जयचंदी राजनीति है कांग्रेस के पतन का कारण
दुनिया के इतिहास में जितने बदलाव हुए, क्रांतियां हुई वे सफल तभी हुई जब उनके साथ जनता रही। भारत की जन चेतना का कभी लोप नहीं हुआ। जनविरोधी राजा को दंड देने की व्यवस्था रही। मनु ने कहा कि जो राजा प्रजा को पीड़ा देता है वह अपना जीवन, कुटुम्ब एवं राज्य खो देता है। शांति पर्व में प्रजा द्वारा राजा वेन की हत्या का प्रसंग है। या ज्ञानवल्लभ ने राजा से गद्दी छीन लेने की बात की है। शुक्र नीति में कहा गया है कि दुष्ट राजा को उतारकर गुणवान व्यक्ति का राज्याभिषेक कर देना चाहिए। फ्रांस और कम्युनिस्ट क्रांति की चर्चा अधिक होती है। क्रांतियां किसी विचार को लेकर हुई, गुलामी को खत्म करने के लिए हुई। लोकतंत्र में शातिपूर्ण विरोध का अधिकार होने से हिंसक क्रांति की संभावना कम होती है। भारत की राजनैतिक प्रयोग शाला में सबसे पुराना दल कांग्रेस परिवार के लिए राजनैतिक बदलाव का प्रयोग करना चाहता है।
कुछ दल जाति, समूह के जोड़तोड़ का रसायन खोल रहे है। लेकिन इनके प्रयोग से न जनता का सरोकार है और न देश का। समाज जीवन में चेतना का आधार विचार होता है। भारत में राजनैतिक बदलाव हुए, गुलामी के कालखंड के दर्द को भी बर्दाश्त किया, लेकिन सांस्कृतिक चेतना बनी रही, त्यौहार, कुंभ के मेले, तीर्थ यात्राओं की परम्परा और सामाजिक जीवन सांस्कृतिक परम्पराओं से संचालित होता रहा। अच्छे बुरे राजा आये, गये लेकिन जनजीवन अपने मूल्य और संस्कृति पर अडिग रहा। जो यह कहते हैं कि पहले का जनजीवन चेतना शून्य रहा, इतिहास की सच्चाई उन्हें ज्ञात नहीं है। समाज में चेतना नहीं होती तो इंदिरा जी की तानाशाही को जनता उखाड़कर नहीं फेंकती। जिस लोकतंत्र का प्रयोग कई देशों में सफल नहीं हुआ उसको भारत की जनता गत सत्तर वर्षों से सफलता के साथ चला रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए संविधान बना, संविधान एक व्यवस्था है, लेकिन देशहित के ऊपर संविधान को नहीं रखा जा सकता। समयानुकूल बदलाव होने से ही प्रासंगिकता बनी रह सकती है।
इसी प्रकार जिन संस्थाओं का जन्म वैचारिक आधार पर होता है, उन विचारों से कटकर यदि उसके नेतृत्व ने अन्य हितों पर ध्यान केन्द्रित किया तो उसकी स्थिति कटी पतंग जैसी हो जाती है। भारत के जितने भी राजनैतिक दल है उनकी राष्ट्रीय, सामाजिक सरोकार की पृष्ठभूमि रही है, लेकिन अब इनमें से अधिकांश का किसी व्यक्ति, परिवार और जाति के हित में ध्यान केन्द्रित हो गया। इसके कारण ये पतन के कगार पर खड़े हैं। लोकतंत्र की विडंबना यह है कि कांग्रेस जैसी सबसे पुरानी पार्टी, जो आजादी के आंदोलन की बेनर रही, उसकी स्थिति यह हो गई की वह देश विरोधी राजनीति केवल इसलिए करने लगी कि किसी तरह उसके नेतृत्व के परिवार को सत्ता सुख प्राप्त होता रहे। उसे न आतंकी संगठन लश्करे तोएबा से हाथ मिलाने में आपत्ति है, न दुश्मन देश पाकिस्तान की भारत विरोधी नीतियों का समर्थन करने से परहेज है और न सेना का मनोबल प्रभावित करने और न्यायपालिका, चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को सवालों के घेरे में लेने में कोई आपत्ति है। देशहित के प्रतिकूल व्यवहार करने वाली कांग्रेस के नेतृत्व को आप किस श्रेणी में रखेंगे। कांग्रेस के नेतृत्व को आप किसी भी श्रेणी में रखे, लेकिन उसकी राजनीति को देश विरोधी ही माना जायेगा।
इसी माह की 25-26 जून 1975 को इंदिराजी ने लोकतंत्र का गला घोटकर आपातकाल थोपा था, भारतीय जनता की लोकतांत्रिक चेतना ने इंदिरा सरकार को ही धूल चटा दी। अब भी उसी प्रकार की नीतियां कांग्रेस अपना रही है। सोनिया-राहुल एक मामले में जमानत पर है, इसलिए मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की साजिश करना, सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक के लिए जहां सारे देश ने कमांडो के अद्भुत पराक्रम को सलाम किया, उस पर सवाल उठाना और अब जब सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण में वीड़ियों जारी किया तो उस पर भी कांग्रेस ने सवाल उठाते हुए अपनी घटिया राजनीति से सेना के मनोबल को ही तोड़ा। जो कांग्रेस नेतृत्व सेना प्रमुख के कथन की गंदे शब्दों में आलोचना कर सकता है, वह देश की सुरक्षा को उसी तरह खतरे में डाल सकता है, जिस तरह देश विभाजन, 1962 के चीन के साथ युद्ध में भारत को नीचा देखना और अब उसके मणिशंकर अय्यर, गुलाम नबी, सैफुद्दीन सोज आदि नेता कभी अलगाववादियों की पैरोकारी करते हैं, कभी कश्मीर की आजादी की बात करते हैं। गुलाम नबी तो सेना विरोधी यह टिप्पणी करने से भी नहीं चूके कि दस नागरिक मारे जाते है और एक आतंकी मरता है। सेना की कार्यवाही पर सवाल उठाकर उन्होंने सेना के मनोबल पर ही प्रहार किया है।
इस बारे में तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि 'उन्हें (कांग्रेस) सेना पर संदेह करने की गलती मानना चाहिए। सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय सेना को है। केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि राजनैतिक लाभ लेना होता तो इस वीडियो को कर्नाटक, गुजरात चुनाव के समय प्रसारित किया जाता। कांग्रेस नेतृत्व की परेशानी यह है कि उसे सेना का पराक्रम, नरेन्द्र मोदी की कूटनीति से दुनिया में बढ़ता भारत का प्रभाव, भारत में होता विकास और नरेन्द्र मोदी की सभाओं में उमड़ता जन सैलाब, यह सब कांग्रेस को पच नहीं रहा है, उसे लगता है, इससे भारत की जनता फिर से नरेन्द्र मोदी की पसंद पर 2019 में भी मोहर लगा सकती है। सत्ता सुख की छटापटाहट में उसके नेताओं को यह भी ध्यान नहीं रहता कि वह अपने राष्ट्रीय और वैचारिक सरोकार से कट रहे है। यह उसी तरह की स्थिति है जब जयचंद ने एक महिला के चक्कर में पृथ्वीराज के साथ गद्दारी कर विदेशी मोहम्मद गौरी का साथ देकर भारत को विदेशी यवनों का ऐशगाह बना दिया।
यह उसी तरह की देश विरोधी नीति है जब आजादी के संघर्ष में अंग्रेजों के भारतीय दरबारियों ने प्रखर देशभक्तों और क्रांतिकारियों के पीठ में छुरा घोंपा। अंगे्रजों के दरबारी कौन थे, इसकी सच्चाई जानकर कांग्रेसी तिलमिलाने लगेंगे। लोकतंत्र की गंगा में जिस गंदी राजनीति को मिलाया जा रहा है उससे पूरी गंगा में गंदगी फैल रही है। यदि निहित स्वार्थ की राजनीति के द्वारा राष्ट्रहित की बलि दी जाने लगी तो ऐसी राजनीति देश के लिए गंभीर खतरा है। इससे बड़Þा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि जो कांग्रेस देश के लिए बनी, देश के लिए जो रही, वही आज एक परिवार में सीमित होकर देश विरोधी पाले में खड़ी दिखाई दे रही है। यह कांग्रेस के भविष्य के लिए शुभ होता यदि वह विपक्ष में रहकर भी अपने राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह करती। जब 1962 में चीनी आक्रमण के समय पूरा देश सेना के साथ खड़ा था, उस समय 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड़ में रा.स्व. संघ को पं. नेहरू ने आमंत्रित किया था।
जब सेना ने बांग्लादेश को पाकिस्तान के पंजे से मुक्ति के लिए सफल पराक्रम कर करीब 90 हजार पाकिस्तान के सैनिकों को आत्मसमर्पण करने को बाध्य किया तो पूरे देश का सीना गर्व से फूल गया, स्वयं विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में सेना के पराक्रम और इंदिराजी के निर्णय की सराहना की। जब देश का सवाल होता है, जब देश की एकता, अखंडता का सवाल होता है तो देश की एक ही आवाज होना चाहिए। ऐसे समय दलगत राजनीति को किसी कोने के खूटे पर लटका देना चाहिए। जिस तरह जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा लोकतंत्र को परिभाषित किया जाता है, उसी तरह राजनीति भी देश के लिए होती है। देश विरोधी राजनीति को देश की राजनीति नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस की जयचंदी राजनीति ही उसके पतन का कारण है। उसे यह सबक ध्यान में रखना होगा कि जन चेतना की कोप दृष्टि से वह बच नहीं सकती।
( लेखक - वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक हैं )