भूटान के नरेश पहुंचे भारत, भूटानी पीएम ने पिछले हफ्ते डोकलाम पर दिया था विवादित बयान

भूटान के नरेश पहुंचे भारत, भूटानी पीएम ने पिछले हफ्ते डोकलाम पर दिया था विवादित बयान
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नईदिल्ली। भूटान के तीसरे नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक आज सोमवार को तीन दिवसीय दौरे पर भारत पहुंचे। विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने उनका स्वागत किया। वांगचुक कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपित द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात करेंगे।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट कर कहा, “भूटान नरेश का भारत में हार्दिक स्वागत है, नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक थोड़ी देर पहले भारत पहुंचे। विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने हवाई अड्डे पर उनकी अगवानी की।"

द्विपक्षीय साझेदारी को आगे बढ़ाने का अवसर


भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के साथ विदेश और विदेश व्यापार मंत्री ल्योंपो डॉ. टांडी दोरजी और भूटान की शाही सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी हैं।विदेश मंत्रालय के अनुसार भूटान नरेश की यात्रा दोनों देशों के बीच नियमित रूप से उच्च स्तरीय आदान-प्रदान की दीर्घकालीन परंपरा के अनुरूप है। भारत और भूटान के बीच मित्रता और सहयोग के अनूठे संबंध हैं। यह दोनों देशों की समझ और आपसी विश्वास की विशेषता है। यह यात्रा दोनों पक्षों को द्विपक्षीय सहयोग के सभी पहलुओं की समीक्षा करने और आर्थिक तथा विकास सहयोग सहित घनिष्ठ द्विपक्षीय साझेदारी को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करेगी।

भूटानी पीएम ने बढ़ाई चिंता -

वांगचुक का ये दौरा ऐसे समय में हुआ है जब पिछले सप्ताह भूटान के प्रधानमंत्री ने चीन के पक्ष में बयान दिया था। जिसके बाद भारत ने इस बयान के प्रति नाराजगी जताई थी।भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग ने बेल्जियम के एक अख़बार को दिए साक्षात्कार में कहा था कि डोकलाम विवाद का समाधान केवल भूटान के हाथ में नहीं है बल्कि चीन भी इसमें शामिल है और भूटान, भारत के साथ चीन भी सीमा मुद्दे में एक समान हितधारक है। शेरिंग ने सुझाव दिया कि भारत, भूटान और चीन तीनों देश मिलकर इस सीमा विवाद को सुलझाएं।

ये है चिंता का कारण -

भूटान के पीएम के इस बयान ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल, इसका कारण यह है कि भारत डोकलाम पर चीन के दावे को शुरू से खारिज करता आया है। भारत इस विवाद को भूटान और अपने बीच का मामला मानता है। बता दें कि डोकलाम पठार भारत, भूटान और चीन के एक त्रिकोण पर स्थित है। इसके पहाड़ी इलाके पर भूटान और चीन दोनों अपने-अपने दावे करते है। भारत यहां भूटान के दावे का समर्थन करता है। दरअसल ये इलाका भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर में आता है, जोकि भारत को उत्तरपूर्व से जोड़ता है। ऐसे में यह क्षेत्र भारत के लिए बेहद मह्त्वपूर्ण है। दिया था तब भारतीय सैनिकों ने इसका विरोध किया था जिसके बाद दोनों देशों के बीच लंबे समय तक गतिरोध की स्थिति रही थी।

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