राजनाथ के कश्मीर दौरे से कितनी उम्मीद

राजनाथ के कश्मीर दौरे से कितनी उम्मीद
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राजनाथ के कश्मीर दौरे से कितनी उम्मीद

केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की जम्मू-कश्मीर यात्रा से लगा कि सरकार फिर एक प्रयोग करना चाहती है। पत्थरबाजों से शांति के मार्ग पर चलने की उम्मीद की गई है। छह हजार पथरबाजों को माफी दी गई। लेकिन सुरक्षा बल किस माहौल में कार्य कर रहे है ,इस पर भी विचार होना चाहिए। यह बताया कि जम्मू कश्मीर के कल्याण हेतु केंद सरकार अनेक योजनाएं लेकर आ रही है। इसी के साथ उन्होंने आतंकवादियों को कठोर कार्रवाई की चेतावनी दी। यह कहा कि उनके साथ कोई रियायत नहीं की जाएगी। जाहिर है कि गृहमंत्री ने शांति बहाली का बेहतर प्रस्ताव दिया है। लेकिन सवाल फिर भी बना रहेगा। क्या इस अपील का पत्थरबाजों और आतंकवादियों पर कोई असर होगा। पिछला रिकार्ड निराश करने वाला है। फिर भी गृहमंत्री का यह कहना ठीक है कि हम शांति की कोशिशों पर काम करते रहेंगे लेकिन आतंकवादियों तथा उनकी गतिविधियों का कठोर जवाब दिया जाएगा। सुरक्षाबलों को आॅपरेशन में हर तरह की छूट रहेगी साथ ही घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने की पाकिस्तान की कोशिशों को भी करारा जवाब मिलेगा। राजनाथ सीमा पर पाकिस्तानी गोलीबारी से पीड़ित परिवारों से भी मिले। बॉर्डर के हालात का भी जायजा लिया। कई प्रतिनिधिमंडलों से मुलाकात की। राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मुलाकात की और राज्य की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया। साथ ही रमजान के महीने में गृहमंत्रालय की तरफ से लागू किए गए सीजफायर की भी समीक्षा की। जम्मू के आरएसपुरा सेक्टर में बॉर्डर के लोगों से मिले। सीमा पर बन रहे चकरोई पोस्ट पर बंकरों का भी जायजा लिया। भविष्य बचाने के लिए उन सभी को माफी देने का फैसला किया गया जो पहली बार पत्थरबाजी में लिप्त थे।राजनाथ सिंह ने कहा कि बिना वजह अनुच्छेद 35ए मुद्दा बनाया जा रहा है। केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की है। यहां के लोगों की भावनाओं का सम्मान किया जाएगा। सरकार कश्मीर की समस्या सुलझाने में मदद करने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति से मिलने को तैयार है।

जम्मू कश्मीर में एकतरफा संघर्ष विराम भारतीय उदारता की मिसाल है। इसमें सभी मजहबों के प्रति सम्मान का भाव होता है। लेकिन यह तभी कारगर होता है जब दूसरा पक्ष भी इसके अनुकूल सद्भावना और सभ्यता दिखाए। अन्यथा ऐसे सभी प्रयास निरर्थक होते हैं। यह सही है कि केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर की स्थिति सुधारने के लिए अनेक मोर्चों पर कार्य किया है। इसमें आर्थिक ,सामाजिक और सुरक्षा के विषय शामिल हैं। आर्थिक उन्नति के लिए अनेक योजनाएं दी गई। केंद्र ने पर्याप्त सहायता दी है। यहां की आपदा में सेना के जवानों के राहत कार्य को भुलाया नहीं जा सकता। इसके अलावा पाकिस्तान के कारण सुरक्षा उपाय भी मजबूत किये गए हैं।
सीमा पार से फायरिंग के कारण हो रहे जानमाल के नुकसान से बचने के लिए सीमावर्ती इलाकों में बंकर बनाए जा रहे हैं। कठुआ, सांबा, जम्मू, रजौरी और पूंछ जिले में चौदह हजार बंकर बनाने के लिए गृहमंत्रालय चार सौ पन्द्रह करोड़ रुपये स्वीकृत कर चुका है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह को बताया गया कि इन बंकरों का निर्माण जुलाई से शुरू कर दिया जाएगा। इसके बाद उन्होंने इस पर जल्द-से-जल्द काम शुरू करने को कहा। उनका कहना था कि जानमाल की सुरक्षा को देखते हुए बंकरों के निर्माण में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। उन्होंने गोलीबारी में मवेशियों के मरने पर मिलने वाली मुआवजा राशि को भी बढ़ाने का निर्देश दिया।
बैठक में रमजान के महीने में आतंकियों के खिलाफ एकतरफा संघर्ष विराम से आतंकी हमले तो नहीं रुके हैं, लेकिन सुरक्षा बलों के खिलाफ पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है। इससे साफ होता है कि घाटी में आॅपरेशन रोके जाने का सही पैगाम गया है। केंद्र ने साफ कर दिया है कि रमजान के पवित्र महीने में सिर्फ सुरक्षा बल अपनी ओर से आॅपरेशन नहीं करेंगे, लेकिन आतंकी हमलों का पूरी ताकत से जवाब दिया जाएगा। राजनाथ सिंह ने नये सीमा सुरक्षा बल की दो बटालियन को तैयार करने के काम में भी तेजी लाने का निर्देश दिया। दो और बटालियन बनाने की योजना है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि शांतिपूर्ण प्रयासों से समस्याओं का समाधान होना चाहिए। लेकिन यह बात उनके ऊपर लागू नहीं होती जिनके शब्दकोश में अहिंसा या शांति जैसे शब्द होते ही नहीं हैं। ऐसे तत्व संघर्षविराम या कार्रवाई स्थगित करने को संबंधित पक्ष की कमजोरी समझते हैं। वैसे भी संघर्ष विराम का औचित्य तभी होता है ,जब दोनों तरफ से इसका ऐलान हो। एक पक्ष कार्रवाई स्थगित कर दे ,दूसरा पक्ष इसे घुसपैठ और मोर्टार दागने का अवसर मान ले ,तो इसे अदूरदर्शिता ही कहा जायेगा। ऐसा भी नहीं कि इस संबन्ध में किसी नए प्रयोग की आवश्यकता थी। भारत से बेहतर इसे कौन समझ सकता है। रमजान आम मुसलमानों के लिए पाक महीना है। लेकिन जब यह कहा जाता है कि आतंकियों का कोई मजहब नहीं होता तो उनके प्रति नीति में कोई बदलाव भी नहीं करना चाहिए। जम्मू कश्मीर का आम मुसलमान लड़ाई में शामिल नहीं है। वह परम्परागत रूप से रमजान मनाना चाहता है।

आतंकी तत्व इसमें भी बाधा उत्पन्न करते हैं। ऐसे में होना तो यह चाहिए कि आतंकियों के खिलाफ इस दौरान कार्रवाई को ज्यादा कठोर कर देना चाहिए। जिससे आम नागरिकों को परेशानी न हो। वह बेहतर माहौल में रह सकें। कहा जाता है कि दूध का जला छाछ भी फूँक कर पीता है। लेकिन कश्मीर घाटी में यह दिखाई नहीं देता । प्रत्येक रमजान पर भारत कार्रवाई बन्द कर देता है , एकतरफा संघर्ष विराम हो जाता है। लेकिन आतंकियों की सेहत पर इसका कोई असर नहीं होता। वह अपनी हिंसक गतिविधियां बढ़ा देते हैं।
जुम्मे की नमाज के बाद कश्मीर में हिंसक तत्वों ने सेना की गाड़ी पर हमला कर दिया। एक आत्मघाती पत्थरबाज सेना की गाड़ी के आगे कूद गया तथा गाड़ी से कुचलकर उसकी मौत हो गयी। अपनी जान बचाकर निकले जवान के खिलाफ अनेक संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया गया। ऐसी घटनाएं जोखिम में कार्य करने वाले सुरक्षा बलों के जवानों का मनोबल गिराती हैं। बताया गया कि आपरेशन रोके जाने के बाद आतंकी हमले तो नहीं रुके हैं, लेकिन सुरक्षा बलों के खिलाफ पत्थरबाजी की घटनाओंं में भारी कमी आई है। इससे साफ होता है कि घाटी में आपरेशन रोके जाने का सही पैगाम गया है। केंद्र ने साफ कर दिया है कि रमजान के पवित्र महीने में सिर्फ सुरक्षा बल अपनी ओर से आॅपरेशन नहीं करेंगे, लेकिन वह जवाब अवश्य देंगे।

राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर में रह रहे पाकिस्तानी शरणार्थियों के पुनर्वास योजना, राज्य के विकास के लिए प्रधानमंत्री के विशेष पैकेज के चालू योजनाओं की भी समीक्षा की। राजनाथ सिंह ने घाटी के इस दौरे में कुपवाड़ा के हालात पर विस्तार से चर्चा की। यहां सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों से मुलाकात करेंगे। इसके अलावा वहां गुर्जरों, पहाड़ियों और कुपवाड़ा के लोगों के साथ-साथ सुरक्षाबल के अधिकारियों के साथ भी बातचीत करेंगे। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि सैन्य अभियान के महानिदेशकों को दोबारा मुलाकात कर इस पर बातचीत करनी चाहिए। उन्तीस मई को भारत व पाकिस्तान के सैन्य अभियान महानिदेशकों ने संघर्ष विराम के 2003 के समझौते को पूरी तरह लागू करने पर सहमति जताई थी। इससे जाहिर है कि इतने वर्षों से जिस समझौते पर अमल किया जाता रहा है , उसका कोई भी सकारात्मक परिणाम नहीं हुआ है। वस्तुत: संघर्षविराम शब्द सीमापार के आतंकवादियों के लिए नहीं है। स्थानीय नागरिकों की सहूलियत के लिए यथासंभव कदम उठाए जाते हैं। लेकिन सीमाओं की सुरक्षा से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता। जम्मू कश्मीर यात्रा से पहले राजनाथ ने दिनेश्वर शर्मा व खुफिया विभाग के शीर्ष अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया था। दिनेश्वर शर्मा को वहां दूत बना कर तैनात किया गया था। घाटी में आतंकवादियों के खिलाफ वहां के आम युवकों को मुख्यधारा में शामिल करना बड़ी समस्या है। गृहमंत्रालय ने युवकों के लिए योजना की नई रूपरेखा तैयार की है। अमरनाथ यात्रा को निर्विघ्न सम्पन्न कराने की चुनौती भी है। राजनाथ सिंह ने इन सभी मुद्दों पर ध्यान दिया। जम्मू कश्मीर के लोगों की भलाई की दिशा में रणनीति बनाई गई है। लेकिन यह सच है कि घाटी के मुठ्ठी भर लोग स्थिति बिगाड़ने का कार्य करते है। इनके खिलाफ कठोर कार्रवाई रुकनी नहीं चाहिए। जान को जोखिम में डालकर घाटी की आंतरिक सुरक्षा में लगे सैनिकों के बारे में भी सोचना चाहिए। दुश्मनों से लड़ना आसान होता है ,लेकिन जब अपने ही दुश्मन जैसी हरकतें करने लगें तो मुश्किल होती है। जिस प्रकार सुरक्षा बलों के वाहन घेर कर पत्थर फेंके जाते है,वह विचलित करने वाला मंजर होता है। इस पर कठोर नियंत्रण के प्रभावी प्रयास होने चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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