भारत-इजरायल मैत्री पर इमरान को मिर्ची लगे तो लगे
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को भारत-इजरायल के मजबूत होते संबंधों पर बड़ी तकलीफ होती है। उनका वश चले तो वे इन दोनों देशों के संबंधों को खराब करने का कोई मौका न चूकें। पर वे बेबस हैं। इसलिए वे भारत-इजरायल संबंधों पर अपनी भड़ास निकालते रहते हैं। हालांकि उनके भड़ास निकालने से फर्क ही क्या पड़ता है। खैर, उन्होंने हाल ही में दावा किया कि जैसे इजरायल ने फिलिस्तीन की जमीन हड़प ली, उसी तरह भारत मुस्लिम बहुल कश्मीर में वही रवैया अपना रहा है। भारत कश्मीर की आबादी के चरित्र को बदलना चाहता है। उन्हें इस बात से बड़ी तकलीफ रहती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कश्मीर में गैर-कश्मीरियों को बसाना चाहते हैं।
अब इमरान खान को कोई बता दे कि भारत के अन्य राज्यों की तरह कश्मीर भी भारत का ही एक सूबा है। वहां जो भारत चाहेगा करेगा, उसके पेट में क्यों दर्द हो रहा है। इसके लिए भारत को पाकिस्तान से कोई सलाह नहीं चाहिए। इसलिए इमरान खान कश्मीर के हालात को लेकर दुबले न होते जायें तो उनकी सेहत जितनी तेजी-सी बिगड़ रही है, उतनी शायद नहीं बिगड़ेगी।
इमरान खान जितना ज्यादा बोलते हैं उतनी ही जल्दी वे अपने अल्प ज्ञान को प्रकट कर देते हैं। वे दावा करते हैं कि जब नरेन्द्र मोदी इजरायल जाते हैं, उसके तत्काल बाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया जाता है। इमरान खान यह जान लें कि मोदी जी ने इजरायल की यात्रा 2017 में की थी, वहीं जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा साल 2019 में खत्म हुआ।
मतलब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान अपने सतही ज्ञान से अपने को जोड़कर ही साबित करते रहते हैं। वे दरअसल कुंठित व्यक्तित्व के धनी हैं। उन्हें भारत की किसी भी उपलब्धि पर तकलीफ ही होती है। कुछ समय पहले पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के अध्यक्ष रमीज रजा ने कहा था कि भारत चाहे तो पाकिस्तान की क्रिकेट को तबाह कर सकता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट संघ को सर्वाधिक फंडिग भारत से ही होती है। यह बयान वह इंसान दे रहा था जिसे इमरान खान ने ही पीसीबी का मुखिया बनाया था।
जाहिर है, इन सब वजहों से ही इमरान खान दुखी रहते हैं। इमरान खान चाहे लाख जले-भुनें पर भारत- इजरायल संबंध तो लगातार मजबूत होते ही रहेंगे। दोनों मुल्कों के संबंध आपसी सौहार्द और विश्वास पर आधारित हैं। दोनों देशों के रिश्ते चट्टान जैसे मजबूत हैं और रहने वाले हैं।
भारत-इजरायल के रिश्तों को ठोस आधार देने की दिशा में प्रधानमंत्री मोदी और इजराइल के निवर्तमान प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। इजराइल भारत के सच्चे मित्र के रूप में लगातार सामने आता रहा है। हालांकि फिलिस्तीन मसले पर भी भारत आंखें मूंदकर अरब संसार के साथ खड़ा रहा, पर बदले में भारत को वहां से कभी भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। उलटे कश्मीर के सवाल पर अरब देशों ने सदैव पाकिस्तान का ही साथ दिया। लेकिन, इजराइल ने हमेशा भारत की हर तरह से मदद की। मुझे कहने दें कि हमारे यहां भी कुछ तत्व इजरायल का खुलकर विरोध करते रहते हैं। वे भूल जाते हैं कि इजरायल सदैव हमारा संकट का मित्र रहा है।
जामिया मिलिया इस्लामिया को ही लें। वहां कोविड-19 से पहले छात्रों ने इजरायल के खिलाफ आंदोलन किया था। वे यह मांग कर रहे थे कि जामिया में इजरायल की किसी भी तरह से भागीदारी नहीं रहेगी। इनका कहना था कि इजरायल फिलिस्तीन में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। भारत को इन तत्वों पर कसकर चाबुक चलानी होगी। दरअसल, इजरायल से पाकिस्तान ही नहीं बल्कि समूचा अरब जगत भी खार खाता रहा है। हालांकि अब कुछ हालात सुधरते दिख रहे हैं। दुनिया भर के मुसलमानों के मन में इजरायल की तो नेगेटिव ही छवि है।
दरअसल इजरायल और उसके पड़ोसियों के बीच 1967 में युद्ध भड़क गया था जिसे अरब-इजराइल युद्ध के नाम से जाना जाता है। उसमें पाकिस्तान के लड़ाकू विमान भी अरब देशों के लिए लड़े थे। यह युद्ध 5 जून से 11 जून 1967 तक चला था। इस जंग के बाद वेस्ट एशिया का चेहरा ही बदल गया था। इजराइल ने मिस्र को ग़ज़ा से, सीरिया को गोलन पहाड़ियों से और जॉर्डन को पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम से धकेल दिया था। हालांकि पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों ने जंग में खुलकर भाग लिया था पर जंग में विजय इजरायल की हुई थी।
पाकिस्तान की विदेश नीति में भारत के अलावा इजरायल को भी शत्रु माना जाता है। इजरायल को पाकिस्तान ने मान्यता नहीं दी है और न उससे कभी संबंध स्थापित किए। पाकिस्तान के पासपोर्ट पर लिखा होता है कि ये इजरायल को छोड़कर हर देश में जाने में सहायक है। उधर, इजरायल पाकिस्तान को मान्यता इसलिए नहीं देता, क्योंकि पाकिस्तान धार्मिक आधार पर फिलिस्तीन को मान्यता देता है।
पाकिस्तान के भारत से खराब संबंधों के लिये जिम्मेदार तो अनेकों कारण हैं। उसकी पैदाइश ही भारत से नफरत पर हुई थी। पाकिस्तान में उस शख्स को महान बताया जाता है जो परमाणु बम की तकनीक उत्तर कोरिया को गलत तरीके से बेच देता है। हम बात कर रहे हैं 'इस्लामिक परमाणु बम' के जनक कहे जाने वाले कुख्यात वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान की। उनका हाल ही में निधन हो गया है। वे दुनिया की तबाही का हथियार बनाने वाले परमाणु तस्कर थे। वहां उन्हें मरने के बाद नायक बना दिया गया और उनके जीवन के आखिरी लगभग 17 बरस कैद में ही गुजरे। उनकी रिहाई की भीख मांगते हुए मौत हो गई।
भारत के भोपाल शहर में जन्मे और हिन्दुओं से नफरत करने वाले कादिर की तुलना भारत के 'मिसाइल मैन' राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से भी की जाती थी। भारत को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों और परमाणु बम की बेजोड़ ताकत से लैस करने वाले कलाम साहब को देश का राष्ट्रपति बनाया गया। कलाम जनता के राष्ट्रपति साबित हुए। अब्दुल कादिर खान बहुत ही जलते थे कलाम से। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि कलाम एक 'साधारण वैज्ञानिक' थे। आप समझ सकते हैं कि वहां के नायक कितने दिल वाले हैं।
बहरहाल, बात हो रही थी इमरान खान क्यों भारत- इजरायल संबंधों को लेकर दुखी रहते हैं। उनके पास दुखी होने के अलावा कोई विकल्प है ही नहीं क्योंकि भारत-इजरायल रिश्ते मूल्यों और बराबरी पर आधारित हैं। भारत के ऊपर यह दायित्व है कि वह इजरायल को कभी नजरअंदाज न करे। इजरायल ने कई जंगों में भारत की निर्णायक मदद की है, यह उसकी मित्रता का सुबूत है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)