सीमा पर चीन के आक्रामक रवैये से 1990 के दशक में लौट रहे द्विपक्षीय संबंध'
नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में अपनी आक्रामक सैन्य मुद्रा के जरिए 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर युद्ध जैसी स्थिति को पैदा करने की कोशिश करके चीन ने द्विपक्षीय संबंधों को 1990 के दशक में वापस पहुंचा दिया है। पीएलए के प्रमुख शी जिनपिंग ने 1993 के शांति समझौते को तोड़ दिया था। मोदी सरकार ने द्विपक्षीय संबंधों पर गंभीर परिणामों के साथ उन पर कूटनीतिक अल्टीमेटम दिया है। नरसिम्हा राव-जियांग जेमिन के समय में हस्ताक्षरित 1993 के समझौते से यह स्पष्ट हो गया था कि सैन्य बलों को एलएसी पर 'न्यूनतम स्तर' पर रखा जाना चाहिए।
गुरुवार को भारत ने बयान में यह कहा कि पिछले तीन दशकों में द्विपक्षीय संबंधों में हुआ विकास बर्बाद हो जाएगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत एलएसी पर सेना की सैन्य मुद्रा को संभालने में काफी सक्षम है लेकिन अगर पीएलए को पीछे नहीं हटाता है तो चीन के लिए यह आसान नहीं होने वाला। भले ही पिछले तीन दिनों में चीनी वायु सेना द्वारा कोई सैन्य उड़ान नहीं भरी हो, लेकिन पीएलए ने एलएसी पर तोपखाने और मिसाइल के साथ सभी सैनिकों को तैनात किया है।
बता दें कि बीते 15 जून की रात गलवान घाटी में चीनी और भारतीय सेना की झड़प में चीन के 40 से ज्यादा जवान या तो घायल हुए या मारे गए। वहीं भारत केे 20 जवान शहीद हुए। सैन्य सूत्रों ने जानकारी दी कि इससे पहले पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हिंसक झड़प वाले स्थान के पास भारत और चीन की सेनाओं के डिविजनल कमांडरों के बीच बैठक बेनतीजा रही। मेजर जनरल स्तरीय बातचीत में गलवान घाटी से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया को लागू करने पर चर्चा हुई। छह जून को दोनों पक्षों के बीच उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता में इसी पर सहमति बनी थी।
इस घटना के बाद से भारत ने 3,488 किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अपने विशेष युद्ध बलों को तैनात किया है, जो कि चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के पश्चिमी, मध्य या पूर्वी सेक्टरों में किसी भी प्रकार के हमले से जूझ सकते हैं। शीर्ष सरकारी सूत्रों ने पुष्टि की है कि भारतीय सेना को पीएलए द्वारा सीमा पार से किसी भी हरकत का आक्रामकता से एलएसी पर जवाब देने का निर्देश दिया है।v