ध्यान से देखना चाहिए राजनीति की इस शैली को
वेबडेस्क। केरल में श्री राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान एक शहर के रात्रिकालीन पड़ाव के समय का यह चित्र है। ध्यान से देखिए, कौन है विश्राम की मुद्रा में? किसने अपने हाथों को तकिया बना रखा है? कौन है जो सो रहा है जिसके पास जमीन पर बिछा गद्दा ही बिछोना है...सम्भव है यह राजनीति की एक शैली भी हो। पर इस चित्र को भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को संज्ञान में लेना चाहिए। श्री दिग्विजय सिंह अपने नफरत के स्थायी एजेंडे के चलते कांग्रेस के लिए ही एक मुसीबत बनते रहे हैं, यह सच है। पर जमीनी कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करने में वह बेजोड़ हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने प्रदेश का चप्पा चप्पा छाना है। व्यक्तिगत संपर्क उनकी पूंजी है। नर्मदा की दो बार हजारों किलोमीटर की पदयात्रा करने वाला यह राजनेता 77 साल का 'बूढ़ा जवान' है।
राहुल गांधी अपनी यात्रा में कितना भारत जोड़ेंगे यह तो स्वयं राहुल भी नहीं जानते, हाँ इस बीच वह कांग्रेस के विघटन के साक्षी जरूर बन रहे हैं। पर श्री दिग्विजय सिंह यात्रा छोड़ कर दिल्ली पहुँच गए हैं और अध्यक्ष पद का नामांकन दाखिल कर रहे हैं। वह मैदान में आते हैं और अध्यक्ष बनते हैं तो यह सच मानते हुए भी कि कांग्रेस एक डूबता जहाज है, समकालीन राजनेताओं को, विशेषकर भाजपा को इस छवि को ध्यान से देखने की आवश्यकता है।
संदर्भ से ज्यादा नहीं थोड़ा सा हट कर, संगठन के मनीषी दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के वक्तव्य को दोहरा लेते हैं। वह कहते हैं कि जब विजय समीप हो, तब सर्वाधिक खतरा होता है। नेतृत्व कई बार अहम में आ जाता है। श्रेय लेने की होड़ शुरू हो जाती है। कार्यकर्ता शिथिल हो जाता है। यही स्थिति विजय को दूर कर देती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता द्वारिका प्रसाद मिश्र कहते थे कि किसी अधिष्ठान को कुचलना हो बल का प्रयोग न करें। नेतृत्व को 'स्टेटस कॉन्शियस' कर दीजिए, कार्यकर्ता को 'कम्फर्ट लविंग' बना दीजिए। सुविधा भोगी बना दीजिए। आज भारतीय राजनीति जिस निर्णायक मोड़ पर है दोनों ही वक्तव्यों को रेखांकित कर पढ़ना चाहिए और पुनः कह रहा हूँ विशेषकर भारतीय जनता पार्टी को।
कांग्रेस, यह तय है कि विनाश की ओर है। वह स्वाधीनता संग्राम के सामूहिक प्रयासों के पुण्य को न केवल खुद ही पचा कर खट्टी डकार ले रही है, वरन भारत को खंडित करने के पाप का जो उपक्रम उसने 1947 से शुरू किया था उसे आज दिनांक तक जारी रखे हुए है। इसलिए श्री राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से भारत ही विस्मृत है, अतः जोड़ने की बात ही बेमानी है।
अतः यात्रा पर चर्चा आगे फिर कभी...
अभी मेरा आग्रह और ध्यान में लाने का विषय, इस छवि को निमित्त बना कर, सिर्फ इतना भर है कि राजनीति से प्रबंधक तैयार न हों, कार्यकर्ता तैयार हों। राजनीति का अर्थ लंबी बड़ी गाड़ियां, आलीशान सुविधाएं नहीं है। नेतृत्व का जमीनी कार्यकर्ता से 'कनेक्ट' है और यह सम्भव तभी है जब आप उस तक पहुँचें। श्री दिग्विजय सिंह इसमें माहिर हैं। यह अलग बात है कि श्री दिग्विजय सिंह का कांग्रेस के बाहर जो प्रभाव है वह 'नाम ही काफी है' का है। कारण वह कांग्रेस को जोड़ने के लिए अपना सम्पूर्ण लगा भी दें पर उनके विचार देश की जड़ों से कटे हुए हैं यह भी एक सच है। वह देश में एक नफरत की आंधी की तरह हैं और उन पर 'मिस्टर बंटाधार' की छवि भी चस्पा है।
बावजूद इसके, भाजपा को चाहिए कि वह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर राजनीतिक टिप्पणी सोच समझ कर करे। तार्किक आलोचना के साथ करे। साथ ही कांग्रेस जिस संक्रमण से गुजर रही है, उस पर बारीकी से निगाह रखते हुए, अपनी पार्टी में जमीन पर लेट कर अपना सर्वस्व लुटाने वालों को अपने प्यार का तकिया और स्नेह की चादर और सम्बल की दरी दे। कारण, कांग्रेस का कार्यकर्ता खड़ा होगा, नहीं होगा, वह नियति तय करेगी, पर इस खाली होते स्थान पर 'आप' का आना एक बड़ा खतरा है।राहुल गांधी की यात्रा नफरत एवं अलगाव के पिघलते ग्लेशियर को बचाने का यत्न है। दिग्विजय सिंह कांग्रेस में जान फूंकने का आखिरी प्रयास कर सकते हैं। ऐसे में भारत को खड़ा करने वाली राजनीति संभल कर पाँव बढ़ाये, यह युगीन धर्म है।