भाजपा : तीस दिन, तीन हार ...कि दिल अभी भरा नहीं
भोपाल। एक सामान्य राजनीतिक समझ रखने वाला भी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के निर्णयों को देखकर हैरान है। हतप्रभ है। विधानसभा के नतीजे 11 दिसम्बर को आए है। आज 11 जनवरी है। इस एक माह में भाजपा एक मजबूत विपक्ष होने के बावजूद जिस प्रकार प्रदर्शन कर रही है, वह चिंताजनक है, दु:खद है।
ऐसा इसलिए कि कांगे्रस बैसाखी पर राज्य कर रही है, आने वाले समय में वह गलतियां नहीं करेगी, ऐसी कोई उम्मीद नहीं है। कारण संकेत मिलने लगे है। पर लगता है भाजपा का विधानसभा चुनाव में हारने से अभी मन भरा नहीं है। पहले वह जबरन विधानसभा अध्यक्ष चुनाव हारी अब आज उसने उपाध्यक्ष का चुनाव हारकर एक हैट्रिक बना ली।
लिखना दोहराव ही होगा कि प्रदेश विधानसभा के नतीजे साफ बताते है कि कांगे्रस जीती नहीं है, भाजपा हारी है। स्थानीय विधायक एवं कतिपय मंत्रियों को लेकर जबर्दस्त नाराजगी थी। टिकट वितरण में कहीं-कहीं राजनीति के नीति शास्त्र के लिहाज से आपराधिक लापरवाही, केन्द्र सरकार के कतिपय निर्णय के चलते भाजपा ने कम से कम 15 से 20 सीटें कांगे्रस को सहज में उपहार में दे दी। परिणाम यह रहा भाजपा 109 पर टिक गई। लेकिन नतीजे आने के बाद अगले एक सप्ताह तक प्रदेश का मतदाता एवं भाजपा का मूल कार्यकर्ता दुखी दिखाई दिया। उसे लगा कि निर्णय गड़बड़ हो गया। कारण कांगे्रस मुख्यमंत्री को लेकर, फिर मंत्रियों को लेकर आपस में ही उलझती दिखाई दी। प्रदेश को यह भी ध्यान में आया कि कांगे्रस सत्ता में आते ही राजनीतिक प्रतिशोध पर उतारू है। यह ऐसा समय था, जब भाजपा नेतृत्व को अपना बिखरा घर संभालना था, अवसरवादिता की टूट-फूट कहां है, भ्रष्टाचार के चलते सीलन कहां है, कार्यकर्ता मानसिक अवसाद में क्यों है, यह देखना था। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने शुरूआत ठीक की। प्रदेश कार्यालय गए, कार्यकर्ताओं से मिले। फिर उन्हें अचानक लगा भी कि वह टाइगर हैं और जिन्दा भी। इन बयानों ने संदेश दिया कि हार पच नहीं रही है।
इस एक माह में ग्वालियर चंबल संभाग से लेकर मालवा निमाड़ तक दुर्गति क्यों हुई, बुंदेलखण्ड में क्यों पिछड़े, विंध्य के सकारात्मक परिणाम क्या कहते है, इस पर विमर्श गंभीरता से कहीं हुआ हो यह दिखाई नहीं दिया, पहले ही दिन कांगे्रस के वचनपत्र को लेकर बैठे और उनसे कर्ज माफी करवा ली। वंदेमातरम् भी उन्हें न गाने देते तो भी चलता। कारण कांगे्रस का यूं भी वंदेमातरम् में ज्यादा विश्वास नहीं है। पर भाजपा ने कांगे्रेस से और बेहतर वंदेमातरम् गवाकर अपने राष्ट्रीय कर्तव्य की पूर्ति कर ली। यह मुद्दा शांत होते ही विधानसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव लडऩे की भाजपा नेतृत्व की मंशा उनके राजनीतिक समझ को ही कठघरे में खड़ा करती है। परंपरा के अनुसार कांगे्रस का अध्यक्ष बनता तो भाजपा को उपाध्यक्ष मिलना ही था पर चुनाव करवाकर उसने कांगे्रस को यह अवसर दे दिया कि वह बहुमत के आंकड़े से भी चार कदम आगे है। और भाजपा 109 पर ही है। पांच साल के लिए विपक्ष का जनादेश भी महत्वपूर्ण है। कांगे्रस अपनी गलतियों से गिरे तो भाजपा बेशक राजनीतिक लाभ ले पर सरकार गिराने के जबरन संकेत देकर वह न केवल कांगे्रस को मजबूत कर रही है अपितु बार-बार हारकर यह बता रही है कि दिल अभी भरा नहीं।