सिख विरोधी दंगे, इंसाफ की जगी उम्मीद

सिख विरोधी दंगे, इंसाफ की जगी उम्मीद
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पूर्व प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस की बड़ी नेता रहीं इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में हुए दंगों में सिखों पर जिस प्रकार से हमले हुए, उसमें अब न्याय मिलने की उम्मीद बन गई है। अभी हाल ही में दंगों से संबंधित एक मामले में पटियाला हाउस न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। निर्णय में न्यायालय ने महिपालपुर में दो सिख युवकों की हत्या करने वाले एक अपराधी यशपाल को फांसी की सजा सुनाई है। हत्यारे का साथ देने वाले नरेश सहरावत को आजीवन कारावास का दण्ड दिया गया है। इस निर्णय से यह बात स्वाभाविक रुप से प्रमाणित हो रही है कि भगवान के दरबार में देर भले ही हो, लेकिन अंधेर नहीं है। इस निर्णय के बाद सहज रूप से इस बात की उम्मीद बढ़ जाती है कि सिख विरोधी दंगों में प्रमुख भूमिका निभाने वाले आरोपियों को अब सजा के लिए तैयार रहना चाहिए। देश का सिख समाज लम्बे समय से इन दंगों में न्याय दिलाने की मांग कर रहा था। 34 साल बाद ही सही, कम से कम दंगों के बारे में न्याय की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है।

यह पूरा देश जानता है कि सिख विरोधी दंगों के बारे में जब भी न्याय मांगने के लिए सिख समुदाय आगे आया है, तब कहीं न कहीं इस मामले पर अप्रत्यक्ष रुप से राजनीति की जाती रही है।

देश के प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस पर पर आरोप यह भी आरोप लगाया जाता है कि उसके बड़े नेताओं ने इस हत्याकांड में प्रमुख भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं, इंदिरा गांधी के मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने भी यह कहकर हमलावरों को अप्रत्यक्ष रुप से प्रोत्साहित करने का प्रयास किया कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। इस बयान से संभवत: सिख समुदाय पर हमला करने वालों को हवा देने की कोशिश की गई। इसके बाद भी कांग्रेस के सांसद रहे सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर पार्टी में प्रमुख भूमिका का निर्वाह करते रहे। हालांकि सिख समाज की ओर से लगातार विरोध के चलते इन नेताओं को खामियाजा भी भुगतना पड़ा। अगर इन नेताओं पर इन दंगों का दोष प्रमाणित हो जाता है तो यही कहा जा सकता है कि ये भी अब जेल में दिखाई देंगे। अब इसमें एक नाम और जुड़ता दिखाई दे रहा है, वह मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का है।

इस मामले में खास बात यह है कि एक प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले व्यक्ति की हत्या के मामले में 34 साल बाद न्याय मिला है, तब सामान्य प्रकरणों की क्या हालत होगी, यह सोचा जा सकता है। न्यायालय द्वारा दी जाने वाली इस सजा के बाद यह भी पूरी तरह से साबित हो चुका है कि सिख दंगों के मामले में जांच समितियों के पास पुख्ता प्रमाण हैं। आगे इन्ही प्रमाणों के आधार पर अन्य आरोपियों को भी सजा मिलेगी, यह भी तय हो चुका है। ऐसे में अगर कांग्रेस के बड़े नेताओं को सजा मिलती है, तब वह किस मुंह से अपना बचाव करेगी। आज इस मामले पर कांग्रेस नेताओं की जुबान बंद दिखाई देती है।

महिपालपुर हत्याकांड में दोषी पाए गए अपराधियों को सजा मिलने के बाद सिख विरोधी दंगों के दूसरे मामलों के पीडि़तों को इस फैसले से हिम्मत मिली है। सिख विरोधी दंगों के दौरान राजधानी दिल्ली में ही कोई दो हजार सिखों की हत्या हुई थी। देश के अन्य हिस्सों में भी हजारों सिखों को या तो जिन्दा जला दिया गया था या फिर खौफनाक तरीके से पीटा गया। मुख्य बात यह है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके अंगरक्षकों ने मारा था। संयोगवश वे सिख समुदाय से आते थे, लेकिन जिन्होंने दंगों में प्रमुख भूमिका निभाई, उन्होंने उद्वेलित भीड़ को ऐसे उकसाया, जैसे पूरा सिख समाज ही दोषी हो। इस प्रकार के उकसावे के कारण ही देश में सिखों पर हमले किए गए। सिख समाज की मां- बहनों को बेइज्जत किया गया।

दरअसल, महिपालपुर दंगों में मारे गए अवतार सिंह और हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह ने सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए गठित जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग के समक्ष सितंबर 1985 में शपथ पत्र दाखिल किया था। इस शपथ पत्र पर न्यायमूर्ति जेडी जैन और न्यायमूर्ति डीके अग्रवाल की समिति की सिफारिश पर वसंत कुंज पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया। दिल्ली पुलिस इस मामले में करीब 8 साल तक जांच करती रही, लेकिन पुलिस किसी भी आरोपी के विरोध में पुख्ता प्रमाण जुटाने में नाकाम रही। इसके बाद पुलिस ने जांच के बाद क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। इस प्रकार पूरा मामला ही ठंडे बस्ते में डालने की कवायद की गई। इस मामले में नया मोड़ तब आया जब 2014 में केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी। फरवरी 2015 में गृह मंत्रालय ने 1984 के दंगों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया, जिसने मामले को दोबारा खोला। एसआईटी ने दंगाइयों का नेतृत्व करने वाले नरेश और यशपाल के खिलाफ पुख्ता प्रमाण जुटाए। वास्तविकता तो यह है कि मोदी सरकार ने यदि एसटीआई का गठन नहीं किया होता तो यह मामला लटका रहता और पीडि़त परिवार को न्याय ही नहीं मिल पाता।

पटियाला हाउस न्यायालय के निर्णय से सिख समाज और पूरे देश की जनता के समक्ष यह संदेश तो गया ही है कि अब इस मामले का पटापेक्ष होकर रहेगा। सवाल यह है कि पहले इस मामले की गंभीरता से जांच क्यों नहीं की गई। यह सवाल प्रकरण की खात्मे की रिपोर्ट दाखिल करने वाले पुलिस कर्मियों पर संदेह पैदा कर रहा है। जब दंगा हुआ है तो कोई न कोई तो इसके पीछेै अपराधी होगा ही। फिर यह मुद्दा किसी छोटी घटना के तौर भुलाया भी नहीं जा सकता।

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