अयोध्याकाण्ड (पार्ट - 2) : पहली बार कुश और दूसरी बार विक्रमादित्य ने बनवाया था राममंदिर
कोई 500 सालों के बाद अयोध्या में फिर से राममंदिर बनकर तैयार है। आने वाली 22 जनवरी को अयोध्या में मंदिर के उद्घाटन के साथ ही यहां रामलला विराजमान हो जाएंगे। सरयू के तट पर बसी अयोध्यापुरी एक जमाने में हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म की पवित्र नगरी मानी जाती थी।
धन धान्य और समृद्धि से भरी अयोध्या की अतुलनीय छटा का जिक्र वाल्मीकि रामायण से लेकर रामचरित मानस तक में खूब मिलता है। अयोध्या के वैभव, उसके महात्म्य और मान्यता की चर्चा हम अयोध्याकाण्ड के पहले पार्ट में विस्तार से कर चुके हैं। अब दूसरे पार्ट में हम चर्चा करेंगे राम मंदिर की। मंदिर को पहली बार और दूसरी बार किसने बनवाया, किसने अयोध्या को पुन: बसाया। आइए जानते हैं राम मंदिर का इतिहास-
स्कंद पुराण के अनुसार जिस तरह काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिकी है, ठीक उसी तरह अयोध्या के बारे कहा जाता है कि यह भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है और भगवान विष्णु जी के सुदर्शन चक्र पर बसी है। इसे लेकर कई पौराणिक कथाएं भी है। भगवान राम की यहां जन्मस्थली थी सो जाहिर है कि उनका भव्य मंदिर भी था। ऐतिहासिक एवं पौराणिक तथ्यों पर जाएं तो भगवान श्रीराम के सरयू में जल समाधि लेने के बाद अयोध्या एक लंबे कालखण्ड के लिए उजाड़ और बियावान हो गई। लेकिन श्रीराम जन्मभूमि पर बना भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर(महल) जस का तस रहा। कालांतर में मंदिर भी ढह गया। पौराणिक कथाओं व धार्मिक ग्रंथों को आधार मानें तो भगवान श्रीराम के पुत्र कौशांबी नरेश महाराजा कुश ने पुन: अयोध्या को बसाया, और उन्होंने ही अपने पिता श्रीराम के भव्य मंदिर सहित अयोध्या के तमाम मंदिरों का निर्माण कराया। इस घटना का वर्णन महाकवि कालिदास रचित 'रघुवंशÓ में मिलता है। एक अन्य तथ्य लोमश रामायण में है। महर्षि लोमश द्वारा रचित इस रामायण के अनुसार कुश ने सबसे पहले अपने पिता की जन्मभूमि पर पत्थरों के नक्काशीदार खंबों वाले भव्य मंदिर का निर्माण कराया। जैन परंपरा में यह उल्लेख है कि इसे ऋषभदेव ने बसाया।
बहरहाल, कुश के बाद सूर्यवंश की अगली तमाम पीढ़ियों तक-तक इसका अस्तित्व अंतिम शासक-महाराजा ब्रहद्वल तक अपने उत्कर्ष पर रहा। कहते हंै कि ब्रहद्वल की मृत्यु महाभारत क युद्ध में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। इसके बाद एक बार फिर अयोध्या उजाड़ सी हो गई। लेकिन श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व बना रहा।
इसके बाद ज्ञात ऐतिहासिक तथ्यों को मानें तो ईसा के लगभग एक सदी पूर्व अवंतिका यानि उज्जैयनी के चक्रवर्ती सम्राट महाराजा विक्रमादित्य ने दूसरी बार श्रीराम मंदिर का निर्माण कराया। कहते हैं कि महाराजा विक्रमादित्य एक बार शिकार करते हुए अयोध्या में जा पहुंचे। थक हार कर वे सरयू नदी के किनारे एक आम के पेड़ के नीचे अपने फौज फांटे सहित विश्राम करने लगे। उस दौर में यहां घना और गहवर जंगल था। दूर-दूर तक कोई बसाहट नहीं थी। जब विक्रमादित्य यहां विश्रामरत थे तो उन्हें कुछ चमत्कारित क्रिया-कलाप होते दिखे। उन्होंने जब इस वाबत पड़ताल की तो जंगल में कतिपय ऋषि-मुनियों से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह कौशल प्रदेश था। भगवान श्रीराम का यहां अवतरण हुआ था और यह उनकी जन्मभूमि है। कहते हैं कि संतों व ऋषियों के निर्देश पर ही विक्रमादित्य ने यहां भव्य राममंदिर के साथ कुएं, बाबड़ी, सरोवरों, महलों आदि का निर्माण कराया। उन्होंने श्रीराम मंदिर में काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों से निर्मित भव्य राम मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर का वैभव व भव्यता देखते ही बनती थी। यहां पर उन्होंने अद्भुत राममूर्ति की स्थापना भी कराई।
शुंग और गुप्त वंश के शासकों ने भी राममंदिर की देखरेख की:
महाराजा विक्रमादित्य के बाद शुंग और गुप्त वंश के शासकों ने भी श्री राम मंदिर की वर्षों तक देखरेख की। शुंग वंश के पहले शासक पुष्यमित्र शुंग ने अपने कालखण्ड में जीर्ण-शीर्ण हो चुके राममंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से मिला था, जिससे यह सिद्ध होता है कि अयोध्या में राममंदिर था, और शुंग वंश के शासकों ने उसका पुनर्निर्माण या जीर्णोद्धार कराया। बाद के कालखण्ड में गुप्त वंश के शासकों ने भी मंदिर की लम्बे समय तक देखरेख की। गुुप्त वंश के शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में तो कहते हैं कि अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी भी रही। कालिदास ने 'रघुवंश' में कई बार इसका उल्लेख किया है।
चीन के बौद्ध भिक्षुओं ने भी अयोध्या पर चर्चा की:
चीन के बौद्ध भिक्षुओं फाहियान व ह्वेनसांग ने अयोध्या व राममंदिर का जिक्र किया है। 300 इस्वी में भारत की यात्रा पर आकर फाहियान ने यहां देखा कि अयोध्या में कई मंदिर है। यहां बौद्ध मठ भी है और उनका रिकॉर्ड रखा गया है। इसी तरह सातवीं सदी में आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अयोध्या को 'पिकोसिया' नाम से संबोधित किया। ह्वेनसांग के अनुसार यहां 20 बौद्ध मठ थे और तीन हजार बौद्ध भिक्षुक अयोध्या में रहा करते थे। उसने लिखा है कि यहां हिन्दुओं का बड़ा मंदिर था। जो राममंदिर ही था। बहरहाल, इतिहाम में पुराणों में त्रेतायुगीन राम से लेकर द्वापरकालीन महाभारत उसके बाद अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं का उल्लेख मिलता है। और उसके बाद अगले 800 वर्षों तक भी इसका उल्लेख मिलता है।
(कल आप पढ़ेंगे मुगल शासकों ने किस तरह राममंदिर को तोड़ा और वहां कैसे बाबरी मस्जिद बनाई)