मनोहर पर्रिकर - 'एक निष्काम कर्मयोगी'

मनोहर पर्रिकर - एक निष्काम कर्मयोगी
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अतुल तारे

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बिल्कुल ठीक ही कहा है कि आज देश रो रहा है। नि: संदेह वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक असाधारण साधारण स्वयंसेवक थे जिसकी कल्पना संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूजनीय गुरुजी ने की थी। भारतीय राजनीति आज जिस पाखंड, आडंबर एवं अवसरवादिता के संक्रमण से गुजर रही है श्री मनोहर पर्रिकर एक सुखद आश्वस्ति थे। उन्होंने सादगी का प्रचार नहीं किया, उसे सहजता से जिया। मूल्यों पर भाषण नहीं दिए, उसे अपनाया।

गोवा देश का एक अत्यंत छोटा सा राज्य है। हम देश के कितने राज्यों के मुख्यमंत्री से अपना सीधा जुड़ाव अनुभूत कर पाते हैं, पर श्री पार्रिकर के प्रति सम्पूर्ण देश में एक आदर था, प्रेम था, एक आत्मीय लगाव था। वह वास्तव में मनोहर ही थे। इसलिए जब उन्हें दिल्ली बुलाया गया और देश का रक्षा मंत्री बनाया गया, उसका स्वागत हुआ। श्री पार्रिकर ने हाऊ इज द जोश के साथ एक सर्जीकल स्ट्राइक का नेतृत्व किया और देश का मस्तक ऊंचा किया। वह निष्काम कर्मयोगी थे। वह गोवा छोडऩा नहीं चाहते थे। पर देश हित में वह गोवा से दिल्ली आए और फिर पार्टी हित में रक्षा मंत्री पद छोड़ कर फिर गोवा चले गए। कहीं कोई ना नुकुर नहीं। पद उनके लिए हमेशा एक माध्यम ही रहा देश सेवा के लिए। यही कारण रहा कि पद से बड़ा उनका कद हमेशा बना रहा। प्रामाणिकता, शुचिता, सरलता के वह स्वयं एक पाठ थे, पाठशाला थे, विश्वविद्यालय थे। वह धातु अभियांत्रिकी के मेधावी छात्र थे पर समाज जीवन के बारीक से बारीक पक्ष के संवेदनशील ज्ञाता थे। यही कारण रहा कि विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में भी वह गोवा को कुशल नेतृत्व दे रहे थे।

देश ने उनके असामान्य संघर्ष को साक्षात देखा है। कैंसर जैसी घातक एवं असहनीय पीड़ादायक बीमारी से वह आखिरी क्षण तक एक योद्धा की तरह लड़े। हारे वह अब भी नहीं होंगे। कारण वह मातृभूमि के ऐसे अविश्रान्त पुजारी थे जिनकी साधना अक्षुण्ण है। पर कई बार ऐसा लगता है कि शायद ऊपर भी बेहतर लोगों की कमी है या ईश्वर भी अपने बेटे के कष्ट से द्रवित हुआ और उसे अपने पास बुला लिया। यह शून्य ऐसा है नहीं जिसे निकट भविष्य में भरा जा सकेगा। आज जब देश के सामने एक नहीं कई चुनोतियां हैं, ऐसे में कौन कहेगा कि हाऊ इज द जोश और हम कैसे कहें अभी-हाई सर।

आप क्यों इतनी जल्दी चले गए , विनम्र श्रद्धांजलि।

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