यह 'अंडर करंट' नहीं इसे 'चेतना' कहिए
वेबडेस्क। समय वाकई यह आ गया है कि परंपरागत राजनीतिक शदावली को अब हमें विस्मृत करना ही होगा। खासकर 'अंडर करंट'। आज सुबह की सैर के समय भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी से मोबाइल पर बातचीत चल रही थी। मैंने सहज ही उनसे कहा 'इतना अंडर करंट' है, यह आप मान रहे थे क्या?
उन्होंने कहा 'अंडर करंट' शब्द से ही मैं सहमत नहीं हूं। वह कहते हैं अंडर करंट सामान्यत: नकारात्मक भाव लाता है। विरोध का आभास दिलाता है कि अमुक के खिलाफ 'अंडर करंट' है, या था, यह करंट नहीं है। यह चेतना है और इसे हिन्दी, अंग्रेजी का आग्रह न समझें। चेतना से मेरा आशय यह है कि भारतीय मन का परिष्कार हो रहा है। यह मन एक अत्यंत अभिजात्य वर्ग का भी हो सकता है या एक बेहद सामान्य पृष्ठभूमि का भी। यह मन एक उच्च शिक्षित वर्ग का भी हो सकता है या हम आप ठेठ गंवार कहें वह भी। यह मन कथित रूप से उच्च जाति का भी हो सकता है, तो संभव है कि जिसे लोग निन जाति का कहते हैं। वह कहते हैं यह मन परिपव हो रहा है। यह मन अब जाति, पंथ से ऊपर उठ रहा है। यह मन दलगत राजनीति के तटबंध को भी पार कर रहा है। वह यही नहीं रुकते। वह कहते हैं अब राष्ट्रीय मुद्दे गांव की चौपाल पर भी आ गये हैं और घर की रसोई में भी चर्चा का विषय है। संभव है, संवाद का, बोली का स्वरूप एकदम भिन्न हो। पर आप इसमें मूल तत्व निकालेंगे तो वह एक ही होगा और वह होगा देश का विकास। सुशासन। वह होगा, देश का स्वाभिमान। वह दिन गए जब विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे सिर्फ पांच सितारा होटल या विश्वविद्यालय के सभागार के प्रसंग होते थे ।
अब जी-20 में मोदी अमेरिका के राष्ट्रपति से कैसे मिलते हैं, इसकी धमक पान की पिचकारी के साथ भी आप देखेंगे। अत: यह जो परिणाम आए हैं वह 'अंडर करंट' नहीं है। यह स्व स्फूर्त चेतना है जो विस्तार ले रही है। उन्होंने कहा कि आप पत्रकार हैं, जरा शोध कीजिए। अजा-अजजा, बाहुल्य क्षेत्र का, इसके और छोटे सेंपल में जाइए। मुस्लिम क्षेत्र में जाइए, आप टेलीविजन की डिबेट सुनना बंद कर देंगे। वह कहने लगे, मैं भी जब वल्लभ भवन में था, ऐसा ही सोचता था। पर अब अपने गांव जाता हूं चार ऐसे लोगों से भी मिलता हूं जिन्हें पता नहीं है कि मैं कभी प्रमुख सचिव भी रहा हूं। उनकी बातें सुनकर लगता है कि देश का चिंतन वातानुकूलित कक्षों में सड़ांध मार रहा था और आज भी मार रहा है। पर यह देश वाकई बदल रहा है। यह देश अब भाजपा, कांग्रेस वामी सपाई या और कोई दल के उसी के बने बनाए फॉर्मेट से काफी ऊपर है। इसलिए आप देखिए राजस्थान-छत्तीसगढ़ ढ़ में भी वह सत्ता बदल देता है। जबकि विश्लेषक यह मान रहे थे कि भूपेश सरकार बेहतर है। पर स्पष्ट जनादेश भाजपा को।
मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता के लाले पड़ेंगे। यह माना जा रहा था । परिणाम क्या आया? और यहीं नहीं, वह एकदम भावुक भी नहीं है। वह पोहरी में, दतिया में, बमौरी में या हरदा में अपना फैसला भाजपा के खिलाफ भी दे देता है। वह यह बताना जानता है कि हम विचार के साथ हैं, नीयत के साथ है, पर आप मगरूर में होंगे तो हम कान भी उमेठेंगे। वह कहने लगे यह आप समझेंगे तो पाएंगे यह करंट नहीं है। इसमें कोई झटका नहीं लगेगा। मतदाता इतना शांत अैर स्थिर है, कि उसे कहां या निर्णय लेना है, जानता है। बस आप उसे नहीं जानते। एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने मेरे ज्ञान चक्षु खोल ही दिए थे पर शायद चलित पाठशाला पूरी नहीं हुई थी। फल वाले से अपनी आदत के मुताबिक फिर सवाल किया, भैया यह बताओ फूल ही फिर यों आया? वह बोला बाबूजी हम न जाने, यह तो आप पढ़े लिखों का काम है। हम तो इतना जानत हंै कि मोदी पढ़ा लिखा है, राहुल तो यह भी नहीं तय कर पा रहा कि दाढ़ी रखनी है या नही। यह कहकर उसने कहा, बाबूजी 80 रुपए हो गए। झटके में तंद्रा टूटी यह देश का आम फल वाला है, इसे आप कितना पढ़ा-लिखा कहेंगे? और अंत में या चेतना के स्तर पर देश एक तल पर नहीं सोच रहा है ?