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चंबल में भाजपा का गढ़ बन चुका है भिंड-दतिया संसदीय क्षेत्र
मप्र की लोकसभा सीटों में उत्तरी मप्र की भिण्ड-दतिया संसदीय क्षेत्र भाजपा के मजबूतगढ़ में गिनी जाती है।
भिंड। लोकसभा चुनाव 2024 का कभी भी बिगुल बज सकता है। भारतीय जनता पार्टी लगातार तीसरी बार केंद्र में साा पर काबिज होने के लिए कमर कस चुकी है। वहीं काँग्रेस भी विपक्षी दल को एक जुट करने की रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं, लेकिन मप्र में कांग्रेस के अलावा यदि किसी अन्य राजनीतिक दल के पास अपना कुछ वोट बैंक है, तो वह बसपा यानि हाथी का है। जो कुछ सीटों पर भाजपा से सीधे मुकाबले की स्थिति में भी है। उन्हीं में एक भिंड-दतिया लोकसभा क्षेत्र है। जहां 1984 के चुनाव के वाद तीन चुनाव में कांग्रेस मुकाबले से बाहर रही है। 1989, 1996, 1998 के चुनाव में भाजपा का बसपा से मुकाबला हुआ था और कांग्रेस को बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा था,इस संसदीय क्षेत्र में 2009 के वाद से बसपा का अस्तित्व कम हुआ है और तीन चुनाव में भाजपा व काँग्रेस सीधे मुकाबले में है इस लोकसभा सीट के अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के वाद काँग्रेस का बोट प्रतिशत पहले की अपेक्षा बढ़ा है।
दो जिले तथा आठ विधानसभा क्षेत्र मिलकर बनी भिंड- दतिया लोकसभा सीट में कुल 28,93,641 मतदाता हैं। जिसमें 10,19,722 पुरुष एवं 8,73,872 महिला तथा 37 टीजी हैं। निर्वाचन आयोग के निर्देशों के अनुरूप 2024 के चुनाव की पूरी तयारी कर ली है। यहा भिंड और दतिया में मतदान के लिए 2183 मतदान केंद्र बनाए हैं। वहीं भाजपा कमल को प्रत्याशी मानकर पूरी तयारी में जुटी है। उसके द्वारा विधानसभा क्षेत्रवार चुनाव कार्यालय शुरू कर दिए गए हैं। वही काँग्रेस व बसपा प्रत्यासी को लेकर पेशोपेश में है।
मप्र की लोकसभा सीटों में उारी मप्र की भिण्ड-दतिया संसदीय क्षेत्र भाजपा के मजबूतगढ़ में गिनी जाती है। स्वतंत्रता के बाद के लोकसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो 1957 में सूरज प्रसाद उर्फ सूर्य प्रसाद (अजा) वराधाचरण चुनाव जीते थे, दोनों ही कांग्रेस के थे, जबकि जनसंघ के नारायण कृष्ण राव व देवराम (अजा) निकटतम पराजित उमीदवार रहे थे, 1962 में यह लोकसभा सीट ग्वालियर से पृथक हुई पर मुरैना जुड़ा रहा। 1962 में लोकसभा सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया और 1962 में पुन: सूरज प्रसाद चुनाव जीते, उन्होंने प्रसोपा के आत्मदास को 2792 मतों से पराजित कर जीत हासिल की। जबकि जनसंघ के तेजसिंह तीसरे स्थान पर रहे, 1967 के चुनाव में प्रसोपा का अस्तित्व कम हुआ और यहां से जनसंघ के उमीदवार यशवंत सिंह कुशवाह ने कांग्रेस के वीरेन्द्र सिंह को भारी मतों से पराजित किया। उनकी जीत का अंतर लगभग दोगुना था।
1971 के चुनाव में जनसंघ से राजमाता विजयाराजे सिंधिया चुनाव मैदान में उतरीं। उन्होंने कांग्रेस के नरसिंह राव दीक्षित को पराजित किया। 1977 में कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष एकजुट हुआ और विपक्ष के संयुक्त उमीदवार के रूप में लोकदल के रघुवीर सिंह मछण्ड मैदान में आए। उन्होंने कांग्रेस के राघवराम चौधरी कोकड़ी शिकस्त देकर पराजित किया था। 1980 में कांग्रेस ने कालीचरन शर्मा को उमीदवार बनाकर वापिसी की। जनता पार्टी में विभाजन होने से यहां से जनता दल के रघुवीर सिंह मछण्ड व जनता दल (एम) के रामशंकर सिंह चुनाव मैदान में उतरे, इस चुनाव में रमाशंकर सिंह दूसरे स्थान पर रहे, 1984 में कांग्रेस को इन्दिरा लहर का फायदा मिला था। यहां से दतिया के राजा कृष्ण सिंह जूदेव चुनाव जीते, उस समय कृष्ण सिंह जूदेव व भाजपा की वसुंधरा राजे के बीच रोचक मुकाबला हुआ था। रमाशंकर सिंह लोकदल के उमीदवार के रूप में तीसरे स्थान पर रहने के साथ खूब चर्चाओ में रहे थे।
1989 में नरसिंहराव दीक्षित दोनों जिलों में हारकर भी जीते थे चुनाव पर सिमट गए-
1989 में भाजपा ने नया प्रयोग किया और कांग्रेस के बागी नरसिंह राव दीक्षित को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया। वे कांग्रेस के तत्कालीन सांसद कृष्ण सिंह जूदेव को पराजित कर विजयी हुए और लगातार दो बार सांसद का चुनाव जीत रही काँग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेलने में सफल भी रहे और पिछले पैंतीस वर्षों से काँग्रेस जीत की खुशी से दूर है। भाजपा के नरसिंह राव दीक्षित की जीत भी काफी रोचक हुई। यहां बसपा का अस्तित्व बढऩे से कांग्रेस तीसरे स्थान पर पहुंच गई। यदि भिण्ड-दतिया के चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो भाजपा भिण्ड व दतिया दोनों ही जिलों में चुनाव हारी थी। फिर भी सांसद भाजपा का चुना गया। हुआ यह भिण्ड में बसपा को सर्वाधिक वोट मिले और काँग्रेस तीसरे स्थान पर रही। इसी तरह दतिया में काँग्रेस को सर्वाधिक बोट मिले और बसपा तीसरे स्थान रही थी, लेकिन भाजपा दोनों जिलों में दूसरे स्थान पर मुकाबले में रही और औसत वोट ज्यादा होने से चुनाव जीत गई। 1991 में भाजपा ने नया चेहरा ढूंढ़ा और स्वामी योगानंद सरस्वती को उमीदवार बनाया, उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता पत्रकार उदयन शर्मा कोकड़ी टकर देकर पराजित किया और बहुजन तीसरे स्थान पर पहुंच गई, 1996 में भाजपा ने डॉ. रामलखन सिंह भिण्ड विधायक को उमीदवार बनाया था, जो बसपा के केदारनाथ काछी को पराजित कर विजयी रहे, पर कांग्रेस के वैद्य विश्वनाथ शर्मा 50 हजार मतों में सिमट कर तीसरे स्थान पर रहे। 1998 में फिर भाजपा का बसपा से मुकाबला हुआ और कांग्रेस के बालेन्दु शुक्ल तीसरे स्थान पर रहे। 1999 में डॉ. रामलखन सिंह व कांग्रेस के सत्यदेव कटारे से मुकाबला हुआ, जिसमें कटारे 53 हजार से अधिक मतों से चुनाव हारे पर 2004 में जीत का अंतर छह हजार के लगभग रह गया। 2009 में अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित होने से भाजपा ने मुरैना के अशोक अर्गल को चुनाव मैदान में उतारा। उन्होंने कांग्रेस के डॉ. भागीरथ प्रसाद को चुनाव में पराजित किया। 2014 में भाजपा ने कांग्रेस से आए डॉ. भागीरथ प्रसाद सांसद चुने गए, 2019 में फिर भाजपा ने टिकिट बदलकर संध्या राय को दिया जो वर्तमान में सांसद हैं। 2019 के चुनाव परिणाम में भाजपा प्रत्यासी संध्या राय को 5, 27, 694 तथा निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के देवाशीस जरारिया को 3, 27, 809 मत मिले थे। जबकि बसपा के बाबूराम जामोर 66,613 वोटों पर सिमट गए।