समाज का संगठन है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

समाज का संगठन है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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डॉ. मनमोहन वैद्य

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना को 100 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। 1925 में नागपुर में संघ की स्थापना हुई थी, इस घटना को इस वर्ष 2022 की विजयादशमी को 97 वर्ष पूर्ण होंगे। संघ का कार्य किसी की कृपा से नहीं, केवल संघ के कार्यकर्ताओं के परिश्रम, त्याग, बलिदान के आधार पर तथा समाज के लगातार बढ़ते समर्थन और सर्वशतिमान श्रीपरमेश्वर के आशीर्वाद से सतत बढ़ता आ रहा है। अनेक विरोध, अवरोध और संकटों को पार कर संघ का व्याप, शति और प्रभाव लगातार बढ़ता रहा है। इसलिए संघ की चर्चा भी सर्वत्र होती दिखती है। संघ अपनी शतादी कैसे मनाएगा इसकी भी उत्सुकता लोगों में है।

संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार की दृष्टि बहुत स्पष्ट थी कि संघ समाज में एक संगठन के नाते नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज का संगठन है। संघ के ज्येष्ठ चिंतक श्री दाोपंत ठेंगड़ी कहते थे कि परिकल्पना की दृष्टि से संघ और हिन्दू समाज समव्याप्त है (conceptually RSS and Hindu society are coterminus) और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से वह एकात्म है। (psychologically they are one) इसलिए संघ की शताब्दी का उत्सव मनाने का विचार ही नहीं हो सकता है। संघ सम्पूर्ण समाज है। संघ की साधना को समाज व्यापी करना, यही लक्ष्य होना चाहिए। डॉ. हेडगेवार तो कहते थे कि हमें संघ का रौप्य महोत्सव भी नहीं मनाना है। उसके पहले कार्य पूर्ण कर डालना है। इसी लगन से वे संघ कार्य को बढ़ाने में पूर्ण शति के साथ जुट गए थे। उन्हें केवल 15 वर्ष मिले। इसलिए शताब्दी वर्ष के पूर्व संघ कार्य पूर्ण करना यही शताब्दी मनाने का निहितार्थ हो सकता है। 'कार्यमग्नता जीवन हो और कार्यपूर्ति ही विश्रांति' ऐसा एक संघ गीत है। हजार वर्षों के सतत संघर्ष के उपरांत स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा 'स्व' के आधार पर समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समाज एवं राष्ट्र जीवन की दिशा खड़ी हो, इस हेतु से शिक्षा, विद्यार्थी, राजनीति, मजदूर, वनवासी समाज, किसान आदि क्षेत्रों में भारत के शाश्वत राष्ट्रीय विचार से प्रेरित विविध संगठन आरम्भ हुए।


संगठन का कार्य तो चल ही रहा था, परन्तु उसके साथ-साथ सम्पूर्ण समाज जीवन को व्याप्त करने वाले अनेक जनसंगठन भी आरम्भ हुए। आज संघ कार्य शाखा के रूप में 90 प्रतिशत विकासखंडों तक पहुंचा है और 35 से भी अधिक जनसंगठन समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में सक्रिय हैं, प्रभावी भी हैं। संघ कार्य की विकास यात्रा का तीसरा पड़ाव डॉ. हेडगेवार जन्मशती के पश्चात् 1990 से शुरू हुआ। सम्पूर्ण समाज को आत्मीयता और प्रेम के आधार पर संगठित करना है तो समाज के वंचित, दुर्बल, पिछड़े और विकास की सुविधाओं के अभाव में जीने वाले अपने ही समाज के बांधवों तक पहुँच कर उनकी सहायता तथा सेवा करना अपना दायित्व मान कर उनके समग्र विकास के उद्देश्य से सेवा विभाग (1990) आरम्भ हुआ।

समाज जागरण में लगे स्वयंसेवक

संघ के राष्ट्रीय विचारों का प्रसार समाज में हो, संघ के विरुद्ध गलत प्रचार करते हुए संघ की एक नकारात्मक छवि निर्माण करने का जो प्रयास लगातार चल रहा है, उस का उत्तर देते हुए संघ की सही जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए और संघ के स्वयंसेवकों द्वारा जो रचनात्मक कार्य बड़ी संया में चल रहे हैं, उनकी जानकारी इन माध्यमों के द्वारा समाज को देने के उद्देश्य से 1994 में ही प्रचार विभाग का आरम्भ हुआ। प्रसार, जनसंवाद के सभी माध्यमों का उपयोग एवं प्रयोग करते हुए संघ का प्रचार विभाग अब सक्रिय है, इसकी दखल भी ली जा रही है। ये तीनों (सेवा, संपर्क तथा प्रचार) संघ के कार्य विभाग के माध्यम से सुदूर लोगों तक संघ पहुँचा कर (out reach) समाज जागरण के कार्य में स्वयंसेवक लगे हैं।

राष्ट्र का सर्वांगीण विकास ही उद्देश्य

उसी तरह 'राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के लिए मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक (स्वयंसेवक) बना हूँ' ऐसी प्रतिज्ञा स्वयंसेवक करता है। यह सर्वांगीण उन्नति का कार्य केवल स्वयंसेवक करेंगे, यह संभव ही नहीं है। समाज में अनेक प्रभावी, अच्छे मन के लोग हैं, जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं, स्वयं कर भी रहे हैं। उनकी और उनके कार्य की जानकारी संघ को नहीं हैं और संघ की सही जानकारी, संघ का राष्ट्रीय विचार उन तक नहीं पहुंचा है। समाज के ऐसे प्रभावी लोगों की विशेषता, सक्रियता, उपलब्ध, समाज में योगदान आदि की जानकारी प्राप्त करना और संघ का विचार, कार्य आदि की जानकारी उन्हें देना इस हेतु से संपर्क विभाग का कार्य 1994 से आरम्भ हुआ।

संपर्क विभाग के माध्यम से नए सम्पर्कित व्यक्ति शायद संघ से नहीं भी जुड़ेंगे, पर संघ स्वयंसेवक के नाते हम उनसे जुड़ें, परस्पर विचारों का, अनुभवों का, उपलब्धियों का आदान-प्रदान हो और समान रुचि के विषयों में हम मिलकर साथ कार्य कर सकें। 1967 में पहली बार मध्यप्रदेश और ओरिसा राज्यों में ईसाई कनवर्जन को रोकने हेतु वहां की विधानसभा में बिल पारित हुआ था। तब केंद्र में तथा इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार थी। उस के पश्चात् साधारणत: भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में ही विभिन्न राज्यों में कनवर्जन को रोकने के लिए बिल पारित हुए। इस में एकमात्र अपवाद हिमाचल प्रदेश का है। 2006 में श्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने कनवर्जन के विरुद्ध बिल पारित किया था। अभी कुछ वर्ष पूर्व संघ के अधिकारी संपर्क विभाग के अंतर्गत श्री वीरभद्र सिंह जी से मिलने गए थे। तब उन्होंने ही, स्वयं होकर, उनके ही कार्यकाल में कैसे यह कन्वर्जन विरोधी बिल पारित हुआ था, यह बताकर आगे कहा कि हिमाचल प्रदेश के बाहर भारत में कहीं पर भी कनवर्जन को रोकने के लिए उनका उपयोग होता है तो वे साथ आ सकते हैं।

2008-09 में जब गौ-ग्राम रथ यात्रा निकली थी, तब अनेक स्थानों पर सर्वोदय के कार्यकर्ता इस यात्रा में सहभागी हुए थे। इस तरह मुद्दों के आधार पर (issue based) सहकार्य और सक्रियता संपर्क के कारण ही संभव हुई। हो सकता है कि सभी विषयों पर संघ के विचार या दृष्टिकोण से ये लोग सहमत नहीं भी हों। इसी समय समाज की कुछ समस्याओं के लिए तुरंत विशेष ध्यान देकर समाज परिवर्तन के कार्य भी शुरू हुए। 'धर्मजागरण विभाग' के माध्यम से हिन्दू समाज को कनवर्ट करने के चल रहे योजनाबद्ध प्रयासों को विफल करना तथा वे कनवर्टेड लोग जो फिर से अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुडऩा चाहते हैं, उनके लिए मार्ग सुलभ करने का कार्य आरम्भ हुआ। सरकार पर निर्भर न रहते हुए अपने गांव का विकास सभी ग्रामवासी मिलकर करेंगे, सरकारी योजनाओं का आवश्यक उपयोग करते हुए ग्राम का सर्वांगीण विकास हम सब मिलकर करेंगे, इस उद्देश्य से 'ग्राम-विकास' का कार्य आरम्भ हुआ।

(क्रमश:)

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