आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले...
सदी के, क्षमा कीजिए रुपहले पर्दे के सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन ने आज भी कहा है और लगभग एक दशक पहले भी कहा था कि मुंबई फिल्म जगत का जिसे हम बोलचाल की भाषा में बॉलीवुड भी कहते हैं, जब भी इतिहास लिखा जाएगा. उसके दो भाग होंगे. एक दिलीप साहब से पहले और दूसरा दिलीप साहब के बाद। यकीनन अमिताभ बच्चन का भाव दिलीप कुमार के कद को बयां करता है। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक प्रकाश मेहरा ने एक टिप्पणी की थी, जो अमिताभ के बारे में है कि अमिताभ बारिश की ऐसी बूंद है जो सदियों में एक बार बरसती है। आज हम जिस दौर में जी रहे हैं, वहां हर बीता पल अगले पल के साथ अतीत की यादों में खो जाता है। इस लिहाज से देखे तो दिलीप कुमार की आखरी फिल्म थी 'किला' 1998 में आई थी।
आज दो दशक से अधिक हो गए हैं। एक पीढ़ी पूरी जवान होकर आगे बढ़ रही है, दूसरी दस्तक दे रही है पर जो अभिनेता 33 साल से पर्दे पर न आया हो, आज भी यादों में ताजा हैं क्यों? पल-पल अपने नायक-नायिका बदल रही युवा पीढ़ी को शोध के लिए भी दिलीप कुमार की फिल्मों को एक सिरे से देखना चाहिए। देखेंगे तो पाएंगे कि क्यों दिलीप कुमार, दिलीप कुमार हैं। एक दो तीन नहीं सात-सात फिल्म फेयर अवॉर्ड जीतने वाले वह इकलौते अभिनेता हैं। यह सम्मान अमिताभ और शाहरुख को भी नहीं है। 'देवदास' का देवदास, पारो और चंद्रमुखी के बीच रुमानी प्रेम के अभिनय को एक ऐसी ऊंचाई दे गया कि वह आज भी एक अभिनय के लिए प्रेरणा हैं।
वैजंतीमाला के साथ नया दौर में दिलीप कुमार की जोड़ी को खूब सराहा गया था और आज भी शादियों में नए गीतों के बीच उड़े जब जब जुल्फें तेरी.... बजता है तो झूमते भी हैं लिखना जरूरी नही दिल भी मचलते हैं।वहीदा रहमान के साथ राम और श्याम ऐसी क्लासिक फ़िल्म हैं कि दर्शकों की आंखे नम हो जाएं। दरअसल दिलीप कुमार आपने आप में अभिनय की एक पाठशाला थे। गांव का अलमस्त युवा राम या 'शक्ति' का संजीदा पुलिस अधिकारी अश्विनी. अभिनय के इतने रंग दिलीप कुमार ने जीए है कि उन्हें देख-देख कर नई पीढ़ी अभिनय का क ख ग सीखती है। स्वयं अमिताभ बच्चन भी उन्हें प्रेरणा मानते हैं। यही कारण हैं कि 'शक्ति' में जब इन दो महान कलाकार को आमने-सामने खड़ा करने का ख्याल रमेश सिप्पी को आया तो अमिताभ ने माना कि वह नर्वस थे जबकि तब अमिताभ का सितारा बुलंदी पर था। वह 'ट्रेजडी किंग' यूं ही नहीं कहलाए, 'आदमी', 'देवदास', दीदार सहित कई फिल्मों में भावनात्मक त्रासदी का अभिनय उन्होंने इतने डूब के किया कि वह स्वयं अवसाद में चले गए। यही कारण रहा कि 'राम और श्याम' जैसी फिल्म करके अपने हास्य अभिनय का भी उन्होंने परिचय दिया। 1970 से 90 के दशक में वह चरित्र अभिनेता के रूप में 'क्रांति', 'विधाता', 'दुनिया', 'सौदागर' में आए और जा भी यह भूमिकाएं याद की जाती है।
मशहूर फिल्म अभिनेत्री देविका रानी की खोज आज हम सबसे जुदा हो गई। वे बीमार काफी समय से थे। पर उनकी हमसफर सायरा बानो उन्हें फिर हम सबके बीच ले आएंगी. ऐसी उम्मीद हम सबको थी। मुंबई फिल्म जगत की ऑफ द रील प्रेम कथा आज भी सबके मन को गुदगुदा रही थी। दिलीप कुमार का नाम इसके पहले कामिनी कौशल और मधुबाला से भी जुड़ा। 'मुगल ए आजम' के सलीम की अनारकली पर्दे पर मुधबाला ही थी। प्रशंगवश जब फिल्म की शूटिंग चल रही थी, तब दोनों में अलगाव चरम पर हो चुका था, बातचीत बंद थी.पर पर्दे पर यह प्रेमकथा आज भी रुमानियत पैदा करती है।
ऐसे सर्वकालीन अभिनेता का निधन वाकई एक युग की समाप्ति जैसा ही है। पर वह हमेशा दर्शकों के दिलों में रहेंगे।
आखिरी में उन्हीं की फिल्म 'राम और श्याम' के गीत से उन्हें विनम्र श्रंद्धाजलि
आज की रात मेरे, दिल की सलामी ले ले
दिल की सलामी ले ले...
कल तेरी बज़्म से दीवाना चला जाएगा
शम्मा रहे जाएगी परवाना चला जाएगा....
...अलविदा दिलीप कुमार