'भूराबाल' करे कमाल, लालू लाल बेहाल
पटना। गठबंधन करके कांग्रेस को निपटाने की राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव की चाल उल्टी पड़ने लगी है। इनकी चाल की काट के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जो चाल चली है, उससे परेशान लालू पुत्र तेजस्वी उनके साथ मंच साझा करने से कन्नी काटने लगे हैं। गया, कटिहार और सुपौल में हुई रैली में तेजस्वी नहीं गये। कुछ राजनीतिकों का कहना है कि पटना से गया, कटिहार और सुपौल बहुत दूर होने के कारण तेजस्वी पटना में रहते हुए भी वहां नहीं जा सके।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितनी बार बिहार गए हैं, उतनी बार नीतीश कुमार उनकी रैली में मौजूद रहे हैं। इस बारे में एक टीवी चैनल के सम्पादक प्रमुख मनोज का कहना है कि लालू और तेजस्वी कत्तई नहीं चाहते कि कांग्रेस बिहार में मजबूत हो। क्योंकि यदि बिहार में कांग्रेस खड़ी हो गई, तो सबसे अधिक नुकसान राजद को होगा। जो मुसलमान अभी तक राजद के साथ थे, वे कांग्रेस की तरफ चले जाएंगे। 'भूराबाल' यानि भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण तथा लाला ( कायस्थ) जो पहले कांग्रेस के वोट बैंक थे, यदि थोड़ा भी उसकी तरफ झुके तो युवा यादव भी कांग्रेस की तरफ चले जाएंगे। यह होते ही राजद साफ हो जायेगी। यही वजह है कि लालू प्रसाद यादव ने बिहार का चित्तौड़गढ़ कहा जाने वाले औरंगाबाद संसदीय सीट को कांग्रेस के लिए नहीं छोड़कर रणनीति के तहत उसको गठबंधन की जीतनराम माझी की पार्टी को दिलवा दिया। जबकि इस सीट को कांग्रेस के एक अनुभवी व प्रभावशाली नेता निखिल कुमार जीतने की स्थिति में थे।
कटिहार संसदीय सीट को भी, जिस पर 2014 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के तारिक अनवर जीते थे और 2018 में इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो गये, लालू ने कांग्रेस के लिए नहीं छोड़ा तो कांग्रेस ने वहां से तारिक अनवर को उम्मीदवार घोषित कर दिया। राजद ने दरभंगा सीट कीर्ति आजाद के लिए नहीं छोड़ी, शकील अहमद के लिए मधुबनी सीट भी कांग्रेस को नहीं दिया। किशनगंज में भी अड़ंगा लगाया। यह करके लालू-तेजस्वी ने कांग्रेस के मजबूत ब्राह्मण, राजपूत, मुसलमान उम्मीदवार वाली सीटें गठबंधन में काटकर नुकसान पहुंचाने की शातिर चाल चली। उसकी काट के लिए कांग्रेस ने लालू पिता-पुत्र की नाराजगी की परवाह किये बिना कटिहार और किशनगंज दोनों सीटों पर अपनी पसंद के उम्मीदवार घोषित कर दिए। यह करके कांग्रेस ने जिन नौ सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये, उनमें ज्यादातर बिहार व संबंधित संसदीय क्षेत्र की जातीय समीकरण के हिसाब बहुत ही फिट हैं। उनमें एक-एक भूमिहार,राजपूत, ब्राह्मण, लाला और दो-दो मुसलमान व दलित को टिकट दिया है। इनमें से अधिकतर की स्थिति अच्छी हैं। इससे परेशान तेजस्वी यादव कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मंच साझा नहीं कर रहे हैं और ऐसा करके वह अपने समर्थक यादव मतदाताओं को संदेश दे रहे हैं, संकेत कर रहे हैं कि कांग्रेस के उम्मीदवार को वोट मत दो।
दरअसल, लालू-तेजस्वी को डर है कि लोकसभा में कांग्रेस की सीटें बढ़ीं तो आगामी विधानसभा चुनाव में अधिक सीटें मांगेगी और उसे 'भूराबाल' तथा मुसलमानों के सहयोग से जीत जाएगी। पटना के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि तेजस्वी के कई बयान और हाव-भाव से तो यही लग रहा है। पूर्व सांसद व गांधीवादी रामजी भाई का कहना है कि लालू प्रसाद यादव ने बिहार में जिस तरह की राजनीति की है, उससे राज्य को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। जेपी के सपनों को सभी ने रौंदा है, लेकिन उसे सबसे अधिक लालू ने रौंदा है। इस बारे में कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल का कहना है कि जब भी कोई गठबंधन होता है, तो उसमें कुछ न कुछ तो लगा ही रहता है। फिर भी कांग्रेस ने हर तरह से गठबंधन धर्म निबाहने की कोशिश की है। रही बात इस लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस के अच्छा करने की तो इस बार हम अवश्य बेहतर कर रहे हैं।