ठकुराइन टोला का शिव मंदिर: सदियों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का है केंद्र, खारून नदी के बीच निर्मित सांस्कृतिक धरोहर

सदियों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का है केंद्र, खारून नदी के बीच निर्मित सांस्कृतिक धरोहर
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रायपुर। ठकुराइन टोला का शिव मंदिर, खारून नदी और एक छोटी नदी के संगम पर स्थित, एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। निषाद समाज द्वारा निर्मित यह मंदिर, सदियों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है।

मंदिर निर्माण के पीछे की रोचक कहानी

इस मंदिर का निर्माण लगभग 1941 में एक निषाद दल के मुखिया ने शुरू करवाया था। यह मुखिया राजिम प्रवास के दौरान महानदी, सोंढूर और पैरी के संगम पर कुलेश्वर महादेव के मंदिर को देखकर प्रेरित हुआ और ठकुराइन टोला में भी खारून नदी के मध्य धारा में एक ऐसा ही भव्य मंदिर बनाने का संकल्प लिया। इस मंदिर का निर्माण निषाद समाज के प्रमुख लोगों ने आपसी सहयोग से बनवाया।

निर्माण कार्य में आई चुनौतियां

मंदिर के निर्माण में कई चरणों का पालन किया गया। सबसे पहले, नदी के बीच के पत्थरों को कुशल शिल्पकारों द्वारा वर्गाकार काटा गया। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, क्योंकि पत्थरों को नदी के बीच से निकालना और उन्हें उपयुक्त आकार देना एक जटिल प्रक्रिया थी। इसके बाद, जगती का निर्माण हुआ, जिस पर शिव मंदिर का निर्माण किया गया। इस प्रक्रिया में लगभग आधी शताब्दी का समय लगा और 1980 तक जगती का काम पूरा हो गया। शिव मंदिर का निर्माण उत्तराभिमुख दिशा में किया गया और गर्भगृह में शिवलिंग की पीठिका भी उत्तराभिमुख है, लेकिन जल-प्राणालिका दक्षिण में है। धमतरी के निकट ग्राम के शिल्पकार हरि राम द्वारा निर्मित शिवलिंग की भव्य प्रतिमा इस मंदिर में स्थापित है। मंदिर के निर्माण का कार्य सन् 1984 में पूर्ण हुआ था।

श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक

इस मंदिर का निर्माण न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बनाना था, बल्कि यह निषाद समाज की एकता और सहयोग का भी प्रतीक है। यह मंदिर केवल स्थानीय निवासियों के लिए नहीं बल्कि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया है।

मंदिर की विशेषताएं

इस मंदिर की कई विशेषताएं हैं, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं-

संगम स्थल: मंदिर का निर्माण खारून नदी और एक छोटी नदी के संगम पर किया गया है, जो इसे एक विशेष स्थान बनाता है।

उत्तराभिमुख: गर्भगृह में शिवलिंग की पीठिका भी उत्तराभिमुख है, पर जल-प्राणालिका दक्षिण में है।

नदी में स्नान: इस मंदिर के पास स्थित नदी में स्नान करना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है, खासकर शिवरात्रि के अवसर पर।

मेला और धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन

यहां शिवरात्रि पर एक बड़ा मेला लगता है, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस महोत्सव में लोग खारून नदी में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित करते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का केंद्र है, बल्कि स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को भी प्रदर्शित करती है।

हो रहा लक्ष्मण झूले का निर्माण

वर्तमान में, यहां लक्ष्मण झूला का निर्माण हो रहा है, जिससे मंदिर तक पहुंचने का एक नया और रोमांचक मार्ग बनेगा। नदी में पानी भरने के बाद, भक्तगण इस झूला के माध्यम से मंदिर तक आसानी से पहुंच सकेंगे, जिससे यहां पर्यटन की संभावनाएं और भी बढ़ जाएंगी। यह मंदिर न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षक गंतव्य है, जो इसे एक यादगार अनुभव बनाता है। यह स्थान अब एक धार्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था और संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।

इस पवित्र स्थल तक कैसे पहुंचे

यह मंदिर रायपुर से भाटागांव, दतरेंगा, परसदा से आगे खट्टी ग्राम तक लगभग 18-20 किलोमीटर की दूरी पर पाटन के नजदीक दुर्ग जिले में स्थित है। खट्टी ग्राम से खारून नदी तक जाने के लिए एक सीसी रोड मार्ग है। खारून नदी पर बने पुल को पार करने पर, खारून नदी और दक्षिण दिशा से बहकर आने वाली नदी के संगम के मध्य में, हमें बाईं ओर मंदिर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

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