'रामलला' के समक्ष एक 'दृष्टिपथ'
अयोध्या। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मैं देख रहा हूँ ,मेरी भारत माता विश्व को मार्गदर्शन देने के लिए सिंहारूढ़ हो रही है। यह समय उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ के ठीक पहले का है। वियात विचारक स्व. दाोपंत ठेंगड़ी ने 1970 में कहा था कि सन् 2000 आते -आते सोवियत संघ बिखर जाएगा और अमेरिका अपने ही बोझ तले चरमराने लगेगा। समय 1989। कारसेवा के समय राष्ट्र ऋ षि स्व. सुदर्शनजी ने कहा था, अब वह दिन दूर नहीं ,21वीं सदी के पहले ही दो दशक में भारत एक वैश्विक पहचान के साथ खड़ा होगा। और हां, अभी-अभी राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास के अवसर पर 5 अगस्त 2020 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा था, अयोध्या में मंदिर अब बन रहा है, अब हर घर को अयोध्या बनाना है, मन की अयोध्या को सजाना है।
स्वामी विवेकानंद से लेकर डॉ. मोहन भागवत तक ये सभी सिर्फ विचारक मात्र नहीं हैं, समय के पार देखने वाले दृष्टा हैं। विवेकानंद ने जब कहा था, भारत पराधीनता की दासता में जकड़ा हुआ था। स्व. ठेंगड़ी जी ने जब कहा तब सोवियत संघ और अमेरिका एक महाशक्ति थे। स्व. सुदर्शनजी ने जब यह कहा कि भारत एक वैश्विक पहचान को प्राप्त करेगा, भारत एक घोर विस्मृति के अंधकार में था। ठीक ऐसे ही जब डॉ. भागवत ने कहा कि मन की अयोध्या को सजाना है, हर घर को अयोध्या बनाना है, तब कौन जानता था कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या धाम सिर्फ पंचकौसी अयोध्या धाम ही नहीं होगा समूचा देश होगा, विश्व होगा। अद्भुत अविस्मरणीय अनिर्वचनीय।
आज 'रामलला' सिर्फ जन्मभूमि पर ही प्रगट नहीं हुए हैं ,हर घर में हुए हैं। और सिर्फ राम नहीं आएं हैं राम के साथ भारत का स्व लौट आया है, जैसा कि डॉ. भागवत ने कहा। यह मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा नहीं है, भारतीय संस्कृति के मूल्यों की वैश्विक जगत में प्राण-प्रतिष्ठा का काल है। यह वाकई देश का अमृतकाल है। विधर्मी आसुरी शक्तियों का प्रलाप था कि राम मंदिर बनेगा तो देश में आग लग जाएगी। इसका उत्तर आज देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दे दिया। उन्होंने कहा, राम भारत की आस्था है ,ऊर्जा है। राम भारत का आधार है, राम भारत का विचार है। राम भारत की चेतना भी है और चिंतन भी। राम नेति भी है और नीति भी। राम प्रभाव भी है और प्रवाह भी। राम नित्यता भी है और निरंतरता भी।श्री मोदी ने सच ही कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि ईश्वर ने हमें कालजयी पथ के शिल्पकार के रूप में चुना है। हजारों वर्ष के बाद की पीढ़ी, राष्ट्र निर्माण के हमारे कार्यों को याद रखेगी, इसलिए यही समय है यही समय है।
समय के इसी चक्र को डॉ.भागवत ने अपने उद्बोधन में परिभाषित करते हुए युगानुकूल आचरण करने का देश को पाथेय दिया। डॉ. भागवत ने कहा कि प्रामाणिकता, संवेदना, व्यक्तिगत एवं सामूहिक अनुशासन का पालन करते हुए हमें सबको साथ-साथ लेकर चलना है। हमने ऐसा किया तो डॉ. भागवत ने फिर एक भविष्यवाणी की कि मंदिर निर्माण पूरा होते-होते भारत विश्व गुरु बन जाएगा। राम त्रेता युग के थे। कृष्ण द्वापर के, हम कलियुग में है। राम के जीवन में मर्यादा थी, पर कृष्ण को मर्यादाओं को तिलांजलि देनी पड़ी, धर्म की स्थापना के लिए। आज भी हम धर्मयुद्ध के ठीक बीच में ही खड़े हैं। राम मंदिर ने जहां एक ओर सज्जन शक्तियों को एक सूत्र में पिरोया है, वही विधर्मी शक्तियां भी छल प्रपंच के अंतिम शस्त्र चलाने की तैयारी में है।
अत: यह समय शिथिलता का कतई नहीं है। राम मंदिर की प्राण -प्रतिष्ठा एक नए अध्याय का प्रारंभ है। राम के मूल्यों की समाज जीवन में प्राण-प्रतिष्ठा के लिए कृष्ण की युक्ति एवं सूत्र भी अनिवार्य है। अत: आने वाला दशक न सिर्फ भारत भूमि के लिए अपितु विश्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होने वाला है। राम राज्य की संकल्पना का अर्थ दैहिक देविक भौतिक तापा राम राज्य काहूं नहीं व्यापा। आदर्श के उच्चतम प्रतिमान की स्थापना अभी शेष है और यह मंत्र भारत को ही अखिल विश्व को देना है। महामना पंडित मदनमोहन मालवीय ने कहा था 'हाँ मैं भारत की चिंता करता हूँ ,हाँ मैं भारत की चिंता करता हूँ । कारण मैं जानता हूँ कि विश्व कल्याण का मार्ग भारत से होकर ही निकलेगा।' राम जी हमें इस हेतु आशीर्वाद देंगे ही। इति।