्यप्रदेश भी पीछे नहीं रहने वाला है, यह एशियाड की पदक तालिका बता रही हैं। मध्यप्रदेश की खेल मंत्री श्रीमती यशोधरा राजे जो स्वयं एक अच्छी घुड़सवार भी रही हैं, ने भरोसा जताया है कि प्रदेश की बेटियां और बेटे खेलों में इतिहास बनाएंगे।
भारत के खेल जगत में राष्ट्रीय खेलकूद विश्वविद्यालय विधेयक भी अपना एक विशिष्ट स्थान बनाने जा रहा है। आस्टे्रलिया के कैनबरा विश्वविद्यालय और विक्टोरिया विश्वविद्यालय के अनुबंध में बनने जा रहे विश्वविद्यालय का कुलपति कोई खिलाड़ी ही होगा, यह खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह ने स्पष्ट कर दिया है। यही नहीं अकादिम परिषद में भी उत्कृष्ट खिलाड़ी ही रहेंगे। विदेशी कोच के समान ही देश के कोच भी वेतन एवं भत्ते पाएंगे। यह ऐसे निर्णय हैं, जो खेलों को सड़ांध मारती राजनीति से दूर एक उन्मुक्त आकाश उपलब्ध कराते हैं, यहां स्वयं खेल मंत्री खिलाडिय़ों को भोजन परोसते हैं तो प्रधानमंत्री मन की बात में देश के ऐसे नायक, नायिकाओं का जिक्र कर हौसला बढ़ाते हैं।
केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने मानसिकता बदली इधर इस बीच समाज भी बदला। समाज बदला तो रुपहला पर्दा भी बदला। पर्दे पर पान सिंह तोमर आए तो मिल्खा भागते नजर आए। 'मेरीकॉम' दिखीं तो दंगल भी हुआ, परिणाम गोल्ड आया, पर्दे पर भी और झोली में भी। देखा आपने, सीना कितना इंच फूला आपका?