एक नए 'रामपथ' की शुरुआत

एक नए रामपथ की शुरुआत
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अतुल तारे

वेबडेस्क। एक प्रतीक्षा आज पूरी हुई। यह एक संकल्प की पूर्ति का क्षण है। यह एक उत्सव का क्षण है। यह एक पांच शताब्दि की संघर्ष यात्रा का पूर्ण विराम है या यूं कहें कि पूर्ण होकर एक नई यात्रा का यह प्रस्थान बिंदू है, आसान नहीं थी। सहज भी नहीं ही थी। पांच सौ साल की प्रतीक्षा है इसके पीछे। अनगिनत बलिदान हैं, इसके पीछे। 'अयोध्याÓ अर्थात जहाँ युद्ध है ही नहीं, संपूर्ण 'श्रीÓ विराजमान है उसी अयोध्या की पवित्र सरयू एक बार ही नहीं कई बार रक्त से लाल हुई है। विदेशी आक्रांता बाबर ने इसे लूटा है, विध्वंस किया है। और विश्व के कण-कण में व्याप्त 'राम अपने ही घर से निर्वार्सित हुए हैं।

बाबरी अप संस्कृति के अंश अयोध्या में कलंक के रूप में शताब्दियों तक देशवासियों ने सहे हैं। ऐसा नहीं राष्ट्रीय विचार की शक्तियों ने प्रतिकार नहीं किया, बार-बार किया पर घर की ही शूर्पणखाओं ने, खर-दूषण ने संत शक्ति को पराजित किया और रावण की आसुरी शक्ति निर्लज्ज अट्टाहास करती रही। विगत निकटतम आधुनिक इतिहास में यह संघर्ष 1949 से फिर एक बार प्रारंभ हुआ। 'रामललाÓ प्रगट हुए। राम आराधना प्रारंभ हुई। पर बाबरी ढांचे के साए में। रामभक्त अयोध्या आते, दर्शन करते और एक पीड़ा के साथ पर लौट आते। वे देख रहे थे सोमनाथ से राष्ट्रीय पुर्नजागरण का यज्ञ अधूरा ही रह गया। सज्जन शक्तियों से आर्शीवाद लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से विश्व हिन्दू परिषद् एक संकल्प लेता है राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का। यह संकल्प जब लिया गया तो विधर्मी शक्तियों ने इसका उपहास भी किया और विरोध भी। पर राम ने, राम के रामत्व ने देश को एक सूत्र में पिरोना शुरू कर दिया।

''रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे देश का एक समवेत स्वर बना। राम शिला पूजन, फिर कार सेवा ने देश में राम भक्ति का एक ज्वार पैदा किया और 6 दिसंबर 1992 को वह दिन भी आया और एक राष्ट्रीय गौरव के क्षण का साक्षी बना यह दिवस। विदेशी आक्रांता की निशानी को देखते ही देखते इतिहास बनते देर नहीं लगी। कारण रामभक्त अंतहीन प्रतीक्षा और उनके भाइयों पर मुल्ला मुलायम की गोलियों से, कांग्रेस की निर्लज्ज चुप्पी से वामियों के षड्यंत्र से व्यथित थे, आक्रोषित थे। 6 दिसंबर 92 के बाद 'रामललाÓ अब ढांचे से टेंट में आ गए। फिर एक लंबी प्रतीक्षा का आरंभ। मतंग ऋषि ने शबरी से जब कहा था कि ''राम आएंगे तुम प्रतीक्षा करो।ÓÓ तब शबरी अबोध थी। कब आएंगे राम, यह जब शबरी ने पूछा, तब दिव्यदर्शी मतंग ने कहा था कि अभी दशरथ का विवाह भी नहीं हुआ है। पहले कौशल्या से विवाह, फिर सुमित्रा से, फिर कैकयी से। फिर एक प्रतीक्षा।

दशरथ को जीवन के उत्तरार्द्ध में राम पुत्र के रूप में मिलेंगे। फिर राम का विवाह होगा। फिर वनवास। वनवास के अंतिम वर्ष में वह आएंगे। तुम निश्ंिचत रहो। शबरी समय की सीमा नाप तो नहीं पाई पर गुरु के आदेश पर विश्वास किया। चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के पुत्र राम एक भील कन्या के पास आए। यही राम पथ है। कलियुग में भी यह प्रतीक्षा कुछ ऐसी ही दीर्घ अवधि की थी। पर जामवंती प्रेरणा, हनुमान का शौर्य और शबरी का धैर्य कलियुग में भी दिखाई दिया। इसलिए राम का आज अयोध्या में आना सिर्फ मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का होना भर नहीं है। राम ने आज न सिर्फ अयोध्या को न सिर्फ उत्तरप्रदेश को, न सिर्फ आर्यावर्त को अपितु संपूर्ण विश्व को राम तत्व की अनुभूति दी। संपूर्ण विश्व आज राममय है।

सियाराम मय सब जग जानी
करहूँ प्रणाम जोरी जुग पानी

त्रेता में राम ने अयोध्या से श्रीलंका तक यात्रा की। कलियुग में राम का अयोध्या आना एक नए रामपथ का सृजन है। देश की राष्ट्रीय शक्तियों को राम ने एक सूत्र में बांध कर विश्वास का एक नया राम सेतु निर्मित किया है। राम सेतु के निर्माण में कलियुग के हनुमान भी है, अंगद भी हैं, सुग्रीव भी और मां शबरी भी। ठीक इसी तरह लंका विजय से पहले जिसे प्रकार मारीच भी आए और मेघनाद कुंभकर्ण भी, कलियुग में भी हमने देश की राजनीति में इस राक्षसों के उत्पात को देखा और आज भी देख रहे हैं।

स्वामी अवधेशानंद जी के शब्दों का प्रयोग करूँ तो शूर्पणखा के इतने पुण्य तो थे कि वह पंचवटी तक पहुँची पर 'रामÓ में उसे ईश्वर नहीं 'कामÓ नजर आया। परिणाम नाक कान काटी गई। आज भी विधर्मी शक्तियों पर इतनी कृपा हुई कि उन्हें निमंत्रण मिला पर ''जाको प्रभु दारुण दु:ख देेही ताकी मति पहले हर लेही।ÓÓ यही हुआ उनकी भी नाक कान कहां हैं, पता नहीं।

देश दीपावली मना रहा है। समूचा देश आज अयोध्या है। आज तुलसी होते तो मिथिला का वर्णन मानस में जिस प्रकार है कहीं उससे अधिक वह आज अयोध्या का करते। पर 'हो ही वहीं जो राम रचि राखा। आज छोटे से गांव की चौपाल से लेकर महानगर की अट्टालिकाओं तक 'मेरी झोपड़ी के भाग सारे खुल जाएंगे राम आएंगे के स्वर गूंजित हो रहे हैं।

यह एक नए अध्याय की शुरुआत है। राम मंदिर का निर्माण राष्ट्र मंदिर के निर्माण का प्रारंभ बिंदू है। मन की अयोध्या सज रही है। सँवर रही है। पराक्रम, स्वाभिमान, नैतिकता एवं शुचिता का नया 'रामपथ बन रहा है। यह विजय का क्षण है। यह उल्हास का क्षण है। यह सच है। पर संपूर्ण विजय का नहीं। रावणी शक्तियां हताश हैं मृत नहीं। मायावी कालनेमी की आसुरी शक्तियां सक्रीय हैं। आवश्यकता सचेत रहकर राष्ट्र यज्ञ को निर्विघ्न पूर्ण करने का दायित्व हम सब राम भक्तों का है।

स्वदेश भी रामकाज है। 90 के दशक में जब कार सेवा प्रारंभ हुई थी तो देश के मीडिया के लिए यह विषय लगभग अस्पृश्य था। चर्चा थी तो नकारात्मक अधिक। स्वदेश के लिए तब भी यही संकल्प था आज भी है। प्रसन्नता एवं संतोष यह कि आज देश का कथित मुख्यधारा का मीडिया भी 'राममय है। स्वदेश का यह गिलहरी योगदान मन को एक तृप्ति देता है।

आगे भी रामजी आशीर्वाद देंगे ही। जय सीताराम। राम राम।

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