क्या भाजपा नेतृत्व अब सबक लेगा ?

क्या भाजपा नेतृत्व अब सबक लेगा ?
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दाग धुलने में थोड़ा समय लगेगा पर भाजपा नेतृत्व इससे सीख लेगा

- अतुल तारे

राजनीति में सत्ता एक अत्यंत महत्वपूर्ण साधन है, यह एक सच है। पर साधन को साध्य मानने की परम्परा कितना विकृत रूप लेे सकती है,यह महाराष्ट्र भुगत रहा है,देश देख रहा है। जनमत महाराष्ट्र की जनता ने बेहद प्रभावी एवं सांकेतिक दिया था। जनता किसी से ही पूर्ण रूप से आश्वस्त नहीं थी। वह भाजपा- शिवसेना पर अपना सम्पूर्ण विश्वास नहीं कर रही थी इसीलिए उसने दोनों के कान उमेंठे पर इतने भी नहीं कि कान पकड़ कर हाथ में दे दिए हो। हां यह कहा कि कुछ गलतियों के बावजूद आप मिल कर प्रदेश का नेतृत्व करें। जाहिर है दोनों के प्रति नाराजगी का लाभ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस को मिलना था मिला भी,पर यह लाभ सत्ता के लायक नहीं था। यह अवसर था एक प्रभावी विपक्ष के लिए। पर जनादेश आते ही शिवसेना ने जो लालसा दिखाई वह साधन को ही साध्य बनाने की थी। एक सामान्य शिव सैनिक भी शिवसेना के इस रूप को देख कर दुखी था। भारतीय जनता पार्टी ने थोड़े ही समय बाद राज्यपाल के निमंत्रण के बावजूद सरकार बनाने से मना कर प्रदेश ओर देश का दिल जीत लिया। इधर कांग्रेस,शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस का सत्ता के लिए जो बेमेल रिश्ता बनने की शुरुआत हुई वह देख कर साफ में समझ आ रहा था कि यह तीनों दल सत्ता के लिए कितना नीचा गिर सकते हैं। अच्छा होता, भाजपा यह होने देती, कुछ संयम रखती। पर हर हाल में सत्ता का स्वाद चख चुकी भाजपा महाराष्ट्र में एक बड़ा राजनीतिक दांव चलने की पर्दे के पीछे तैयारी में थी जिसे देश ने सुबह-सुबह शपथ ग्रहण के रूप में देखा। जैसे ही भाजपा के देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ली ,तीनों दल जो एक दूसरे से आंखें तरेर रहे थे,एकदम करीब आए। सत्ता के लिए तीनों की लड़ाई अब संयुक्त रूप से भाजपा के खिलाफ हो गई। परिणाम जो अजीत पवार के साथ विधायक सुबह राज भवन पहुंचे थे शाम तक लौटने लगे । संकेत वहीं से मिलने लगे थे। पर हारा हुआ जुआरी ज्यादा खेलता है इसलिए भाजपा ने आयातित नेताओं को बहुमत जुटाने का जिम्मा सौंपा। पर जिसकी दम पर वह यह कह रही थी वह भी पलट गए। मराठा नेता शरद पवार ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उन्हें चुनौती देना आसान नहीं है,उन्हें विश्वास में लेकर सहयोग लिया जा सकता है पर धोखे में रख कर नहीं।

आज का दिन,आज की यह घड़ी निश्चित रूप से भाजपा के लिए कठोर आत्म चिंतन की है। देश ने एक बड़ी अपेक्षा के साथ उसे केंद्र में भूमिका दी है जिसे वह शानदार निभा भी रही है। इस भूमिका में राज्य भी उसके साथ हों यह अपेक्षित है पर यह लोकतंत्र है,हर राज्य में भाजपा की ही सरकार रहे यह जिद ठीक नहीं। विपक्ष होना ही चाहिए और खासकर तब और जब ऐसा विपक्ष हो जो सत्ता के लिए अमर्यादित रूप से गिरने को आतुर। अच्छा तो यह है ओर राजनीति भी यही कहती है कि उसे गिरने दे बजाय उसकी प्रतियोगिता में वह भी गिरे।

अभिनंदन अभी के विपक्ष ओर कल के सत्ता पक्ष का जिसने महाराष्ट्र में भाजपा को उस पाप से बचाने का जो वह कर चुकी थी। यह दाग धुलने में थोड़ा समय लगेगा पर भाजपा नेतृत्व इससे सीख लेगा ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।

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