कुरैशी जी! जरा खुद की गिरेबान में भी तो झांक लीजिए
एस वाय कुरैशी द्वारा एक अखबार को दिए साक्षात्कार ने उनके अंदर के घृणित एजेंडे को बेपर्दा करने का काम किया है।इस साक्षात्कार में उन्होंने कहा है कि लव जिहाद कानून मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश हैं क़ुरैशी यहीं नही रुके उन्होंने कहा है कि "पढ़े लिखे मुसलमान लड़कों को हिन्दू लड़कियां उड़ाकर ले जाती हैं"।
कुरैशी ने इस इंटरव्यू में तीन तलाक कानून को भी खारिज किया है औऱ सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह कि उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री योगी की जीत को उन्होंने लोकतांत्रिक मानने से इंकार किया है और इसे साम्प्रदायिक धुर्वीकरण का परिणाम कहा है।हिजाब को लेकर भी कुरैशी का बयान बेहद आपत्तिजनक है क्योंकि वे कह रहे है कि" हिजाब जरूरी है या नही ये जज साहब साहब थोड़े ही बतायेंगे।मौलाना आइपीसी (इंडियन पीनल कोड)के फैसले देनें लगे तो?"
इस साक्षात्कार के हर बिंदु ने भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे श्री कुरैशी के दूषित औऱ साम्प्रदायिक चेहरे को देश के सामने प्रस्तुत किया है।देश को यह जानना चाहिए कि हिन्दू लड़कियों पर पढ़े लिखे मुस्लिम युवाओं को उड़ा ले जाने का आरोप लगाने वाले कुरैशी ने 69 साल की उम्र 49 साल की नेपाली चुनाव अधिकारी इला शर्मा से शादी की है।अपनी पहली पत्नी हुमा को तीन तलाक बोलने वाले कुरैशी आज तीन तलाक को अन्याय बता रहे है और नेपाल की उम्र में 20साल छोटी मुख्य चुनाव अधिकारी ईला शर्मा ने उनका उड़ाया है या ईला को उन्होंने यह भी जनता को बताया जाना चाहिये।
श्री कुरैशी की इस सोच को समझने की आवश्यकता है कि हिजाब जरूरी है ये जज तय नही करेंगे लेकिन इस देश में महिलाओं के मंदिर में जाने या राम अयोध्या में जन्मे या नही यह तय करने का अधिकार अवश्य जजों को है।क्या इस पर उन्होंने कभी कोई सवाल उठाया है?आइपीसी के निर्णय मौलाना करने लगे तो?यह प्रश्न उठाकर क्या वे देश को डराना चाहते है।क्या यह सच्चाई नही कि देवबंद जैसे संस्थान भारतीय कानूनों को धता बताकर इस्लामिक फतवे जारी करते है।क्या सीएए पर मौलानाओं ने निर्णय नही सुनाएं है?और देश ने दिल्ली दंगों की त्रासदी नही झेली है।
यूपी में योगी की जीत को सांप्रदायिकता की जीत बताने से पहले क्या कुरैशी ने उन आंकड़ों पर नजर डाली है जो मुस्लिम बहुल है।भाजपा उम्मीदवारों के विरुद्ध जिस भावना से शत प्रतिशत वोटिंग हुई है क्या वह साम्प्रदायिक धुर्वीकरण की श्रेणी में नही आता है?इस एकपक्षीय निष्कर्ष से पहले कुरैशी को देश भर के मुस्लिम मतदान व्यवहार को समझने का कष्ट भी उठाना चाहिये,कि साम्प्रदायिक धुर्वीकरण कहाँ हो रहा है।
चुनाव आयोग के पक्षपाती होनें का प्रमाणपत्र जारी करने से पहले कुरैशी को अपनी भूमिका का अवलोकन भी करना चाहिए था क्या वे निष्पक्ष होकर इस पद पर आरूढ़ रहे है?इससे पहले भी वे आयोग पर आरोप लगाते रहे है लेकिन उन्हें जनता को यह भी बताना चाहिये कि उप चुनाव आयुक्त डॉ संदीप सक्सेना ने उन्हें बकायदा पत्र लिखकर कैसे यह बताया था कि कुरैशी ने मुख्य आयुक्त रहते हुए कैसे और क्यों आवश्यक कारवाई राजनीतिक दलों के विरुद्ध नही की थी।
कुरैशी को आज आयोग में नियुक्तियों को लेकर आपत्ति हो रही है और वे सुप्रीम कोर्ट की तरह कॉलेजियम व्यवस्था की वकालत कर रहे है लेकिन 2010 से 2012 तक वे मुख्य चुनाव आयुक्त रहे तब उन्होंने ऐसी कोई बात क्यों नही की।क्या वे इस पद पर अपनी स्वयं की नियुक्ति को भी गलत स्वीकार करते है।यह भी उन्हें सार्वजनिक करना चाहिए।
अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और मुख्य चुनाव आयुक्त जैसे जिम्मेदार पद पर रहने वाले एस वाय कुरैशी के मन में छिपा सेक्युलरिज्म कितना दूषित और घनघोर साम्प्रदायिक है जो यह दावा करता है कि 1000 साल बाद भारत में उनके यानी मुसलमान के प्रधानमंत्री बनने की संभावना है क्योंकि तब मुस्लिम आबादी हिंदुओ की तुलना में अधिक होगी।यह बहुत ही खतरनाक मनोविज्ञान है जिसे समझना आवश्यक है।इसका सीधा मतलब यही है कि वे संवैधानिक पद और अखिल भारतीय संवर्ग के पदों पर रहकर भी अल्पसंख्यकवाद की नफरती ग्रन्थि से बाहर नही आ सके है।क्या जाकिर हुसैन और भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम को इस राष्ट्र के हिंदुओं ने अपना राष्ट्रपति स्वीकार नही किया है।वस्तुतः एस वाय कुरैशी खुद साम्प्रदायिकता की प्रतिबद्ध बौद्धिक जमात का हिस्सा भर है जो अपनी अल्पसंख्यक पहचान के बल पर संसाधनों और सुविधाओं पर टिके रहे हैं।द कश्मीर फाइल्स फ़िल्म को लेकर उनकी आपत्ति भी उसी बौद्धिक ज्ञानजगत यानी एक सशक्त इकोसिस्टम का हिस्सा है जिसे प्रधानमंत्री हाल ही में रेखांकित कर चुके है।
वैसे भी कुरैशी का मोदी के विरुद्ध दुराग्रह समय समय पर प्रकट होता रहता है।इस साक्षात्कार के माध्यम से उन्होंने साबित कर दिया है कि वे लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम के मुख्य स्तंभ है।