भीमा कोरेगांव हिंसा पर खुलासा चौंकाने वाला, विद्वेषपूर्ण विचारों से बचाव जरूरी

भीमा कोरेगांव हिंसा पर खुलासा चौंकाने वाला, विद्वेषपूर्ण विचारों से बचाव जरूरी
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भीमा कोरेगांव हिंसा पर महाराष्ट्र पुलिस का खुलासा चौंकाने वाला है। एक बार फिर हिंसक विचारधारा की हकीकत सामने आयी है। कवि, लेखक की छवि बनाकर कुछ विद्वान इसके पैरोकार बने हुए हैं। यह वह विचारधारा है जो जातीय व मजहबी भावनाओं को संघर्ष तक ले जाने की प्रेरणा देती है। इनके पास किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता, लेकिन अराजकता फैलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकने में इन्हें महारत होती है। पिछली शताब्दी में रूस के बाद अनेक देशों में क्रांति से इस विचारधारा की सत्ता कायम हुई। फिर उसी शताब्दी में लोगों ने उससे तौबा भी कर ली। चीन को भी अपना चोला बदलना पड़ा। वहां केवल राजनीतिक प्रभुत्व के लिए विचारधारा पर अमल हो रहा है। अन्य क्षेत्रों में वह अमेरिका से बराबरी में लगा है।

महाराष्ट्र में उसी हिंसक विचारधारा का खुलासा हुआ है। यह सही है कि इस संबन्ध में अंतिम निर्णय न्यायपालिका को लेना है। वही किसी को अपराधी मानकर सजा दे सकती है। लेकिन समाज को विद्वेष फैलाने वाले विचारकों से सावधान रहने की आवश्यकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभ्य समाज का लक्षण है। लेकिन इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए विद्वेषपूर्ण माओवादी, नक्सलवादी विचारों से बचाव जरूरी है। अन्यथा समाज में विद्वेष, हिंसा और अराजकता फैलने की आशंका बनी रहेगी। महाराष्ट्र पुलिस ने जो जानकारी दी वह परोक्ष रूप से इसकी ताकीद करने वाली है। कुछ पत्र भी सार्वजनिक किये गये। जिसमें हथियारों की खरीददारी के बारे में उल्लेख था। यह पत्र विल्सन ने कॉमरेड प्रकाश को लिखा था। महाराष्ट्र पुलिस का कहना है कि हाल ही में की गई छापेमारी के दौरान उसे ऐसे सबूत मिले हैं, जो माओवादियों द्वारा सरकार के खिलाफ की गई साजिश की ओर संकेत करते हैं। एक आतंकवादी संगठन भी माओवादियों के साथ इसमें शामिल था। इसके बाद छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पांच बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी के खिलाफ कांग्रेस, कम्युनिस्ट और इस विचारधारा के पोषकों ने मोर्चा खोल दिया था। लेकिन महाराष्ट्र पुलिस अपने निर्णय पर कायम है। महाराष्ट्र के एडीजी पुलिस ने आरोपियों और माओवादियों के बीच संबंध के साक्ष्य सार्वजनिक किये। रोना विल्सन की ओर से कामरेड प्रकाश को लिखी गई चिट्ठठी का अंश पढ़ा। जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को मारने की साजिश का साफ जिक्र था। इसमें लिखा है 'मुझे उम्मीद है कि आपको ग्रेनेड सप्लाई के लिए दिये जाने वाले आठ करोड़ रुपये की जानकारी मिल गई है। कॉमरेड किशन और बाकी लोगों ने राजीव गांधी की तर्ज पर मोदी राज को खत्म करने का प्रस्ताव रखा है। इन पत्रों से जाहिर होता है कि ये कार्यकर्ता माओवादियों के साथ संपर्क में थे और कानूनी रूप से चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में जुटे थे। जांच से खुलासा हुआ कि माओवादी बड़ी वारदात को अंजाम देने की साजिश थी और गिरफ्तार आरोपी इसमें उनकी सहायता कर रहे थे। सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, अरुण फेरेरा, वरनन गोनसाल्वेस और पी वरवर राव को पुलिस ने गत मंगलवार को गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस के अनुसार, इन गिरफ्तार वामपंथी विचारकों का प्रतिबंधित संगठन से संबंध है। ये सभी कबीर कला मंच से भी जुड़े हुए थे। पुलिस ने बताया कि क्लोन डिवाइसेज पर जांच की गई। ऑरिजिनल डिवाइस अभी भी फॉरेंसिक लैब में है। ऐसे विचारकों के बारे में ठीक कहा गया कि ये केवल विद्वेष फैलाते हैं। मजदूरों को उद्योगपतियों, अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों, दलितों को शेष हिंदुओं, वनवासियों को अन्य लोगों के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित करते हैं। बताया जा रहा है कि अनेक उच्च शिक्षण संस्थानों में माओवादी विचारधारा फैलाने का प्रयास चल रहा था। इसमें भी दलित और अल्पसंख्यक वर्ग के विद्यर्थियो, शिक्षकों पर विशेष फोकस था।

भीमा-कोरेगांव में 1818 को पेशवा बाजीराव को ब्रिटिश सैनिकों ने हरा दिया था। दलित नेता इस जीत का जश्न इसलिए मनाते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी की टुकड़ी में ज्यादातर महार वर्ग के लोग थे। जिसके बाद हर साल पुणे में यलगार परिषद का आयोजन होता है। इस बार यहां माओवादी विचारकों का प्रभाव दिखाई दिया। इसके चलते हिंसा हुई। यूपीए सरकार ने भी अपने कार्यकाल में माओवादियों के साथ संबंध रखने वाले 128 संगठनों की पहचान की थी। ये वही लोग हैं जिन्हें कांग्रेस सरकार के दौरान गिरफ्तार किया गया था। इनके ऊपर 17-17 केस दर्ज रहे है। यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल में हलफनामा दायर किया था। उसमें साफ कहा गया था कि इनके माओवादियों से संबन्ध हैं। ये देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। विडंबना देखिये आज वोटबैंक की राजनीति में कांग्रेस उन्हीं लोगों का बचाव कर रही है।

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