तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन...

तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन...
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प्रसंगवश - अतुल तारे

एक बहुचर्चित कथा है। ग्वालियर नगर निगम के चुनाव परिणाम पर प्रासंगिक है। एक राजा था। उसके राज्य में अकाल पड़ा। उसे सपना आया कि राज्य के शिव मंदिर पर प्रजा एक -एक लोटे से दूध का अभिषेक करेगी तो इंद्रदेव प्रसन्न होंगे। प्रजा ने सोचा सभी दूध का अभिषेक कराएंगे, हमने एक लोटा पानी डाल भी दिया तो क्या अंतर आना है, बारिश हो ही जाएगी। इस कहानी को वर्ष 2022 के नगर निगम चुनाव में भाजपा ने पूरी जिम्मेदारी के साथ दोहराया परिणाम सामने हैं।

एक टिप्पणी अब भाजपा के वरिष्ठ नेता की। यद्यपि यह टिप्पणी उन्होंने कटाक्ष में की थी, पर आंकड़ों के लिहाज से वह गलत भी नहीं थे। उन्होंने कहा- भाजपा पिछला नगर निगम चुनाव लगभग एक लाख से जीती है, अब सिंधिया जी भी भाजपा में आ गए हैं। कम से कम 50 हजार जोड़ लेना चाहिए। जीत 1.5 लाख की होगी। यद्यपि वह यह व्यंग्य में कह जरूर रहे थे, पर वस्तुत: वह भाजपा के जमीनी हालात से चिंतित थे। पर परिणाम होना यही चाहिए था। परिणाम क्या है... सामने है।

यह चुनाव नतीजे भाजपा के लिए एक तमाचा है। कांग्रेस यह चुनाव जीती नहीं है। जनता ने भाजपा को बुरी तरह से खारिज किया है। लोकतंत्र में हार-जीत चलती रहती है। पर 57 साल बाद केन्द्र से लेकर राज्य तक, राज्य से लेकर महानगर तक इतनी अनुकूलताएं हो! पूरे चुनाव प्रचार अभियान में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह रोड शो करे, जगह-जगह सभाएं ले। दो-दो केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया पसीना बहाएं प्रदेश के मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर, प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट, सांसद विवेक शेजवलकर प्रचार करे। पूर्व मंत्री माया सिंह, जयभान सिंह पवैया सहित समूची भाजपा रात दिन एक करें। संगठन के जानकार सर्व श्री आशुतोष तिवारी, विजय दुबे रण्नीति बनाए। भाजपा की जिला इकाई घर-घर जाए। और सामने कांग्रेस का प्रत्याशी अकेला हो और परिणाम इतना प्रतिकूल आए, तो दो बातें स्पष्ट है। पहला भाजपा का संपूर्ण प्रचार अभियान पहले दिन से दिशाहीन, आत्म मुग्धता का ही शिकार नहीं था, बल्कि जीत का श्रेय हमें मिले, इसके लिए वह दूसरे की लाइन छोटी करने में जुटा रहा। यह सच है कि सत्ता विरोधी लहर कई बार रहती है, पर पूरे प्रचार अभियान में भाजपा नेतृत्व अपने कार्यकर्ताओं को काम पर लगा ही नहीं पाया। न आम मतदाताओं से उसने संवाद एवं संपर्क की कोशिश की। वह यह मानकर चल रहा था कि जीतना तो है ही, वह इन 20 दिनों में अपनी झांकी जमा लें।

इधर कांग्रेस प्रत्याशी शोभा सिकरवार के पति एवं विधायक सतीश सिकरवार एवं उनके परिवार ने सूक्ष्म प्रबंधन पर जोर दिया और वह भाजपा के परंपरागत वोट में भी सेंध लगाने में सफल रहे।

भाजपा की एक बड़ी भूल आम आदमी पार्टी को 'अंडर एस्टीमेट' करना रहा। इसका संकेत लेखक ने चुनाव के दौरान भी मतदान के बाद भी दिया था। भाजपा रणनीतिकार यह मानकर चलते रहे कि आप कांग्रेस के वोट काटेगी। आप मुस्लिम समाज के वोट काटेगी। यह हमे मिलते नहीं है। परिणाम बता रहे हैं आप भाजपा की पूंजी भी ले उड़ी। यही नहीं केंद्र एवं प्रदेश की नीतियों से मुस्लिम बाहुल्य वार्ड 55 अवाडपुरा में भाजपा जीत रही है। भाजपा के रणनीतिकार जमीनी सच्चाई से कितने बेखबर हैं यह इससे ध्यान में आता है।

2023 अब दूर नहीं। चुनाव परिणाम के प्रकाश में भाजपा नेतृत्व को चाहिए कि वह सवाल करे भाजपा ग्वालियर के संपूर्ण नेतृत्व से, इस अंदाज में और पूरी सख्ती के साथ

तू इधर उधर की न बात कर

ये बता कि काफिला कैसे लुटा?

मुझे रहजनो से गिला तो है

पर सवाल तेरी रहवरी का है।

यह सवाल आवश्यक इसलिए भी है कि जमीनी हालात इस समय दुष्यंत के इस शेर से समान हैं।

तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं

कमाल ये है कि फिर भी तुम्हे यकीन नहीं।

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