अयोध्याकाण्ड (पार्ट - 3) : बाबर ने तोड़ा था राम मंदिर फिर हिंदुओं के रक्त में गारा बनाकर मीर वाकी ने तामीर की थी बाबरी मस्जिद

अयोध्याकाण्ड (पार्ट - 3) : बाबर ने तोड़ा था राम मंदिर फिर हिंदुओं के रक्त में गारा बनाकर मीर वाकी ने तामीर की थी बाबरी मस्जिद
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चंद्रवेश पांडे

अयोध्या जी में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर तैयार है। इसी महीने की 22 तारीख को भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह के साथ इस मंदिर में रामलला विराजमान होने जा रहे हैं। कोई 495 साल बाद यह शुभ घड़ी आई है जब हम और आप श्रीराम जी का मंदिर बनने का सपना अपनी आंखों के सामने पूरा होते हुए देख रहे हैं। लेकिन नई पीढ़ी को 495 सालों तक मंदिर निर्माण के लिए चले संघर्ष की जानकारी शायद ही हो। 495 साल पहले 1528 में किस तरह विधर्मी मुगल शासकों ने विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया राममंदिर तोड़ा और वहां मस्जिद बनाई गई। उसके बाद भी लगातार मंदिर के लिए संघर्ष चलता रहा। आइए जानते हैं अयोध्या के पार्ट 3 में -

बात सातवीं सदी से शुरू करते हैं। यह वह दौर था, जब भारत पर मुगल आक्रांताओं के आक्रमण बढ़ गए थे। यहां महमूद गजनवी से लेकर उसके भांजे सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की। वो बहराइच में 1033 ई. में मारा गया। इसके बाद तैमूर का शासन रहा। तैमूर के बाद शकों का आधिपत्य हुआ तो अयोध्या उनके अधीन हो गई। यह दौर शक शासक महमूद शाह का था। 7वीं सदी तक भारत में मुगलों के आक्रमण जबर्दस्त तरीके से बढ़ गए थे। मुगल आक्रांताओं ने काशी, मथुरा के साथ अयोध्या में लूटपाट मचाई। हिंदू मठ-मंदिरों को तोड़ा गया। पुजारियों व साधु संन्यासियों की बेरहमी से हत्याएं की गईं। लेकिन 14वीं सदी तक वे अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो सके। कारण यही था कि जब-जब विधर्मी मुगल शासक राममंदिर तोड़ने के लिए आगे बढ़ते थे, तब-तब अयोध्या व आसपास के हिंदू शासक, वहां की जनता और साधु उन्हें खदेड़ देते थे। इस संघर्ष में हजारों रामभक्त मारे जाते रहे। हजारों संतों ने अपने बलिदान दिया। ऐसे तमाम आक्रमणों को झेलते हुए श्रीराम जन्मभूमि पर बना भगवान श्रीराम का मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। सिंकदर लोधी के समय तक यह मंदिर मौजूद रहा।

बाबर ने तुड़वा दिया था मंदिर:

ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि 14वीं सदी में भरत पर मुगलों का अधिकार हो गया। और उसके बाद से राम जन्मभूमि को नुकसान पहुंचाने, मंदिर को तोड़ने के लिए लगातार प्रयास मुगलों द्वारा किए गए और आखिरकार 1527-28 इस मंदिर को तोड़ दिया गया। इतना ही नहीं मंदिर के स्थान पर मस्जिद बना दी गई। मंदिर को मुगल आक्रांता बाबर के निर्देश पर ही तोड़ा गया। बाबर के सेनापति मीर वाकी ने इसे तुड़वाया। 'बाबरनामाÓ के अनुसार बाबर ने 1528 में अयोध्या में पड़ाव डाला। उसने देखा कि अयोध्या हिंदू समाज का बड़ा तीर्थ है और राममंदिर पर हिन्दू समाज की अगाध श्रद्धा है। सो हिन्दू समाज को नीचा दिखाने के लिए उसने मीर वाकी को मंदिर तोड़ने के निर्देश दिए। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि मंदिर को बचाने के लिए हजारों साधु-संतों व हिन्दू युवाओं ने मीर वाकी की सेना से संघर्ष किया और अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।

कहते हैं कि - मीर वाकी की सेना ने यहां इस कदर कत्लेआम किया कि खून की नदियां बह निकलीं। बाबर के सैनिकों ने इसी रक्त में गारा सानकर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया। बताते हैं कि जब मंदिर तोड़ा जा रहा था तब जन्मभूमि स्थल पर बने मंदिर पर सिद्ध महात्मा श्यामानंद जी महाराज का आधिपत्य था। वे ही यहां पूजा-पाठ करते थे। उस समय भीटी के राजा माहताब सिंह बद्रीनारायण ने मंदिर को बचाने के लिए बाबर की सेना से युद्ध लड़ा। जो कई दिनों तक चला। इस युद्ध में श्यामानंद जी सहित हजारों संतों ने भी हिस्सा लिया। सब के सब मंदिर पर बलिदान हुए। इतिहासकार कनिंघम ने अपने लखनऊ गजेटियर में इस बात का उल्लेख किया है। गजेटियर के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर वह लिखता है कि 1,74, 000 हिन्दुओं की हत्या के बाद मीर वाकी मंदिर को तोड़ने में सफल रहा। इसके बाद ही वहां बाबरी मस्जिद तामीर की गई। मस्जिद पर जो इबारत खुदी थी उससे भी इस बात के संकेत मिलते हैं कि मस्जिद मंदिर तोड़कर ही बनाई गइ थी। मस्जिद पर लिखा था- '' जन्नत तक जिसके न्याय के चर्चे हैं, ऐसे महान शासक बाबर के आदेश पर दयालु मीर वाकी ने फरिश्तों की इस जगह को मुकम्मल रूप दिया।'

खास बात ये है कि हिन्दू समाज ने कभी भी इस स्थान पर बाबरी मस्जिद को स्वीकार नहीं किया। वे हमेशा यही कहते और मानते रहे कि यह स्थान आराध्य भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है और वहां श्रीराम का भव्य मंदिर था। 1852-53 में भारत में अंग्रेजों का शासन था। तब भी इस बात को लेकर हिन्दू-मुसलमानों के बीच संघर्ष हुआ। बाबरी मस्जिद बनने के बाद मामला कभी शांत नहीं हुआ और यह आग सुलगती रही। हिन्दुओं ने वहां पूजा-पाठ के कई प्रयास किए। 1852 में बड़ा संघर्ष हुआ। हिन्दू समाज ने बाबरी मस्जिद पर कब्जे का प्रयास किया। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों पक्षों के बीच शांति कायम करते हुए यह व्यवस्था दे दी कि मस्जिद के अंदर नमाज होगी और बाहर चबूतरे पर हिन्दू पूजा कर सकेंगे। बताते हैं कि हिन्दू समाज ने मस्जिद के बाजू में एक छोटा मंदिर बनाकर पूजा करने की अनुमति तत्कालीन नवाब वाजिद अलीशाह से मांगी, लेकिन वाजिद अली ने अनुमति नहीं दी। उस समय मुस्लिमों ने मंदिर बनाने का घोर विरोध किया, जैसा कि आज भी कर रहे हैं। हिन्दू समाज को खुले में राम चबूतरे पर पूजा की अनुमति मिली, पर मंदिर नहीं बनने दिया गया। अंग्रेज भी सतर्क थे, वे विवाद नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने यहां सुरक्षा बढ़ा दी।

1885 में निर्मोही अखाड़े के महंत बाबा रघुवरदास ने इस मामले पर पहली बार कानूनी लड़ाई लड़ी। उन्होंने मस्जिद के बाजू में एक मंदिर का निर्माण भी शुरू कराया, लेकिन अदालती आदेश पर उसे रोक दिया गया। 1886 में फैजाबाद के जिला जज कर्नल एफईए शेमियर ने महंत रघुवरदास के दावे को खारिज कर दिया। जिला जज ने खुद इस जगह का निरीक्षण किया और जांच में पाया कि एक मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। बताते हंै कि इसके बाद भी 1912 और 1934 में बाबरी मस्जिद को हटाने के प्रयास किए गए, लेकिन हर दफा अंग्रेज आड़े आते रहे। उन्होंने मस्जिद का जीर्णोद्धार भी कराया।

कागजों में मस्जिद जन्मभूमि के नाम पर दर्ज रही

असल में बाबरी मस्जिद या यूं कहें कि ढांचा कभी भी वफ्फ की जमीन पर था ही नहीं। कागजों में यह हमेशा जन्मभूमि के नाम से जानी जाती रही। जाहिर है कि मस्जिद तो बनी पर कागजों में इसे जन्मभूमि मस्जिद के नाम से ही पुकारा जाता रहा। यह दर्ज भी इसी नाम से रही। इसके बाद 1861 में राजस्व के रिकॉर्ड में हेराफेरी कर अलग से जामा मस्जिद और मस्जिद शब्द जोड़े गए। बाद में उत्तरप्रदेश सरकार ने जब जांच कराई तो यह फर्जीवाड़ा भी सामने आ गया।

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