संविधान की दुहाई वे दे रहे हैं जिन्होंने लोकतंत्र का गला घोंटा
काल के कपाल पर.........
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में मई-जून माह का विशेष महत्व रहा है, राजनैतिक बदलाव में इन दो माह की तेज तपन देखी जा सकती है। जब कांगे्रस के अध्यक्ष राहुल गांधी लोकतंत्र की दुहाई देते हंै, संविधान और लोकतंत्र के मान मर्दन का आरोप भाजपा पर लगाते हैं तो उनको भी याद दिलाना होता है कि संविधान और लोकतंत्र को लहूलुहान कर उसे आईसीयू में पहुंचाने का पाप कांग्रेस ने ही किया है। इंदिराजी ने लोकतंत्र का गला घोंटकर देश को तानाशाही की जंजीरों में जकड़ दिया। उस काले इतिहास के भुक्त भोगी और प्रत्यक्षदर्शी अब भी हैं, अभी तो कांग्रेस ने अपने पाप का प्रायश्चित भी नहीं किया। हालांकि जनता का दंडात्मक प्रहार लगातार कांग्रेस पर हो रहा है। कांग्रेस सिमट कर दो राज्यों में रह गई है और भाजपा की विजय पताका 20 राज्यों में फहर रही है। जिस तरह रावण का अंत राम-राम करते हुए हुआ, उसी तरह कांग्रेस अंत समय में लोकतंत्र की दुहाई बार-बार दे रही है। राहुल गांधी को न केवल लोकतंत्र वरन जिन अधिष्ठानों को खत्म करने की साजिश उनकी दादी ने की, न्यायपालिका, संविधान के नाम का जाप भी वे मन का संताप शांत करने के लिए कर रहे हैं। जिन दो अधिष्ठानों पर इंदिराजी ने घातक प्रहार किये वे हैं, लोकतंंत्र और न्यायपालिका। 12 जून 1975 को गुजरात की जनता ने चुनाव में कांगे्रस को धूल चटायी और इसी दिन 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लोकसभा में चुने जाने को निरस्त करते हुए उन्हें चुनाव में भ्रष्टाचार करने के आरोप में चुनाव लड़ने के लिए छह वर्षों तक अयोग्य घोषित कर दिया। ये दो घटनाक्रम ऐसे थे, जो इंदिराजी को सत्ता से हटाने के लिए पर्याप्त थे। पूरे देश में इंदिरा जी के त्यागपत्र की मांग होने लगी, इंदिरा हटाओ लोकतंत्र बचाओ अभियान प्रारंभ हुआ। इंदिरा जी ने संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरूपयोग करते हुए देश को आपातकाल की जंजीरों से जकड़ दिया।
25 जून 1975 की मध्यरात्रि को इंदिराजी ने राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद को नींद से जगाते हुए आपातकाल के अध्यादेश पर हस्ताक्षर कराए। यही नहीं अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 21 एवं 22 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के लिए न्यायालय में अपील करने के अधिकार को भी राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 359 के तहत निरस्त करने का आदेश जारी कर दिया। इससे अपील, दलील के मौलिक अधिकार को खत्म करने का अपराध इंदिराजी ने इसलिए किया कि उनके खिलाफ उठने वाली आवाज को कुचल दिया जाय। संविधान के मूल्यों एवं प्रावधानों की धज्जिया उड़ाने में तनिक भी संकोच नहीं हुआ। जिस संविधान की दुहाई राहुल गांधी देते हैं उसका गला घोंटने का अपराध कांग्रेस की इंदिरा सरकार ने किया। 25 जून 1975 की मध्य रात्रि से ही कांग्रेस विरोधियों की धड़ल्ले से गिरफ्तारी होने लगी। आंतरिक सुरक्षा बहाली अधिनियम (मेंटेनेंस आॅफ इंटरनल सेक्यूरिटी एक्ट) मीसा के अंतर्गत जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, चन्द्रशेखर, लालकृष्ण आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ हजारों कार्यकर्ताओं को बिना कोई कारण बताये जेल में ठूंस दिया गया।
जनता पार्टी की मोरारजी भाई की सरकार द्वारा गठित आयोग की रिपोर्ट के अनुसार मीसा के तहत 34988 एवं डिफेन्स आॅफ इंडिया रूल्स (डीआईआर) के तहत 75818 लोगों को गिरफ्तार किया गया। अंग्रेजों की गुलामी के समय भी प्रेस पर इतना क्रूर सेंसरशिप का शिकंजा नहीं कसा गया था, जितना स्वतंत्र भारत की कांग्रेस की इंदिरा सरकार ने मीडिया के मुंह पर ताले जड़कर किया। जो पत्रकार सरकार के खिलाफ थोड़ा भी लिखने का साहस करता था उसे जेल में डाल दिया गया। जो भी अखबार में लिखा जाता था, उसे सरकार के अधिकारी से सेंसर कराना होता था। उस समय केवल सरकार के नियंत्रण वाला दूरदर्शन टीवी चैनल था, जिसे लोग 'इंदिरा दर्शन' चैनल कहने लगे थे, इसी तरह आकाशवाणी (रेडियो) को इंदिरा वाणी कहा जाने लगा था। विश्वसनीय समाचार के लिए लोग ब्रिटेन की एजेन्सी बीबीसी का सहारा लेते थे। राहुल गांधी यदि कांग्रेस के लम्बे शासन की बड़ी उपलब्धि की तलाश करेंगे तो उन्हें मालूम हो जायेगा कि उनकी दादी ने भारत पर तानाशाही लागू कर पूरे देश को जेल में बदल दिया था। यही कांग्रेस की बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है। सेन्सर की कठोरता के साथ ही राष्ट्रवादी विचारों से प्रेरित मदरलैंड, स्वदेश जैसे अखबारों के पत्रकारों को न केवल जेल में डाला वरन ऐसे अखबारों की सम्पत्ति सील कर उन पर बंदिश भी लगा दी। ये सारे जघन्य अपराध किये गये केवल कांग्रेस की इंदिरा सरकार बचाने के लिए।
राहुल गांधी ने हाल ही में आरोप लगाया है कि आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के लोग सरकारी संस्थानों में भर्ती किये जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा और नरेन्द्र मोदी से भी अधिक डर राहुल को संघ का सता रहा है। बिना आरएसएस का नाम लिये उनका आरोप पूरा नहीं होता। वैसे नेहरूजी के समय से कांगे्रस की राजनीति संघ के नाम और काम से भयभीत रही है, राहुल को भी लगता है कि कांग्रेस के पतन के पीछे संघ है। कांग्रेस की सरकारों ने ही सन1948, 1975 एवं 1992 में संघ पर प्रतिबंध लगाया। लेकिन संघ की गतिविधि, विचार और प्रभाव लगातार बढ़ता रहा, आज संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन है। उसके जो स्वयं सेवक राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में काम करते हैं, वे संगठन भी सर्वोच्च स्थिति में है, जिस भाजपा का नेतृत्व नरेन्द्र मोदी, अमित शाह जैसे संघ के स्वयंसेवक कर रहे हैं, वह भाजपा आज 11 करोड़ की सदस्य संख्या के साथ दुनिया का सबसे बड़ा राजनैतिक दल है। 20 राज्यों में जिसकी सरकारे हंै। राहुल का यह डर सही है कि उन्हें खाते-पीते-सोते जागते संघ दिखाई देता है। संघ के विराट स्वरूप में उन्हें अपना पतन दिखाई देता है।
राहुल को वह इतिहास भी पढ़ लेना चाहिए कि चाहे देश की रक्षा का सवाल हो, प्राकृतिक आपदा हो या लोकतंत्र पर इंदिरा तानाशाही जैसा खतरा हो, इन चुनौतियों का सामना करने में संघ के स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों तक की आहुती दी है। आपातकाल के समय भी लोकतंत्र को बचाने में संघ के स्वयंसेवकों ने अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर न केवल सत्याग्रह किया, बल्कि सबसे अधिक यातनाएं भी सहन की। गिरफ्तारी भी सबसे अधिक स्वयंसेवकों की हुई। जिस कांग्रेस के मुंह से लोकतंत्र की हत्या का खून टपक रहा हो, जिसने जल्दी सत्ता प्राप्ति के मोह में देश का खूनी विभाजन किया, जिसने तुष्टीकरण के नाम पर अपने वोट के लिए देशद्रोही तत्वों को गले लगाया, जो कांग्रेस देश की हर समस्या की जननी है, उसके नये वारिस राहुल लोकतंत्र, संविधान, न्यायपालिका की दुहाई दे तो ऐसा लगता है कि कालनेमि राक्षस साधू बनकर राम-राम जप रहा है।
इंदिरा तानाशाही का सबसे अधिक प्रकोप मध्यप्रदेश में रहा। संघ और जनसंघ के कार्यकर्ताओं से सभी जेलें भरी हुई थी। इंदौर जेल की भुक्तभोगी यह कलम रही है। उसमें संघ के प्रांत संघ चालक पं. राम नारायण शास्त्री, सुदर्शनजी, पटवाजी, सखलेचा जी, कैलाश जोशी आदि वरिष्ठ नेता के साथ करीब साढ़े तीन सौ कार्यकर्ता बंद थे। इसी प्रकार बेगमगंज जेल में ठाकरेजी सहित कई कार्यकर्ता बंद थे। कितने घर बर्बाद हुए, कितनों का व्यापार, व्यवसाय, नौकरी चौपट हुई, जेल मे ही कितनों ने अपने जीवन का बलिदान दे दिया, इन यातनाओं को एक बड़े ग्रंथ में भी नहीं समेटा जा सकता। कांग्रेस के इन पापों का प्रायश्चित कराने के लिए ही जनता कांग्रेस को बार-बार नकार रही है। कांगे्रस मुक्त भारत का आशय यही हो सकता है, लोकतंत्र और संविधान को अपने राजनैतिक हित के लिए दुरूपयोग करने वाली दृष्टि और प्रवृत्ति पर न केवल रोक लगे बल्कि इन विकृतियों को जड़मूल से समाप्त किया जाय। 1947 से अभी तक का कांगे्रस का डीएनए न केवल देश को खंडित करने का रहा बल्कि लोकतंत्र और संविधान विरोधी भी रहा है। अब तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैफुद्दीन सोज और गुलाम नबी आजाद के बयानों से यही लगता है कि देश विरोधी साजिश करने वाले आतंकी संगठन लश्करे तोएबा के साथ कांगे्रस खड़ी है।
( लेखक - वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक हैं )