निर्णय, राष्ट्रीय अभिव्यक्ति का

निर्णय, राष्ट्रीय अभिव्यक्ति का
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अतुल तारे

क्या यह सिर्फ एक संयोग ही है कि आज से ठीक तीस साल पहले 9 नव बर 1989 को राम मंदिर के निर्माण के लिए पहली बार अयोध्या में शिलान्यास हुआ था? क्या इसे भी सिर्फ एक संयोग के रूप में ही देखना चाहिए कि आज ही से ठीक तीस साल पहले जर्मनी की विश्व प्रसिद्ध दीवार ढहा दी गई थी और पूर्वी जर्मनी एवं पश्चिमी जर्मनी ने एकीकरण का एक इतिहास रचा था। क्या यह आज फिर एक बार सिर्फ संयोग ही है कि जब देश के प्रधानमंत्री गुरु नानक डेरे से करतारपुर (पाकिस्तान) जाने के लिए गलियारे का उद्घाटन कर रहे थे ठीक उसी समय देश का सर्वोच्च न्यायालय भविष्य के नए भारत का एक ऐतिहासिक निर्णय दे रहा था। राम मंदिर का विषय देश की अस्मिता का विषय है देश की आत्मा का विषय है।

1526 में एक विदेशी आक्रांता बाबर भारत आता है और 1528-29 में उसका सिपहसालार मीर बांकी उसके नाम से एक मस्जिद का निर्णय रामजन्म भूमि मंदिर पर करता है। इतिहास की यह एक ऐसी तारीख है जो देश के स्वाभिमान पर एक कलंक था। 1853 से आज दिनांक उस कलंक को धोने एवं उस राष्ट्रीय अस्मिता के प्रगटीकरण के लिए आंदोलन प्रारंभ होता है। आज देश के सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहकर एक आस्था एवं विश्वास पर बहस का प्रश्न ही नहीं है और पुरातात्विक प्रमाण यह साक्ष्य देते हैं कि बाबरी ढांचा खाली मैदान पर नहीं बनाया गया था। अत: जन्मभूमि पर मंदिर बनना चाहिए और केन्द्र सरकार स्वयं इसकी पहल करे। न्यायालय ने दूसरे पक्ष की आस्था का स मान करते हुए उन्हें भी पूजा स्थल बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने की बात कही। निश्चित रूप से यह निर्णय विधि स मत भी है और यह एक ऐतिहासिक न्याय भी है। जिसके लिए अभिनंदन का अधिकारी निश्चित रूप से सर्वोच्च न्यायालय है, जिसने न केवल न्याय धर्म का निर्वहन किया अपितु युग धर्म का भी राष्ट्रधर्म का भी, न्यायालय ने केन्द्र सरकार को ही मंदिर निर्माण का जि मा देकर एक ऐतिहासिक पहल की है नि:संदेह यह स्वागत योग्य है। अभिनंदन का अधिकारी आज स पूर्ण देश भी है जिसने निर्णय को मर्यादित आनंद के साथ स्वीकार किया है जैसा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प.पू. सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने अपेक्षा भी की है। निश्चित रूप से यह निर्णय जय पराजय का है भी नहीं। देश एक नए उज्ज्वल भारत की ओर बढ़ रहा है।

इतिहास में दीवारें खड़ी होती हैं और ढहती भी हैं कारण यह दोनों तत्कालीन देशों की आवाज थी। आज जर्मनी विश्व की एक बड़ी शक्ति है। यह वर्ष गुरु नानक देवजी का 550 वां प्रकाश उत्सव का वर्ष है। आज नानक डेरे से एक गलियारा प्रारंभ हुआ है, जिस पर करतारपुर पाकिस्तान से भी सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है। सीमा पर गोलीबारी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बड़े मन से इसके लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को बधाई दी है। करतारपुर भारत की आस्था का केन्द्र है। नानक डेरे से इसकी दूरी महज चार किलोमीटर है जो अब सहज है। देश, इतिहास इसी तरह लिखते हैं। आज स पूर्ण देश अयोध्या है। अयोध्या का अर्थ ही है, जिसके साथ युद्ध संभव ही न हो। आज सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अयोध्या के विषय पर जब सामने है तो निर्णय पर सकारात्मक प्रतिक्रिया सिर्फ रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े संगठनों की ही सकारात्मक नहीं है, स पूर्ण देश की है। आज वे भी मंदिर निर्माण के पक्ष में हैं जो पहले कहने से बचते ही नहीं थे, विरोध में भी स्वर उठाते थे। यह निर्णय राष्ट्रीय अभिव्यक्ति का प्रगटीकरण है।

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटी देश ने एक साथ स्वागत किया। तीन तलाक अमानवीय है देश ने सामूहिक अभिव्यक्ति दी। राम मात्र हिन्दुओं के ही नहीं स पूर्ण देश के पूर्वज हैं आज यह पूरे देश की आवाज है। देश में आ रहे इस वैचारिक बदलाव को समझने की आवश्यकता है। राम मंदिर आंदोलन का मर्म ही यही है। अयोध्या में सैकड़ों मंदिर हैं, पर राम ही वह रसायन हैं, राम ही वह प्राण तत्व हैं, जो देश के स्वाभिमान को, देश की अस्मिता को जगाता है। राम मंदिर निर्माण के पीछे प्रेरणा यही थी, जो आज निर्णय के बाद आ रही प्रतिक्रियाओं से प्रगट हो रही है। यह स्वर बता रहे हैं कि मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है। यह बात अलग है पूर्व में राम के राज्याभिषेक के समय भी मंथरा के स्वर त्रेता युग में सुने गए थे। राम को वनवास हुआ। पर राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने विधर्मी शक्तियों का संहार किया और फिर अयोध्या लौटे। अब रामलला के भव्य मंदिर निर्माण की शुभ घड़ी आई है।मंथरा हर काल में होती है, आज भी फिर दिखाई दी। आइए मंदिर निर्माण की शुभ घड़ी की प्रतीक्षा करें मंथरा की नियति रामलला तय कर दी देंगे।

- जय श्रीराम

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