समाधान वार्ता से ही होगा, आंदोलन से नहीं: नरेंद्र सिंह तोमर

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से बातचीत
कृषि कानूनों का विरोध किसानों के साथ अन्याय
नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि कृषि कानूनों का विरोध किसानों के साथ सबसे बड़ा अन्याय है। लोकतंत्र में असहमति, वाद-विवाद और संवाद होना ये उसकी खूबसूरती है लेकिन विरोध के लिए विरोध करना या हिंसा के जरिए अपनी बात मनवाना लोकतंत्र के दायरे में नहीं हो सकता। श्री तोमर ने कहा कि समस्या का हल वार्ता से संभव है, आंदोलन से नहीं। श्री तोमर किसान आंदोलन से उपजे हालातों के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराते हैं। पिछले तीन महीने से चल रहे किसान आंदोलन में सरकार की तरफ से प्रमुख वार्ताकार रहे श्री तोमर ने किसानों के साथ कई दौर की बातचीत की। लेकिन अभी तक कोई सर्वमान्य हल नहीं निकलने के बावजूद उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। इसके पीछे उनका विनम्र स्वभाव और मितभाषी होना है। बोलने के बजाय काम में यकीन रखने वाले श्री तोमर ने मोदी सरकार में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। सरकार में जब भी संकट आया है सरकार के अंदर और बाहर कृषि मंत्री ने बखूवी जिम्मेदारी निभाई है। यही कारण है कि सरकार या संगठन में जिम्मेदारी देने की बात आती है तो प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान सहज ही श्री तोमर पर आ जाता है। यह श्री तोमर की निपुणता ही है कि किसान आंदोलन धीरे-धीरे विभक्त होकर शांत अवस्था में लौटता नजर आ रहा है। किसान आंदोलन से लेकर देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति, कोरोना से उपजी स्थिति, पांच राज्यों में चुनाव और मध्य प्रदेश के विभिन्न पहलुओं पर श्री तोमर ने 'स्वदेश' के साथ लंबी बातचीत की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लिए सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का जो नारा दिया था, उसका सही मायने में मोदी सरकार ने इसका ईमानदारी से पालन भी किया है। जिससे भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सशक्त बनकर उभरा है। कोरोना संकट के दौर में प्रधानमंत्री मोदी ने जिस दृढ़ता से देश का संचालन किया, उससे देश व दुनिया उनकी कायल है। यह पूछे जाने पर कि भाजपा का तो लगातार विस्तार हो रहा है, जबकि एनडीए का आकार सिमट रहा है। क्या पार्टी सहयोगियों को संभाल नहीं पा रही या उनके प्रभाव को समाप्त करने की रणनीति पर है। इसके जबाव में श्री तोमर ने कहा कि भाजपा विशाल वटवृझ की तरह है जिसकी विशेषता आम सहमति के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं। एनडीए से अगर कोई इक्का-दुक्का दल अपने-अपने कारणों से गठबंधन से अलग होते हैं, तो इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। पंजाब में भाजपा अकाली दल के बिना खुद को कहां पाती है? क्या अकाली दल को साथ रखना उसकी राजनीतिक भूल थी? इस पर तोमर ने कहा कि अधिकांश राज्यों में भाजपा या उसके गठबंधन वाली सरकार है। पंजाब में कांग्रेस की सरकार है, जहां भाजपा के स्थानीय नेताओं के सहयोग से संगठन की गतिविधियां सक्रिय रूप से चलाई जा रही है। यह तथ्य महत्वपूर्ण रूप से गौर करने योग्य है केंद्र में मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा की भारी बहुमत से सरकार बनने के बाद सारा देश जानता है कि एक के बाद एक कितने राज्यों में भाजपा सरकार बना चुकी है, यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। पंजाब का भी यह क्रम आएगा।
पांचों राज्यों में परिणाम हमारे पक्ष में
इस महीने के अंत से पांच राज्यों में होने वाले चुनाव को लेकर कृषि मंत्री जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। इसके लिए उन्होंने इंतजार करने को कहा है। श्री तामेर ने कहा कि पिछले कुछ समय में हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे सबके सामने हंै कि किस तरह भाजपा ने देश के ज्यादातर हिस्सों में बहुत ही मजबूती से अपने पैर जमाए हैं, इस बार भी 5 राज्यों के विस चुनावों में भाजपा के पक्ष में यहीं दृश्य परिलक्षित होने की मुझे पूरी उम्मीद है। जहां तक विपक्ष का सवाल है तो उसका परिदृश्य से बाहर हो जाना बताता है कि उसका अब कोई वजूद नहीं है। यही कारण है कि विपक्षी दल लगातार व तेजी से अपना जनाधार खोते जा रहे हैं, ऐसे में ऊलजलूल आरोप लगाना व नित-नए शिगूफे छोडना विपक्षी नेताओं की आदत-सी बन गई है। हाल के कुछ महीनों में किसान आंदोलन ने सरकार की चिंता बढ़ाई है, क्या कृषि मंत्रालय की विकास योजनाओं पर इसका कोई प्रतिकूल असर पड़ा? इसके जबाव में श्री तोमर ने कहा कि किसान आंदोलन कुछ ही संगठनों द्वारा संचालित है, जो बहुत सीमित स्वरूप में है। इससे कृषि मंत्रालय की विकास योजनाओं पर प्रतिकूल असर पडने का कोई सवाल ही नहीं उठता। आप आंकड़े उठाकर देख लीजिए जीडीपी में कृषि क्षेत्र का सकारात्मक योगदान ने उम्मीद जगाने का काम किया है।
भाजपा का चिंतन स्वदेशी रहा है, पर केन्द्र की नीति विदेशी निवेश पर केन्द्रित है। खेती के क्षेत्र में भी विदेशी बाजार आ रहे हैं। आप इसे किस तरह देखते हैं? इसके जवाब में कृषि कल्याण मंत्री ने कहा कि सरकार गठन के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने लंबे समय से चली आ रही दूरी को पहचान कर उन्हें भरने के लिए ठोस उपाय किए हैं। निजी निवेश के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों को मजबूती देने का फैसला भी इसी तारतम्य में लिया गया है। हमारी सरकार के पूर्ववर्ती दल सत्ता में लंबे समय तक काबिज रहने के दौरान देश के खजाने को खाली कर गए, कर्जे का बोझ देश पर बढ़ा गए, यहीं वजह है कि वर्तमान सरकार को देशहित में कई सख्त उपाय करना पड़े हैं। किसानों की आमदनी दोगुनी करने व भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डालर की बनाने का लक्ष्य भी तय किया है। आप देखिए वह दिन दूर नहीं जब भारत आत्मनिर्भर बनेगा।
सिंधिया भाजपा में आत्मसात
ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद कई तरह के कयास लगाए जा रहे है। खुद आपने कहा था कि दूध में शक्कर घुलने में समय लगता है। कितना और समय लगेगा? अनुभव यह भी आ रहा है कि कहीं-कहीं मिठास की बजाय कड़वाहट भी आ रही है। इस पर श्री तोमर का कहना है कि सिंधिया जी को लेकर अटकलबाजियां वे लोग ही करते हैं, जिन्हें सिंधिया जी छोडकर आए हैं। मेरा मानना है कि सिंधिया जी भाजपा से आत्मसात हो चुके हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं और उनमें एक-दूसरे के प्रति सम्मान है। जहां तक सिंधिया जी की ग्वालियर में सक्रियता का सवाल है तो ग्वालियर का होने के नाते अगर वे सक्रियता बढ़ाते हैं तो इस पर सवाल करना या किसी और रूप में लेना उचित नहीं है।
अटकलों पर लगाम लगाने की कोई वैक्सीन नहीं
वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में आपका राजनीतिक लक्ष्य क्या है? एक चर्चा रहती है कि आप प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं? सच क्या है? इस पर मुस्कुराते हुए श्री तामेर ने कहा कि उनका ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है। भाजपा में किसी भी नेता या कार्यकर्ता का अपना कोई लालच नहीं होता है। हम सब सदैव संगठन के लिए समर्पित होकर कार्य करते हैं। मेरा राजनीतिक लक्ष्य सिर्फ जनसेवा है। जहां तक मुख्यमंत्री पद की बात है तो इतना ही कहूंगा कि राजनीति में चर्चाएं तो सब तरह की होती रहती है, अटकलों पर लगाम लगाने की कोई वैक्सिन अभी तक नहीं बनी है। जहां तक आपका सवाल संसदीय क्षेत्र बदलने को लेकर है तो भाजपा में संगठन ही सर्वोपरि होता है, जिस किसी को, जो भी दायित्व दिया जाता है, वह पूरी तरह से संगठन के ही निर्णय पर आधारित होता है। मैंने कभी यह मांग नहीं कहा कि मुझे कहां से टिकट दिया जाए, संगठन अपने मापदंडों के अनुरूप फैसला करता है।
एमएसपी जारी रखने के लिए सरकार कटिबद्ध
कृषि मंत्री ने किसान आंदोलन से संबंधित प्रश्नों का जवाब भी विस्तार से दिया। कृषि कानूनों को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं, खासकर इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिलने की बात की जा रही है। किसान यह भी पूछ रहे हैं कि एमपीएमसी मंडियों के नहीं रहने पर आढ़तियों व कमीशन एजेंटों का क्या होगा? इन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिम्मेदारी संभालने के बाद से सरकार ने गांव-गरीब-किसान-किसानी को प्राथमिकता पर रखा है और इसी अनुरूप देश के किसानों एवं कृषि क्षेत्र की प्रगति के लिए एक के बाद एक कदम उठाए जा रहे हैं। एमएसपी बंद किए जाने की आशंका निराधार है। यह आंशका भी निराधार है कि एपीएमसी मंडियां बंद हो जाएंगी। सरकार ने संसद में व अन्य स्तर पर भी अनेक बार स्पष्ट किया है कि एमएसपी जारी रहेगी और मंडियां भी बंद नहीं होंगी। यह पूछे जाने पर कि एमएसपी को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं, क्या एमएसपी पर कोई गारंटी कानून लाया जा सकता है? एमएसपी की गारंटी संबंधी बात आखिर विधेयक में क्यों नहीं है? इसके जवाब में श्री तोमर ने कहा कि एमएसपी खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है। एमएसपी जारी रहेगी, जिसके लिए हम लिखित आश्वासन भी देने को तैयार हैं। सरकार द्वारा संसद में भी यह बात महत्वपूर्ण रूप से कही जा चुकी है।
नए कृषि कानून लघु किसानों के लिए कितने लाभकारी साबित होंगे? इसके जवाब में श्री तोमर ने कहा कि देश में 86 प्रतिशत छोटे व सीमांत किसान हैं। नए कानूनों के प्रावधान के तहत किसानों को अब कृषि उपज बिक्री के लिए वैकल्पिक बाजार उपलब्ध हो गया है। इससे उन्हें उचित मूल्य मिलेगा, वहीं कांट्रेक्ट फार्मिंग के अधिनियम के अनुरूप, किसान अपनी फसल का बवाई पूर्व ही सौदा तय कर सकते हैं, जिससे निश्चित ही उनकी आमदनी बढ़ेगी। नए कानून इन छोटे किसानों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले हैं, जिससे उनका जीवन स्तर ऊंचा उठेगा। एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि मूल्य आश्वासन के बाद बड़े कारोबारी हेराफेरी नहीं कर पाएंगे। नए कानूनों में किसानों के संरक्षण के लिए जरूरी प्रावधान पूरी जिम्मेदारी के साथ किए गए हैं।
यह पूछे जाने पर कि किसानों को लगातार डर दिखाया जा रहा है कि अनुबंधीय खेती से वे थोक विक्रेताओं, प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज और निजी कंपनियों के जाल में फंस जाएंगे। क्या किसान कंपनियों से फसल की कीमत का मोलभाव कर पाएंगे? गुणवत्ता के आधार पर कंपनियां क्या फसल की कीमत कम कर सकती हैं या खरीद बंद भी कर सकती हैं? इस पर श्री तोमर ने कहा कि ये नए कानून कितनी मजबूती से किसानों के हितों का संरक्षण करते हैं, इसलिए किसानों को न तो डरना चाहिए, ना ही किसी के बहकावे या भ्रम में आना चाहिए। ये सारी आशंकाएं निराधार है। अधिनियम में ये कहां लिखा है कि किसानों को अपनी उपज कंपनियों को ही बेचना है। वास्तविकता यह है कि यह तो किसानों को तय करना है कि वे अपनी उपज किसे बेचना चाहते हैं। वे छोटे-बड़े खरीददार या सीधे उपभोक्ताओं को भी बेच सकते हैं। किसान और निजी कंपनियों के बीच विवाद की स्थिति में 'डिवीजनल मजिस्ट्रेट' की भूमिका के सवाल पर कहा कि सरकार ने आंदोलन कर रहे नेताओं के समक्ष यह यह प्रस्ताव दिया था कि यदि आपको कोई शंका हो तो अधिनियम में संशोधन करके न्यायालय जाने का प्रावधान जोड़ा जा सकता है, लेकिन आंदोलनकर्ता सकारात्मक रूख ही नहीं अपना रहे हैं, सरकार ने तो अपनी ओर से श्रेष्ठ प्रस्ताव दे दिया था, लेकिन संगठनों में एका नहीं होने से उनके नेता अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग बयानबाजी करते रहते हैं। जबकि, समाधान तो वार्ता से ही निकलता है, सिर्फ आंदोलन से नहीं।
नए कानूनों में टकराव एपीएमसी व एमएसपी को लेकर है। कहा जा रहा है कि निजी क्षेत्र एपीएमसी मंडियां बंद करवाना चाहता है। किसानों को डर है कि एपीएमसी बंद होंगी तो एमएसपी भी बंद हो जाएगा। किसानों के अंदर घुसे इस डर को सरकार कैसे दूर करेगी? इस पर श्री तोमर का कहना है कि आम किसानों को एपीएमसी व एमएसपी सहित किसी भी बात का डर है नहीं, सिर्फ इक्का-दुक्का राज्य के नेता ही ये आंदोलन चला रहे हैं। एपीएमसी राज्यों के विभिन्न एक्ट के तहत है, केंद्र सरकार इसे बंद नहीं कर रही, बल्कि केंद्र ने तो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में कृषि सुधार के सतत अनेक उपाय किए हैं, अभी आम बजट में यह प्रावधान भी किया गया है कि 1 लाख करोड़ रूपए के कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड से एपीएमसी मंडियों को मजबूत बनाया जा सकेगा। लोकतंत्र में कोई भी सरकार अपने अन्नदाता किसानों का अहित कभी चाह ही नहीं सकती।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एमएसपी को समाप्त नहीं करने व सरकारी खरीद जारी रखने का किसानों को आश्वासन दे चुके हैं फिर सरकार यह भरोसा लिखित में क्यों नहीं दे देती? इस पर श्री तोमर ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रधानमंत्री जी कह चुके हैं व मैंने भी संसद में यह बात कही है कि एमएसपी जारी थी, जारी है और जारी रहेगी। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने किसानों से बातचीत के लिए चार सदस्यीय समिति गठित की थी। इस समिति ने अब तक क्या प्रयास किए हैं? इस पर उन्होंने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समिति के गठन और इसके द्वारा आगे की कार्यवाही को लेकर मेरे द्वारा कोई टिप्पणी करना उचित नहीं है।