आतंकवाद और अन्य जघन्य अपराधों में शामिल अपराधियों को जेल से बाहर जाने की मंजूरी नहीं : गृह मंत्रालय
नई दिल्ली। गृह मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि पैरोल और फरलो (छुट्टी) पर कैदियों की रिहाई उनका पूर्ण अधिकार नहीं है और यह अर्हता के सुपरिभाषित मानकों के आधार पर ही दिया जाना चाहिए। मंत्रालय ने इसके साथ ही राज्यों को निर्देश दिया कि आतंकवाद और अन्य जघन्य अपराधों में शामिल अपराधियों को जेल से बाहर जाने की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए।
सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजे अपने संदेश में गृह मंत्रालय ने यह भी कहा कि पैरोल और फरलो नियमित रूप से नहीं दिए जा सकते और इस पर अधिकारियों और व्यवहार विशेषज्ञों की एक समिति द्वारा प्रासंगिक तथ्यों को ध्यान में रखकर फैसला किया जा सकता है, खास तौर पर यौन अपराधों, हत्या, बच्चों के अपहरण और हिंसा जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में।
यह निर्देश देश के विभिन्न हिस्सों से उन खबरों के बाद दिया गया जिनमें कहा गया था कि कोरोना वायरस महामारी की वजह से जेल से रिहा किये गए कई कैदी फिर अपराध में लिप्त हो गए। पंजाब में एक लड़की द्वारा दो हथियारबंद झपटमारों से बहादुरी से लड़ने की हालिया घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। ये दोनों झपटमार हाल ही में जेल से छूटे थे। आदर्श कारागार नियमावली,2016 को उद्धृत करते हुए गृह मंत्रालय ने कहा कि ऐसे कैदी जिनकी समाज में तात्कालिक मौजूदगी को खतरनाक माना जाए या फिर जिलाधिकारी या पुलिस अधीक्षक द्वारा जिनके होने से शांति व कानून-व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका जाहिर की गई हो उनकी रिहाई पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।