अटेर : भाजपा-कांग्रेस को भारी पड़ सकती है बगावत, मुन्ना सिंह बागी हुए तो बन सकती है त्रिकोणीय स्थिति

अटेर : भाजपा-कांग्रेस को भारी पड़ सकती है बगावत, मुन्ना सिंह बागी हुए तो बन सकती है त्रिकोणीय स्थिति
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फोटो - मुन्ना सिंह , अरविंद भदोरिया , हेमंत कटारे

ग्वालियर/स्वदेश एक्सक्लूसिव। ग्वालियर-चंबल अंचल में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में बगावत के सुर गूंज रहे है। आयाराम-गयाराम की स्थिति से दोनों ही पार्टियों के निष्ठावान कार्यकर्ता आहत होने पर नेता मुखर होकर विरोध की राह पर हैं। जिन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं उनमें लहार व अटेर सीट पर भाजपा में ज्यादा बगावत है, वहीं कांग्रेस में साइलेंट विरोध है। भिंड जिले की अटेर विधानसभा में अगर मुन्ना सिंह ने बगावत की तो यहां त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है।

लहार विधान सभा के बाद अटेर में भाजपा में टिकट को लेकर अंतर विरोध की पूरी संभावना एक-दो दिन में सडक़ पर नजर आ सकती है। अटेर विधान सभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी ने सहकारिता मंत्री डॉ. अरविंद सिंह भदौरिया को मैदान में उतारा है। उन्होंने 2018 के चुनाव में कांग्रेस के हेमंत कटारे को शिकस्त देकर चुनाव जीता और कांग्रेस सरकार गिराने में भी अहम भूमिका में थे। अटेर से भाजपा के दो बार विधायक रह चुके मुन्ना सिंह भदौरिया का 2008 में भाजपा ने टिकट काटकर अरविंद सिंह भदौरिया को उम्मीदवार बनाया था, तव वरिष्ठ नेताओ ने संगठन निष्ठा का वास्ता देकर मुन्ना सिंह को मना लिया था। तब से लगातार अरविंद सिंह भाजपा के टिकट पर चार चुनाव लड़ चुके हैं। और इस बार में पांचवीं बार उम्मीदवार हैं। वही अपनी बारी का इंतजार कर रहे मुन्ना सिंह का भी पंद्रह साल में सब्र का बांध टूटने की स्थिति में आ चुका है। भाजपा से अरविंद भदौरिया का टिकट फाइनल होते ही अटेर से दो बार विधायक रहे मुन्ना सिंह ने पार्टी से त्याग पत्र देकर किसी अन्य दल से चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में आ गए हंै।

कांग्रेस ने 2018 चुनाव मे निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे हेमंत कटारे को चुनाव मैदान में उतारा है, वे प्रदेश के तेज तर्रार नेता रहे नेता प्रतिपक्ष स्व. सत्यदेव कटारे के सुपुत्र हैं। उन्होंने 2017 का उपचुनाव सहानुभूति लहर में जीता था, लेकिन 2018 का चुनाव हार गए जबकि प्रदेश मे कांग्रेस की सरकार बनी थी। 2020 के उपचुनाव में मेहगांव में भी अति उत्साह में हार गए। वर्तमान में हेमंत कटारे स्वयं के प्रभाव से ज्यादा अरविंद सिंह के विरोध के चलते जीत की चर्चाओं में हैं। यदि मुन्ना सिंह भदौरिया बागी होकर चुनाव मैदान में उतरे तो वे भाजपा व कांग्रेस दोनों का बराबर नुकसान करेंगे। जिससे अटेर मे त्रिकोणीय चुनाव होने की पूरी संभावना है। मुन्ना सिंह के साथ कुछ प्लस पॉइंट हंै, वे पूरे समय क्षेत्र में रहते हंै। उनकी अभी क्षत्रिय वोटों के अलावा ब्राह्मण व अन्य पिछड़ा अनुसूचित जाति संपर्क पूंजी की मुट्ठी अभी बंद है।

लोधी व बघेल समाज के वोट निर्णायक

अटेर विधान सभा क्षेत्र में लोधी व बघेल समाज के अच्छी तादात में वोट हंै, लेकिन इस समाज के नेता स्वयं विधायक बनने की स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेस नेता सत्यदेव कटारे को 2008 के चुनाव मे बघेल व लोधी समाज की जुगल बंदी ने अरविंद सिंह को हराने के बजाए सत्यदेव कटारे को हरा दिया था। यहां से उमाभारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी ने पहलवान बघेल को उम्मीदवार बनाया था जो खुद तो नहीं जीते पर सत्यदेव कटारे को विधानसभा में पहली हार का स्वाद चखा दिया, वहीं 2017 के उपचुनाव में सारथी बनकर हेमंत को जिताया भी है।

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