राजभाषा हिन्दी का विकास स्थानीय भाषाओं की सखी के रूप में होना चाहिए : अमित शाह
नईदिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को संसदीय राजभाषा समिति की 36वीं बैठक की अध्यक्षता की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज हम सबके लिए बहुत ही हर्ष का विषय है कि हमने समिति के 10वें प्रतिवेदन को राष्ट्रपति महोदय के पास भेजने की मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिसमे राजभाषा हिन्दी का विकास सहज रूप से स्थानीय भाषाओं की सखी के रूप में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी स्थानीय भाषा और हिन्दी के बीच में स्पर्धा नहीं हो सकती क्योंकि ये दोनों सखियाँ या बहनें हैं, इस भाव के साथ अगर हम आगे बढ़ते हैं तभी हम इस कार्य को आगे बढ़ा पाएंगें।
शाह ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनेक अवसरों व विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी हिन्दी में बोलकर हमारी राजभाषा का सम्मान किया है। उन्होंने कहा कि मोदी के नेतृत्व में तकनीकी शिक्षा और औषधीय शिक्षा का भी संपूर्ण अभ्यासक्रम राजभाषा में भाषांतरण कराने का काम शुरू किया है और देश के अंदर यह परिवर्तन आने वाला है। उन्होंने आगे कहा कि हम आज़ादी के 75 वें साल में प्रवेश कर रहे हैं, इन 75 साल में हमने लोकतंत्र की जड़ों को गाँव और कस्बों तक पहुंचाया है और लोकतंत्र को हमारा स्वभाव बनाया है।
लोकतंत्र की जड़ें गहरी और मज़बूत -
शाह ने कहा कि आजादी के 75 वर्ष होने पर हिंदी सम्मेलनों में आजादी के आंदोलन में राजभाषा हिंदी की भूमिका यह थीम होना चाहिए। आज़ादी के बाद बहुत सारे सत्ता परिवर्तन हुए वो भी बिना रक्तपात के, इससे पता चलता है कि दिन प्रतिदिन हमारे लोकतंत्र की जड़ें गहरी और मज़बूत होती जा रही हैं तथा लोकतंत्र का वटवृक्ष काफी विशाल होता जा रहा है। आज़ादी की लड़ाई में हमारी स्थानीय भाषाओं और विशेषरूप से राजभाषा हिन्दी का सबसे बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने भाषाओं को जो महत्व दिया और अँग्रेजी का यहाँ आधिपत्य न हो जाये उसकी सजगता दिखाई इसी कारण आज हमारी सभी भारतीय भाषाएँ समृद्ध हैं।
स्थानीय भाषाओं की सखी -
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि आज़ादी के बाद जितनी बोलियाँ थी उनको भी हमने संरक्षित और संवर्धित रखा है और जितनी भाषाएँ थीं उनको भी बचा कर रखा है, साथ ही जितनी लिपियाँ थीं वे भी देवनागरी के तत्वाधान में आगे बढ़ रही हैं। स्थानीय भाषाओं और राजभाषा ने देश को एक करने का काम किया है, इसी वजह से राजभाषा समिति संसद की सबसे महत्वपूर्ण समिति है। हमें एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिसमे राजभाषा हिन्दी का विकास सहज रूप से स्थानीय भाषाओं की सखी के रूप में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी स्थानीय भाषा और हिन्दी के बीच में स्पर्धा नहीं हो सकती क्योंकि ये दोनों सखियाँ या बहनें हैं, इस भाव के साथ अगर हम आगे बढ़ते हैं तभी हम इस कार्य को आगे बढ़ा पाएंगें।
इतिहास से बढ़ेगा दायरा -
शाह ने कहा कि इतिहास पढ़ने वाले बच्चों के लिए अगर राजभाषा में देश के हर कोने का इतिहास उपलब्ध हो जाएगा, कश्मीर से कन्याकुमारी तक का इतिहास, तो अपने आप राजभाषा का दायरा बढ़ेगा। हमारी भाषाओं के बीच साम्यता है, एक ना दिखाई देने वाला संवाद भी है और इसकी अनुभूति करने पर ही इसके बारे में जाना जा सकता है। हर भारतीय भाषा के ढेर सारे शब्द किसी दूसरी भाषा के साथ जुड़े हैं, व्याकरण का मूल भी एक ही है।