आतंकी संगठन जैश और लश्कर के एजेंडे में है मिशन काबुल
दिल्ली। जम्मू कश्मीर में वर्षों से सक्रिय आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद अब रावलपिंडी सैन्य मुख्यालय के इशारे पर अपने गुर्गों को तेजी के साथ एकजुट कर उन्हें ट्रेनिंग देकर अफगानिस्तान में लड़ने के लिए भेज रहा रहा है। पूरे मामले से वाकिफ सूत्र ने गुरूवार को इस नए डेवलपमेंट के बारे में बताया।
ऐसा अनुमान है कि संघर्षरत देश अफगानिस्तान में दोनों आतंकी संगठनों के करीब 1 हजार आतंकी गुर्गे वहां पर पहुंच चुके हैं, जिनमें से ज्यादातर तालीबान और अमेरिका के बीच फरवरी में हुए समझौते के बाद वहां पर गए हैं और इन आतंकियों के वहां पर पहुंचने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
सिर्फ पिछले महीने ही करीब 200 लश्कर के आतंकी पाकिस्तान के बाजौर एजेंसी के जरिए अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में घुसपैठ की है। मई के आखिरी हफ्ते में पूर्व आईएसआई ऑफिसर बिलाल उर्फ जरकावी के नेतृत्व में लश्कर-ए-तैयबा के करीब 30 आतंकी कुनार के डंगम जिले में दाखिल हुए हैं।
करीब 15 दिन पहले, तालिबान कमांडर मुल्लाह नेक मोहम्मद राभर के संरक्षण में जैश के 45 आतंकी पाकितान के कुर्रम एजेंसी के जरिए नांगरहार शेरजाद प्रांत में दाखिल हुए थे। पूर्व आईएसआई ऑफिसर बिलाल उर्प जरकावी, जिसके नेतृत्व में लश्कर के 30 आतंकी अफगानिस्तान में दाखिल हुए वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुजफ्फराबाद में एक प्रमुख आतंकी केन्द्र का इंचार्ज रहा है।
आतंक निरोधी अधिकारियों ने दिल्ली और काबुल में बताया कि इन दोनों आतंकी संगठनों की तरफ से अफगानिस्तान पर इस तरह का फोकस और आतंकी गुर्गों को वहां पर भेजना यह दिखाता है कि यह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की किस तरह प्राथमिकताओं में से है।
एक अधिकारी ने बताया कि इस वक्त आईएसआई का जोर इस बात पर है कि अगर तालीबान-अमेरिका शांति वार्ता से राजनीतिक स्थिरता आती है ऐसी स्थिति में आतंकी गतिविधियों को जारी रखने के लिए ये तैयारी की जा रही है। अधिकारी ने बताया कि कश्मीर से लेकर अफगानिस्तान तक पाकिस्तान ने आतंकियों को अपना ढाल बनाया है ताकि जो काम वे कूटनीति के जरिए नहीं कर पाए उस लक्ष्य को इस तरह से हासिल किया जा सके। यह इस बात का एक अन्य उदाहरण है।