अयोध्याकाण्ड (पार्ट - 1) : इंद्र की अमरावती से भी सुंदर थी त्रेता की अयोध्याजी
भगवान श्रीराम की अयोध्या इन दिनों प्रमुदित है... आनंद में डूृबी हुई है। हर्ष और उल्लास का वातावरण पूरी अयोध्या में यहां-वहां हर तरफ बिखरा हुआ है ऐसा हो भी क्यों नहीं, प्रभु श्रीराम सदियों बाद 22 जनवरी को अपने धाम में जो पधार रहे हैं सो जाहिर है कि उनके आगमन की खुशी हर तरफ छाई हुई है। नर-नारी, बाल-अबाल, वृद्ध अपने प्रभु के आगमन पर इतराते घूम रहे हैं। हवाएं मंद-मंद शीतल होती हुई वासंती हो चली हैं। उधर सरयू की अगाध जलराशि भी उत्ताल तरंगें भर रही हैं, मानो प्रभु राम के श्रीचरणों को पखारने को आतुर हो। और तो और सारे देश की राहें अयोध्या की ओर मुड़ गई हैं। हर कोई प्राण-प्रतिष्ठा की सुंदर छवियों को अपनी आंखों में समो लेना चाहता है। रामजी के आगमन के लिए अयोध्या को खूब सजाया संवारा गया है। यह हमारे-आपके दौर की यानि कलिकाल की अयोध्या है। लेकिन क्या त्रेता की अयोध्या भी ऐसी ही थी? आखिर कैसा था उसका वैभव, उसका सौंदर्य और समाज ..? अयोध्या को किसने बनाया, किसने बसाया..? आइए जानते हैं आज से शुरू हो रहे अयोध्या काण्ड में...
हमारे धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में जिस अयोध्या का वर्णन किया गया है, वह अद्भुत थी। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी, और उन्होंने ही इस बसाया भी। चूंकि हम सब मनु की संतानें हैं सो यह कहा जाए कि हम सब भी अयोध्यावासी हैं तो गलत नहीं होगा।
बहरहाल, सात पावन और पवित्र पुरियों मेंं से एक अयोध्या का महत्व इसलिए भी है कि तीन लोकों के स्वामी भगवान विष्णु ने यहीं के चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के घर में अवतार लिया था। हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया गया है कि- 'अयोध्या, मथुरा, माया काशी कांची अवंतिकापुरी द्वारावती सप्तियता मोक्षदायक:।' अर्थात मोक्षदायिनी सातपुरियों में अयोध्या प्रथम स्थान पर है। हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए धर्म ग्रंथों में भी अयोध्या का वर्णन अद्भुत, अनूठा व मनोरम है। महर्षि वाल्मीकि या गुसांई तुलसीदास ने जिस अयोध्या का वर्णन रामायण और रामचरित्र मानस में किया है, उसकी भौगोलिक स्थिति आज की अयोध्या से बिल्कुल मिलती है। अयोध्या कहें या अवध धाम अथवा कौशलपुरी या साकेत ये सभी नाम अयोध्या जी के ही है। भगवान श्रीरामचंद्र ने अपने अंशों के साथ यहीं अवतार लिया।
राम की कीर्ति को जन-जन तक पहुंचाने वाले महर्षि वाल्मीकि एवं गुसांई तुलसीदास जी ने जिस तरह शब्द बिम्बों और वाक्य विन्यास, विविध उपमाओं विशेषणों से अवधपुरी और भगवान राम की जो तस्वीर खींची है उससे अयोध्या व श्रीराम लोगों के मन में एक बार फिर जीवंत है। राममंदिर के निर्माण के लिए अयोध्या का फिर से श्रृंगार किया गया है।
रामायण के बालकाण्ड के पांचवें सर्ग में महर्षि वाल्मीकि ने अयोध्या के वैभव और भव्यता का विस्तार से चित्रण किया है। वाल्मीकि के अनुसार अयोध्या को मनु ने बसाया। वे कहते हैं कि सरयू के तट पर संतुष्टजनों से पूर्ण धनधान्य से भरापूरा उत्तरोत्तर उन्नति करता कौशल नाम का एक बड़ा देश था। वे इसके विस्तार की चर्चा करते हुए कहते हैं कि इसी कौशल देश में मनुष्यों के आदि राजा महाराज मनु ने तीनों लोकों में विख्यात अयोध्या नगरी बसाई जो बारह योजन यानि 96 मील चौड़ी थी। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार अयोध्या का सौंदर्य अनुपम था। प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के चलते भले ही आज अयोध्या आलोकित हो रही है लेकिन पौराणिक काल में भी यह नगरी आलोकित व सुवासित थी, चौड़े मार्ग थे, सड़कों पर नित्य मसक से जल का छिड़काव होता था। वास्तव में अयोध्या इन्द्र की अमरावती से भी बढ़कर थी। अयोध्या की सुरक्षा भी जबरदस्त थी। वाल्मीकि जी कहते हैं कि यह नगरी दुर्गम किले और खाई से युक्त थी। शत्रु यहां तक पहुंच ही नहीं सकते थे। यहां के निवासियों पर अकूत धन संपदा थी। ऊंची अटारियों वाले घर थे जो ध्वज पताकाओं से सज्जित व शोभित रहते थे। अयोध्या पुरी के नर-नारी भी रूपवान थे। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी मानस में अयोध्या के वैभव का शानदार वर्णन किया है। तुलसी कहते हैं- अयोध्यापुरी के उत्तर में सरयू जी बह रही है, जिसका जल निर्मल और गहरा है, किनारे मनोहर घाट बने हुए हैं। वे वहां की ज्ञान और निर्वाण परंपरा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि नदी के किनारे सांसारिक मोह और बंधनों से विरक्त और ज्ञानपारायण मुनि एवं संन्यासी निवास करते हैं। वे आगे कहते हैं-
रमानाथ जहं राजा सो पुर बरनि न जाय
अनिमादिक सुख सम्पदा रहीं अवध सब छाय
अर्थात् स्वयं लक्ष्मीपति भगवान जहां के राजा हों, उस नगर का क्या वर्णन किया जा सकता है। अणिमा आदि आठों सिद्धियां और समस्त सुख सम्पदा अयोध्या में छा रही है।
अयोध्या की महिमा का वर्णन करते हुए तुलसीदास ने आगे कहा-
नारदादि सनकादि मुनीसा, दरशन लागि कौशलाधीशा।
दिन प्रति सकल अयोध्या आवहिं, देख नगरु विरागु बिसरावहिं।
यानि महर्षि नारद और सनकादि मुनि नित्य अयोध्या पधारते हैं भगवान के दर्शन करते हैं और नगर को देख ऐसे निमग्न हो जाते हैं कि वैराग्य ही भूल जाते हैं। गोस्वामी जी कहते हैं कि इस पावनपुरी को देख लेने भर से शास्त्रों में वर्णित अक्षम्य पापों से मनुष्य को मुक्ति मिल जाती है।
अयोध्या का महात्म्य अपार है। तुलसीदास जी ने मानस में इसे लिखा है। भगवान शंकर जब पार्वती जी को रामावतार की कथा सुना रहे थे, तब पार्वती जी ने उनसे पूछ लिया कि क्या वे अवधपुरी के महात्म्य को जानते हैं?। शिव कहते हैं, नहीं। वे बताते हैं कि वे रामावतार पर मनुष्य के रूप में काग भुसुंडि जी के साथ अयोध्या गए थे। लेकिन वहां जाकर परमानंद में इस कदर डूब गए कि सब कुछ भूल गए। वे कहते हैं कि गिरिजा मैं तो अवधपुरी का महात्म्य बताने में खुद को असमर्थ पाता हूं। यही बात जब काग भुसुंडि जी से पूछी जाती है तो वे भी ऐसा ही जवाब देते हैं। कहते हैं कि मैं बाल्यकाल में प्रभु के साथ रहा जरूर हूं। मैंने उनकी जूठन भी खाई है। अयोध्या में रहते हुए मैं श्रीराम के समीप ही रहा हूं लेकिन अयोध्या के महात्म्य को नहीं जान पाया। पूछा गया तो फिर कौन है जो अयोध्या की महिमा और उसके महात्म्य को जानता है। तुलसीदास जी कहते हैं-
अवध प्रभाव जान सोई प्रानी
जेटि उर बसाहि राम धनुपानी
अयोध्या की महिमा को वही जानता है जिसके हृदय में श्रीराम धनुष बाण लेकर विराजमान हों। सब लोग सोचने लगे कि आखिर वह कौन है जिसके हृदय में भगवान राम विराजमान हैं। जब निर्णय नहीं हो सका तो गोस्वामी जी से ही पूछा गया। तब गोस्वामी ने उत्तर दिया और कहा-
प्रणवऊ पवन कुमार खल बन पावक ज्ञान घन
जासु हृदय आगार बसहु राम सर चाप धर
अर्थात श्री हनुमान जी महाराज ही ऐसे हैं जो अयोध्या के प्रभाव को जानते हैं, क्योंकि उन्हीं के हृदय में भगवान राम विराजते हैं। अयोध्या के प्रभाव के बारे में तुलसीदास जी लिखते हैं कि चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष का एक कल्प होता है और एक हजार करोड़ कल्प काशी में वास करने से जो फल प्राप्त होता है वह फल अयोध्या में एक क्षण रहने से प्राप्त होता है। साठ हजार वर्ष प्रयागराज में रहने से जो फल प्राप्त होता है वह अयोध्या में आधे निमिष रहने से प्राप्त होता है। तुलसीदास जी ने अयोध्या के बारे में लिखा है-
जो सुख जाग-जाग जप तप तीरथ ते दूरि
राम कृपा से सोई सुख अवध गलिन रहेउ पूर
कोटि कल्प काशी बसे मथुरा कल्प हजार
एक निमिष सरयू बसे तुले न तुलसीदास
अवध धाम धामादि पति अवतारनपति राम
सकल सिद्ध पति जानकी दासनपति हनुमान
तो यह है अयोध्या की महिमा। 22 जनवरी को अवधपति भगवान श्रीराम अयोध्या में अपने मंदिर में विराजमान होंगे। अभी न सही लेकिन एक बार हम सबको अयोध्या जरूर जाना चाहिए।