विनम्र श्रद्धांजलि : अब कौन गाएगा 'नया गीत'

विनम्र श्रद्धांजलि : अब कौन गाएगा नया गीत
X
-अतुल तारे

बुद्धि कह रही थी बीते 36 घंटों सें, खासकर आज सुबह से ही कि एक अनहोनी दस्तक देने वाली है। पर दिल नहीं मान रहा था। दूर कहीं एक लगभग टूटती सी उम्मीद थी कि अटलजी एक नया गीत फिर लिखेंगे, सुनाएंगे, काल के कपाल पर वह फिर अपनी लेखनी से हम सबको दिशा देंगे। पर ये हो न सका। भारतीय राजनीति ही नहीं वैश्विक राजनीति के शलाका पुरुष, देश के जननायक हम सबके अतिप्रिय अटलजी आज हमसे दूर चले ही गए, एक ऐसी यात्रा पर जहां से कोई वापस नहीं लौटता है। हाथ कांप रहे हैं यह लिखते हुए कि अटलजी आज हमारे बीच में नहीं हैं।

एक राजनेता जो सार्वजनिक जीवन से लगभग पूरे 9 साल दूर हो। एक ऐसा राजनेता जिसकी दिव्य वाणी भी मौन हो। यही नहीं विगत 9 वर्षों में एकाध अपवाद छोड़ दें तो जिनकी कोई सार्वजनिक तस्वीर भी सामने नहीं आई हो क्या ऐसा राजनेता सार्वजनिक जीवन में कोई शून्य पैदा करने की स्थिति में हो सकता है? आज जिस दौर में हम जी रहे हैं, वहां यह बात कल्पनातीत लग सकती है पर अटलजी का व्यक्तित्व कल्पना से भी परे है। बेशक वे विगत लंबे समय से हम सबसे दूर ही थे पर वे हैं यह एक सुखद आश्वस्ति थी, एक सम्बल था। भारतीय समाज के चिंतन का तल आध्यात्मिक है। हम मंदिर जाते हैं एक ऊर्जा लेकर आते हैं। ठीक ऐसे ही 6 कृष्णन मेनन मार्ग नई दिल्ली भारतीय राजनीति का ही नहीं देश की सज्जन शक्ति का एक ऐसा ऊर्जा केन्द्र था कि हम अपनी खुशी, अपनी कुंठा अपनी शिकायत अपनी पीड़ा लेकर जाएं तो अटलजी का मौन, अटलजी की आंखें एक समाधान प्रस्तुत करती थीं। वे स्वयं एक योद्धा थे। अंतिम समय तक उन्होंने दशकों पहले लिखी 'ठन गई मेरी मौत से ठन गई' कविता को सार्थक किया। पर नियति के आगे हम सब विवश हैं अटलजी भी थे और वे चले गए।

यह नि:संदेह हम सबका सौभाग्य है कि हम उस कालखंड में जी रहे हैं जिसमें अटलजी हम सबके साथ साक्षात रहे। बटेश्वर से लेकर प्रधानमंत्री निवास तक की उनकी राजनीतिक यात्रा एक ऐसी पाठशाला है-एक ऐसा विश्वविद्यालय है, जिससे न केवल आज की पीढ़ी अपितु आने वाली कई पीढ़ियां शिक्षा लेंगी। वाणी का विलक्षण संयम, विरोधी से विरोधी के बीच भी अपनी स्वयं की स्वीकार्यता, वैचारिक, प्रतिबद्धता, अतुलनीय वक्तृत्व शैली, संवेदनशीलता, अद्भुत, संगठन क्षमता, असीमित धैर्य, परिश्रम की पराकाष्ठा, अपरिमित औदार्य उनके व्यक्तित्व के ऐसे आभूषण थे जो उन्हें एक वैशिष्ट्य प्रदान करते थे। भारत सरकार ने तो उन्हें आज भारत रत्न से विभूषित कर एक अभिनंदनीय निर्णय लिया था पर वे वस्तुत: भारत के रत्न ही थे। राष्ट्रीय विचारों की भारतीय राजनीति में स्थापना के लिए उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को गला दिया, खपा दिया। पर स्वयं के लिए उन्होंने कोई अपेक्षा नहीं की। भारतीय राजनीति में गठबंधन की आवश्यकता महत्व एवं उसका सफल क्रियान्वयन अटलजी ने ही सबसे पहले किया। कांग्रेस का विकल्प हो सकता है यह अटलजी ने ही करके दिखाया। आज जब संवाद के स्थान पर संघर्ष, कटुता, व्यक्तिगत वैमनस्य दिखाई देता है, अटलजी की ऐसे समय और अधिक आवश्यकता थी। देश जानना चाह रहा था कि आज देश के सामने जो चुनौतियां हैं, यक्ष प्रश्न हैं उसका समाधान क्या है। निश्चित ईश्वर यह अवसर अटलजी को देता तो वह अपने युगानुकूल कर्तव्य से भारतीय राजनीति का, अपने दल का मार्गदर्शन करते। पर यह हो न सका।

निश्चित रूप से यह देश के लिए तो एक बड़ी क्षति है। उनका निधन एक ऐसा शून्य निर्मित कर गया है, जो सचमुच डराता है। कारण वे भारत के मन में रम चुके थे, बस चुके थे। वहीं भाजपा का तो वह आधार ही थे, प्रेरणा थे। देश आज एक निर्णायक मोड़ पर है। अटलजी जिन विचारों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे, एक बार फिर उस पर चारों तरफ से आक्रमण है। नि:संदेह पार्टी के लिए यह एक सदमा है पर उनके विचार उनकी कार्यशैली ही देश को आशीषित करेगी। सादर नमन अटलजी।

यह घड़ी स्वदेश परिवार के लिए भी शोक की घड़ी है। यह हमारा सौभाग्य है कि वह स्वदेश के आद्य संपादक थे। स्वदेश उन्हीं राष्ट्रीय विचारोें का आंदोलन है, जिसके अटलजी मुखर योद्धा थे। यह घड़ी हमें भी असहज कर रही है, मन को व्यथित कर रही है। स्वदेश परिवार की ओर से भी विनम्र श्रद्धांजलि।

Tags

Next Story