तुष्टिटकरण के बीच भाजपा सशक्त विपक्ष

तुष्टिटकरण के बीच भाजपा सशक्त विपक्ष
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प्रवीण गुगनानी

स्पष्ट है कि भाजपा इस चुनाव में बंगाल में सरकार बनाने का अपना लक्ष्य तो प्राप्त नहीं कर पाई, किंतु पश्चिम बंगाल में तुष्टिकरण की राजनीति की बलि चढ़ाने में अवश्य सफल हो गई। विगत दस वर्षों में जो ममता बनर्जी किसी मंदिर, मठ, आश्रम में जाते आते नहीं दिखीं, मुस्लिमों के भेष में, उनकी ही भाषा बोलते नजर आती थीं, वही ममता मंदिरों और पुजारियों के आसपास चकर लगाते दिखने लगी थीं। ममता बनर्जी के बड़े खासमखास सिपहसलार, उनके मंत्री, कोलकाता के मेयर फिरहाद हाकिम की बात से देश को बंगाल की राजनीति में तुष्टिकरण के भयानक रूप को समझ लेना चाहिए।

पिछले वर्षों में संपूर्ण भारत में तुष्टिकरण की राजनीति की राजधानी बनकर कोई राज्य उभरकर आया है तो वह राज्य है पश्चिम बंगाल! तुष्टिकरण की राजनीति की प्रयोगशाला बनकर उभरा पश्चिम बंगाल इस घृणित राजनीति की एक बड़ी कीमत चुका बैठा है व आगामी दिनों में भी चुकाएगा यह स्पष्ट दिख गया है इस विधानसभा चुनाव के परिणाम में। अंतत: ममता बनर्जी की तृणमूल पुन: पश्चिम बंगाल में सरकार संभाल रही है व भाजपा वहां एक सुदृढ़ विपक्ष की भूमिका निभाने जा रही है। यह दुखद ही है कि ममता बनर्जी का पुन: सत्तरूढ़ होना इस बात का परिचायक ही कहलायेगा कि बंगाल की जनता को तृणमूल की मुस्लिम राजनीति पसंद आ गई है। किंतु, दूसरा पक्ष यह भी है कि भाजपा को मिले लगभग सौ विधायक ममता की तानाशाही व मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के विरुद्ध एक जनमत भी है और राष्ट्रनायक नरेंद्र मोदी की विकास की राजनीति के पक्ष में एक सशत स्वर भी। सैकड़ों राजनैतिक हत्याओं व हजारों रक्त रंजित राजनैतिक संघर्षों को झेलकर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता बंगाल में संख्या प्राप्त करने का लक्ष्य तो प्राप्त नहीं कर पाए, किंतु सशक्त विपक्ष की एक बड़ी राजनैतिक उपलब्धि प्राप्त करने में अवश्य सफल हो रहे हैं।

बंगाल के राजनैतिक वातावरण के संदर्भ में ममता बनर्जी के पिछले दस वर्षीय शासन का स्मरण करना आवश्यक हो जाता है। मुयमंत्री रहते हुए ममता बनर्जी ने बंगाल में हिंदुओं को अपमानित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। वहां मुहर्रम के त्यौहार पर पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े पर्व दुर्गा पूजा या नवरात्रि की बलि चढ़ा दी थी। मुहर्रम के लिए दुर्गा प्रतिमा विसर्जन की तिथियां बदल दी जाती थीं। मस्जिदों के मौलाना ममता शासन के एजेंट के रूप में प्रशासनिक अधिकारियों को आदेश देने लगे थे। ऐसी कितनी ही घटनाएं वहां होने लगी थीं, जिनसे हिंदुत्व अपने आपको अपमानित और इस्लाम अपने आपको शहंशाह समझने लगा था। इस पूरे वातावरण में जब भाजपा ने अपना बंगाल अभियान पश्चिम बंगाल 2016 में कैलाश विजयवर्गीय जी के नेतृत्व में प्रारंभ किया, तब किसी को भी आशा नहीं थी कि भाजपा बंगाल में साा प्राप्त करने का लक्ष्य लेकर चुनाव लड़ेगी व अंतत: एक बेहद सुदृढ़ विपक्ष बनकर उभर आएगी। स्पष्ट है कि भाजपा इस चुनाव में बंगाल में सरकार बनाने का अपना लक्ष्य तो प्राप्त नहीं कर पाई, किंतु पश्चिम बंगाल में तुष्टिकरण की राजनीति की बलि चढ़ाने में अवश्य सफल हो गई है। विगत दस वर्षों में जो ममता बनर्जी किसी मंदिर, मठ, आश्रम में जाते आते नहीं दिखीं, मुस्लिमों के भेष में, उनकी ही भाषा बोलते नजर आती थीं, वही ममता मंदिरों और पुजारियों के आसपास चकर लगाते दिखने लगी थीं। ममता बनर्जी के बड़े खासमखास सिपहसलार, उनके मंत्री, कोलकाता के मेयर फिर्रहाद हाकिम की बात से देश को बंगाल की राजनीति में तुष्टिकरण के भयानक रूप को समझ लेना चाहिए। फिरहाद हाकिम उर्फ बाबी हाकिम ने पाकिस्तान के समाचार पत्र द डॉन को दिए एक साक्षात्कार में बड़े ही चुनौतीपूर्ण ढंग से कहा था कि 'मुस्लिमों के लिए बंगाल पाकिस्तान से भी अधिक सुरक्षित स्थान है'। ये ममता बनर्जी व फिरहाद हाकिम का ही किया धरा है कि पूरे देश में जितने भी बांग्लादेशी घुसपैठिये घूम रहे हैं वे सभी बंगाल के रास्ते से ही देश में घुसे हैं। इन घुसपैठियों को बंगाल में इनका तंत्र बड़ी ही योजनापूर्ण पद्धति से इनके भारतीय परिचय पत्र आदि बनवा देता है व फिर इन्हें देश भर में अराजकता फैलाने के लिए छोड़ देता है।

बांग्लादेशी घुसपैठियों का यह गोरखधंधा चल ही रहा था कि इन्होंने रोहिंग्याई घुसपैठियों को भी देश में घुसाना प्रारंभ कर दिया और एक नई समस्या को जन्म दिया। ममता बनर्जी तुष्टिकरण की राजनीति छोडक़र इस कदर आगे बढ़ी कि अपने मंचों से चंडी पाठ करने लगी। इस अभियान में उन्होंने अपने लगभग चार दशक के राजनैतिक जीवन में पहली बार स्वयं के शांडिल्य गोत्र में जन्मे ब्राह्मण होने की बात की। ऐसा लगा जैसे भाजपा के चुनाव अभियान ने उन्हें अचानक अपने कुल-गोत्र-वर्ण का स्मरण करा दिया हो। प्रसन्नता इस बात की नहीं है कि ममता बनर्जी को अपना हिंदुत्व स्मरण हो आया। प्रसन्नता इस बात की है कि ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति व तुष्टिकरण की राजधानी पश्चिम बंगाल को अब भाजपा का सशत विपक्ष चुनौती देने हेतु उपस्थित हो गया है। प्रसन्नता इस बात की भी है कि पश्चिम बंगाल से अब वामपंथियों के शेष अवशेष भी समाप्त हो गए हैं। प्रसन्नता इस बात की भी है कि बंगाल कांग्रेस मुत हो गया है। तमाम प्रयासों, श्रम व लगन भरे अभियान के बाद भी भाजपा के लिए बंगाल में संख्या प्राप्त न कर पाना एक झटके जैसा अवश्य दिखता है, किंतु जिनमें तनिक सी भी राजनैतिक बुद्धि है वे समझ सकते हैं कि बंगाल के भद्रलोक ने यदि भारतीय जनता पार्टी को इतने कम समय के परिचय में, इतने नए नवेले संगठन के बाद भी यदि 18 सांसद व लगभग सौ विधायक दे दिए हैं तो यह एक अच्छा संकेत है। अच्छी बात यह भी है कि पश्चिम बंगाल का शोनार बांग्ला स्वह्रश्वन भाजपा के लिए एक आजीवन मिशन बन गया है। भाजपा को भले ही बंगाल में सरकार न मिली हो किंतु भारतवर्ष के नागरिक इस बात की जवाबदारी भाजपा को ही देते हैं कि एक सशक्त विपक्ष के रूप में वह बंगाल को अब घुसपैठियों का प्रवेश द्वार कतई नहीं बनने देगी।

(लेखक राजनीतिक चिंतक व विचारक हैं)

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