सनातन द्रोहियों को तमाचा है यह जनादेश
वेबडेस्क। एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल के वरिष्ठ संपादक ने टेलीविजन के 'लाइव डिबेट शो' से पहले चाय पर सहज ही चर्चा में मुझसे कहा- ''अगर भारतीय जनता पार्टी, मध्यप्रदेश में 135 से अधिक सीट पर विजय प्राप्त करती है तो मुझे ही नहीं देश के कई पत्रकारों को पत्रकारिता की पढ़ाई फिर से करनी चाहिए।'' यह पंक्ति मैं जब लिख रहा हूं भाजपा मध्यप्रदेश में ऐतिहासिक जीत की ओर है। वरिष्ठ संपादक से तब भी मैंने यह कहा था कि देश का मतदाता परिपक्व हो रहा है। वह विधानसभा चुनाव को भी राष्ट्रीय विमर्श के दृष्टिकोण से देख रहा है।देश की सज्जन राष्ट्रीय शतियां गाँव-गाँव जाकर जागरण प्रबोधन कर रही हैं। या ये आपके 'कैमरे के एंगल' में कहीं है? जाहिर है न केवल पत्रकार, न केवल राजनीतिक पंडितों की दृष्टि बल्कि राजनीतिक प्रबंधन के स्वयंभू विशेषज्ञों का पांडित्य देश की जनता के हृदय के स्पंदन को समझने में फिर एक बार असफल साबित हुआ है
चार राज्यों के चुनाव नतीजे सीधे-सीधे सनातन पर विजय का उद्घोष है। स्वयं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने कांग्रेस की हार को सनातन का श्राप कहा है। ज्यादा दिन नहीं हुए भाजपा को पराजित करने के लिए देश में INDIA गठबंधन बनता है और सनातन को 'डेंगू' कहा जाता है और 'कोढ़' भी। जिस कांग्रेस ने रामसेतु को काल्पनिक कहने का जघन्य अपराध किया था उसी कांग्रेस ने मध्यप्रदेश ही नहीं देश के अन्य राज्यों में राम मंदिर निर्माण के होर्डिग्स को लेकर चुनाव प्रचार के दौरान आपत्ति प्रकट की। प्रदेश का मतदाता यह समझ रहा था। मतदाता यह भी देख रहा था कि कांग्रेस इजराइल हमास के युद्ध में हमास के आतंकियों के साथ बेशर्मी से खड़ी हुई है।
मतदाता यह देख कर भी आक्रोशित था कि जी20 में भारत के वैश्विक उदय के प्रति भी कांग्रेस में एक घृणा है। न सिर्फ राजस्थान का अपितु मध्यप्रदेश का, छत्तीसगढ़ का और तेलगांना का भी मतदाता राजस्थान के उदयपुर में कन्हैयालाल की इस्लामी आतंक से हुई हत्या से व्यथित था । वह गात्तीसगढ़ की भूपेश सरकार जिस प्रकार कनवर्जन का नंगा नाच कर रही थी उसका जवाब देने का भी मन बना रहा था। वह देख रहा था कि प्रादेशिक आक्रोश के चलते कर्नाटक एवं हिमाचल में उससे हुई भूल का परिणाम सिर्फ यह प्रदेश ही नहीं उठा रहे आने वाले समय में देश भी उठाएगा। अत: न जात न पात सिर्फ राष्ट्र प्रथम और न ही स्थानीय प्रत्याशी, वोट सिर्फ विचार के लिए, राष्ट्र के लिए यह अभियान देश की सज्जन शति ने बिना किसी प्रचार तंत्र के घर-घर जाकर चलाया।
परिणाम सामने है। मध्यप्रदेश के संदर्भ में यह परिणाम बेहद सुखद है। यह एक धारणा बनाने का नियोजित प्रयास चल रहा था कि भाजपा के खिलाफ एक सत्ता विरोधी लहर है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के चेहरे से नाराजगी है। भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने अपनी दूसरी ही सूची में केन्द्र के वरिष्ठ नेता सामने रख कर इसका उत्तर दे दिया। जहां एक ओर श्री शिवराज सिंह के चेहरे को पीछे रख कर भाजपा ने सामूहिक नेतृत्व की रणनीति को अपनाया वहीं स्वयं शिवराज सिंह इसी रणनीति के चलते सहानुभूति पाने के हकदार हो गए। वहीं प्रशंसा करनी होगी श्री सिंह की इस रणनीति में वह एक कार्यकर्ता के नाते 162 विधानसभा घूमें और भाजपा के प्रचार अभियान की कमान संभाली। वहीं लाड़ली बहना योजना जो मुख्यमंत्री के दिल के बेहद करीब थी ने इस चुनाव में अपना कमाल दिखा दिया।
रेखांकित करना होगा इस पंक्ति को कि शिवराज सिंह के लिए यह सिर्फ योजना नहीं थी महिलाओं के प्रति उनकी आस्था संवेदना शब्दों से परे है। यह सबका अनुभव है। साथ ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रति असंदिग्ध विश्वास, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति ने प्रचार अभियान को एक नई धार दी। भाजपा ने अपने प्रचार अभियान में मोदी गारंटी की बात कही और मतदाताओं ने सुशासन पर भरोसा जता दिया। यही नहीं कांग्रेस ने अपने प्रचार अभियान में फिर एक बार जातिगत जनगणना का विषय उछालकर देश में जहर बोने की कोशिश की मतदाताओं ने उसका भी मुंह तोड़ उत्तर दे दिया।
रेखाकिंत करना होगा तेलगांना जैसे क्षेत्र जहां भाजपा कहीं दौड़ में ही नहीं थी उसने न केवल अपनी सात सीटों में इजाफा किया बल्कि दक्षिण भारत की राजनीति में भी अपने लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए। यही नहीं भाजपा जहाँ एक ओर चुनाव में केन्द्रीय टीम के नेतृत्व में प्रदेश अध्यक्ष श्री विष्णु दत्त शर्मा के साथ कदमताल करती दिखाई दी वहीं कांग्रेसी चुनाव प्रचार के दौरान एक दूसरे के कपड़े फाड़ते दिखाई दिए। नि:संदेह भाजपा की इस शानदार विजय के लिए नेतृत्व अभिनंदन का पात्र है पर इस विजय का जो असली हकदार है वह अनाम है। उसका चेहरा नहीं है। वह किसी प्रचार तंत्र के कैमरे में भी नहीं है। वह है सनातन का संवाहक क्या देश का कथित मुख्यधारा का मीडिया राजनीतिक पंडित इस 'पल्स' को समझने का प्रयास करेगा।