रूस के कूटनीतिक मोर्चे पर पस्त हुआ चीन
नई दिल्ली। कोरोना जैसी भयाभय महामारी के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की रूस यात्रा के कई कूटनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी में खूनी संघर्ष से उपजे तनाव का हल निकालने के लिए तीन तरीके कारगर माने जा रहे थे। पहलाए सैन्य स्तर पर बातचीतए दूसरा कूटनीतिक और तीसरा संवेदनशील क्षेत्र पर भारत कब्जा करे फिर चीन को पीछे हटने का दबाव बनाए। पिछले दो दिनों में जो हालात बदले हैं उसमें राजनाथ सिंह की रूस यात्रा कूटनीतिक लिहाज से एक ब?ा कारक है जिसके कारण चीन अपने ब?े हुए कदमों को वापस खींचने पर मजबूर हुआ। रहा सवाल रूस का तो संकट के समय उसने दिखाया कि वह क्यों हमारा परंपरागत मित्र माना जाता हैघ् बदले हुए वैश्विक परिदृश्य में भले ही चीन और रूस एक.दूसरे के नजदीक आए हों पर चीन के लाख मना करने के बावजूद रूस ने भारत पर भरोसा जताते हुए एस.400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम को समय पर भारत को सौंपने का निर्णय किया।
चीन पहले तो वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे हटने को ही तैयार नहीं था लेकिन राजनाथ सिंह की रूस यात्रा ने पूरा परिदृश्य ही बदलकर रख दिया। चीन झुका जरूर है लेकिन अभी पूरी तरह नहीं। तभी सैटेलाइट की तस्वीरें एक बार फिर चर्चा में हैं। जिसे लेकर अभी भी स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा जा सकता है कि गलवान घाटी में क्या चल रहा हैघ् ये तस्वीर लद्दाख क्षेत्र को लेकर चीन का कुटिल रवैया जरूर बयां कर रही हैं। यानि एक ओर जहां वह सेना और अधिकारियों के साथ बातचीत का दिखावा कर रहा हैए उसी समय उनके सैनिक भारतीय क्षेत्र में वापस घुसपैठ की योजना बना रहे हैं।
चीन दुनिया का दूसरी सबसे ब?ी अर्थव्यवस्था एवं ब?ा निर्यातक देश है। हमारे और उनके बीच डिमार्केशन नहीं हुआ है। उनकी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर है। हमारी सेना वहां पर है। अगर चीन से हम अपने संबंधों की बात करें तो अमेरिकाए यूरोपीय संघ के तमाम देशोंए जर्मनीए अन्य देशों के मुकाबले यह बहुत कमजोर है।