कांग्रेस का संदेश 'राम से नहीं नाता'!
कांग्रेस पार्टी राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करेगी। यह निर्णय कर भारत की सबसे पुरानी औऱ एक दौर में स्वाभाविक शासक पार्टी ने भारत की बहुसंयक चेतना का अपमान करने का काम किया है। जब पूरा देश राममय होकर 500 साल के अनथक सँघर्ष के बाद मिली सफलता के जयघोष बुलन्द कर रहा है तब कांग्रेस ने न केवल 'राम' और 'भारत' के रिश्ते को नकारने की कोशिश की है बल्कि सेयुलर राजनीति के फेर में खुद का राजनीतिक मर्सिया भी पढ़ लिया है। गांधी जी की राजनीतिक विरासत पर दावा ठोकने वाली कांग्रेस ने इस निर्णय के साथ यह भी प्रमाणित कर दिया है कि उसकी वैचारिकी पर अभी भी वामपंथी कबीलों का कजा है।
सवाल यह कि कांग्रेस जिसे भाजपा के बाद आज भी देश में सर्वाधिक वोट मिलते हैं उसने ऐसा यों किया? जवाब बहुत स्पष्ट है यह पार्टी आजादी के बाद से मुस्लिम तुष्टिकरण और हिन्दुओं के मानमर्दन पर खड़ी होकर शासन करती रही है। यह तथ्य है कि नेहरू गांधी खानदान का कोई भी व्यति 1947 से 2024 तक कभी भी अयोध्या में रामलला दर्शन के लिए नहीं गया है। इसे महज संयोग नहीं कहा जाना चाहिए। यह भारत की महान संस्कृति के विरुद्ध इस परिवार का घृणा भाव भी है। ऐसे में सोनिया गांधी कैसे उस देहरी पर जा ही सकती हैं ?
देश को याद ही है कि बाबरी ढांचा गिरने के बाद इसी कांग्रेस के प्रधानमंत्री ने संसद में फिर से मस्जिद बनाने का वादा किया था। क्रोनोलॉजी समझने की जरूरत है कि कांग्रेस के वैचारिक डीएनए में ही सनातन के प्रति शत्रुता का भाव निहित है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट में न केवल राम के अस्तित्व को आधिकारिक रूप से नकारने में पार्टी को शर्म नही आई बल्कि कोर्ट से फैसला नही सुनाने की याचना भी बेखौफ़ होकर की गई। एक महत्वपूर्ण तथ्य कांग्रेस इस समय इंडी गठबंधन का नेतृत्व कर रही है। इसी इंडी गठबंधन के नेता सरेआम सनातन को समाप्त करने का एलान कर रहे हैं। खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के पुत्र सनातन के समूल नाश की बात भी कहते रहे हैं। ऐसे में इस गठबंधन की राजनीतिक लड़ाई का 2024 का एजेंडा भी कांग्रेस ने मानो साफ कर दिया है। तो इसका मतलब यह भी माना जाना चाहिए कि सनातन पर इंडी गठबंधन का रुख स्टालिन वाला ही है।
निमंत्रण को आस्था के नाम पर ठुकराने का एक दूसरा कारण नेहरू गांधी खानदान की प्रधानमंत्री मोदी के साथ जुड़ी निजी नफरत भी है योंकि जिन रामलला के आगे प्रधानमंत्री आरती उतारने वाले हैं वहां प्रोटोकॉल में सोनिया गांधी को जगह पीछे ही मिलती, ऐसे में वे ताली बजाती तो दिकत, न बजाती तो दिकत। यही नहीं राहुल गांधी को निमंत्रण मिला नही है ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष खडग़े या अधीर रंजन की हैसियत नहीं है कि वे राहुल गांधी को छोड़कर अयोध्या जाने का साहस करते। तब जबकि 2024 के लिए राहुल भारत जोड़ो यात्रा के किरदार हैं। वस्तुत: मुस्लिम और दूसरे अल्पसंयक समाज को कांग्रेस ने सन्देश दे दिया है साथ ही हिंदुओं के लिए भी कि राम से कांग्रेस का नाता नहीं। भले ही गांधी के लिए अंतिम शब्द 'हे-राम' थे।