इस्लामी कट्टरपंथ का आईना तारिक फतेह

इस्लामी कट्टरपंथ का आईना तारिक फतेह
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  • तारिक फतेह को उनके चाहने वाले एक बेखौफ लेखक के रूप में याद रखेंगे।
  • आरके सिन्हा

वेबडेस्क। तारिक फतेह को उनके चाहने वाले एक बेखौफ लेखक के रूप में याद रखेंगे। वे सच का साथ देते रहे। वे भारत के परम मित्र थे। उन्हें इस बात का गर्व रहा कि उनके पूर्वज हिंदू राजपूत थे। वे बार-बार कहते-लिखते थे कि भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश के तमाम मुसलमानों के पुरख़े हिंदू ही थे और उन्हें जबर्दस्ती मुसलमान बनाया गया था। उनकी इस तरह की साफगोई कठमुल्लों को नागवार गुजरती थी। तारिक फतेह हिंदी पट्टी के मुसलमानों के दिल में चुभते हैं। उनकी तारीफ यह थी कि वह डंके की चोट पर अपने पूर्वजों को हिंदू बताते रहे। बहुत कम मुसलमान यह हिम्मत दिखा पाते हैं। वह मुस्लिम सांप्रदायिकता पर लगातार चोट करते रहे।

तारिक फतेह पहली बार 2013 में भारत दौरे पर आए थे तब उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, 'पाकिस्तान को तो अब भूल जाइए। इसको एक न एक दिन कई टुकड़ों में टूटना ही है। वो दिन भी दूर नहीं जब बलूचिस्तान और सिंध उससे अलग हो जाएगा। पाकिस्तानी सेना एक औद्योगिक माफिया है जिसका अपने देश के अनाज, ट्रकों, मिसाइलों से लेकर बैंकों तक पर नियंत्रण हैं। यह सुनकर पाकिस्तान के हुमरान तिलमिला गए थे। वे मानते थे कि, 'भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां मुसलमान बिना डरे स्वतंत्रतापूर्वक काम करते हैं। तारिक फतेह से जितने लोग मोहब्बत करने वाले हैं उससे बहुत ही कम नफरत करने वाले हैं। वे कभी इस्लाम की आलोचना नहीं करते थे, बल्कि इस्लाम के नाम पर झूठे गौरव और पाखंड की बखिया उधेड़ देते थे। अच्छा से अच्छा मौलवी उनके छोटे से चुभते हुए तर्क से तिलमिला कर रह जाता था।

औरंगजेब और हज

एक बार एक मौलवी साहब औरंगजेब की बहुत तारीफें कर रहे थे और उसे सच्चा और अनुकरणीय मुसलमान साबित कर रहे थे। तारिक फतह ने उससे सिर्फ एक सवाल किया कि अगर औरंगजेब एक सच्चा मुसलमान था तो क्या उसने हज की थी? मौलवी साहब बगलें झांकते नजर आने लगे और उनकी सारी पिछली तारीफों पर फतेह साहब के एक सवाल ने पानी फेर दिया । किसी मुसलमान पर हज उतना ही बड़ा फर्ज है जितने कि नमाज, रोजा और जकात। इनमें से कोई एक दूसरे की भरपाई नहीं कर सकता। चारों ही अलग अलग फर्ज हैं । कोई भी मुस्लिम जब बालिग हो जाए और हज करने के लायक स्वास्थ्य और आमदनी हो तो हज तुरन्त फर्ज हो जाती है ।अल्लाह ने औरंगजेब को 96 साल की लंबी उम्र दी। बचपन से बुढ़ापे तक तंदुरुस्त रखा। पहले शाहजादा फिर बादशाह बनाया। हज में दुनियावी मसायल की वजह से कोई माफ़ी नहीं है। अगर सामथ्र्यवान होते हुए भी 96 साल की उम्र तक औरंगजेब हज नहीं करता तो या तो उसका हज के फर्ज होने पर ईमान नहीं है या उसे ईश्वर पर भरोसा नहीं है कि वह हज करने गया तो वापस उसकी गद्दी उसे मिलेगी या नहीं। उसका पंजवता नमाजी होना और टोपियां सिल कर रोजी कमाना सब बेकार गया। हज को महत्व न देना और उसको टालना दोनों ही गुनाहे कबीरा यानी घोर पाप हैं।

सीएए का समर्थन -

देश में सीएए- एनआरसी के मुद्दे पर हुए दंगो के बाद तारिक फतेह ने कहा था, 'हर वह व्यक्ति हिंदू है, जो हिंदुस्तान के इतिहास और परंपरा की मिल्कियत रखता है। मुस्लिम समुदाय में तारिक फतेह जैसा बोल्ड और जीनियस लेखक या विचारक मिलना मुश्किल है। इस्लाम की कट्टरता के विरुद्ध बिगुल फूंकने वाला, पाकिस्तान के आतंकवाद-प्रेम पर मुखर होकर निरंतर प्रहार करने वाला कोई दूसरा मुस्लिम लेखक या विचारक मिलना मुश्किल है। इस्लाम सहित तमाम मुद्दों पर मुखर रूप से बोलने वाले तारिक फतेह टीवी डिबेट में असर ख़ुद को हिंदुस्तानी बताते थे और हमेशा सिंध और हिंद का कनेशन जोड़ते थे। तारिक फतेह पाकिस्तान के विचार को खारिज करते थे। वे मानते थे कि देश का बंटवारा नहीं होना चाहिए था। दुर्भाग्य यह है कि उनकी मौत का कुछ कथित प्रगतिशील और कठमुल्ले जश्न मना रहे हैं। अगर आपको यकीन न हो तो सोशल मीडिया पर चले जाइये। वहां पर आपको तारिक फतेह को लेकर तमाम तरह की ओछी टिप्पणियां पढऩे को मिलेंगी। तारिक़ फतेह धार्मिक अतिवाद के खिलाफ बोलने और एक उदारवादी इस्लाम के पक्ष को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध थे।

कराची में जन्मे -

उन्होंने 'यहूदी मेरे दुश्मन नहीं हैं नाम से एक पुस्तक भी लिखी। पाकिस्तान में बलूचों के आंदोलनों के समर्थक भी रहे। बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन और पाकिस्तान द्वारा बलूचों पर की जा रही ज्यादतियों के विषय पर भी बोलते और लिखते रहे। तारिक फतेह मुस्लिम इतिहास के भी प्रकांड विद्वान थे, जिस कारण तर्कों और तथ्यों में उन्हें पराजित करना किसी के लिए नामुमकिन था। तारिक फतेह कोरोना काल से पहले मेरे राजधानी के हुमायूं रोड के सरकारी आवास में भी कई बार पधारे। उनसे कई अहम मसलों पर चर्चा हुई। वे बहुत बुद्धिमान व्यति थे। वे पाकिस्तान के शहर कराची में जन्में थे और 1987 से कनाडा में रहने लगे।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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