करगिल घुसपैठ से अपने को तीस मार खां साबित करना चाहता था मुशर्रफ, लेकिन भारतीय जवानों ने चटा दी थी धूल
नई दिल्ली। भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने कहा कि पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने करगिल घुुुुसपैठ का षड्यंत्र अपने आप को बहादुर सिद्ध करने के लिए रचा था,लेकिन भारतीय सैनिकों के मुंहतोड़ जवाब ने उसके सारे सपने चकनाचूर कर दिये थे।
श्रीनगर स्थित सेना की 15वीं कोर के कमांडर रह चुके लेफ्टिनेंट जनरल हसनैन रविवार को जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में 'करगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ' के अवसर पर आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में भारत से गए मुस्लिमों को मुहाजिर कहा जाता है। उन्हें पाकिस्तानी सेना हीन और बुजदिल समझती है। पुरानी दिल्ली से पाकिस्तान गया जनरल मुशर्रफ फौज में अपने को बहादुर और तीस मार खां सिद्ध करना चाहता था। 15 वर्ष पहले भी वो एक बार मुंह की खा चुका था। भारतीय सैनिकों ने 1984 में सियाचिन में उसको धूल चटाई थी। वो भारत से इसका बदला लेना चाहता था।
उसने अपने को बहादुर सिद्ध करने के लिए करगिल का षड्यंत्र रचा था। इस षड्यंत्र के बारे में उसने अपने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को भी नहीं बताया था। सिर्फ यही कहा था कि काश्मीर जल्दी ही हमारे पास आने वाला है।
उन्होंने कहा कि सर्दी के मौसम में करगिल से दोनों ओर की फौजें पीछे हट जाती थीं। मई में फिर अपने-अपने मोर्चे पर तैनात हो जाती थीं। यह दोनों तरफ की सेना के लिए एक मानक था, लेकिन पाकिस्तानियों ने इस मानक को तोड़ दिया। वो सर्दियों में चुपचाप आकर बैठ गये। ऐसा युद्ध आसान नहीं था, लेकिन हमारे वीर सैनिकों ने असम्भव को संभव कर दिखाया। दुश्मन हमारे बेस कैम्प से 7000 फ़ीट ऊंची पहाड़ी चोटियों पर बैठा था। हमारा हाई-वे सीधे उसकी फायर रेंज में था। वो हमारी लद्दाख की सप्लाई चेन को बंद करना चाहता था।
लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) हसनैन ने बताया कि मुशर्रफ चाहता था कि भारतीय फौज सियाचिन से पीछे हटे ताकि कश्मीर में खून खराबा कर रहे आतंकियों का मनोबल बढ़े, लेकिन भारतीय फौज की बहादुरी ने उसके सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया। हमारी वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर चलाया। मिग-27, जगुआर की सटीक बमबारी से दुश्मन पक्ष दहल गया। नीचे से बोफोर्स तोपें चोटियों पर बैठे दुश्मनों पर गोलियां बरसा रही थीं। आमने-सामने की लड़ाई में हमारे सैनिक दुश्मनों का सीना चीर रहे थे। इस युद्ध में हमारे 26 अधिकारी और 501 सैनिक वीर गति को प्राप्त हुए थे। जबकि पाकिस्तान के 7000 से अधिक सैनिक मारे गए थे।
जम्मू-काश्मीर अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष पद्मश्री जवाहर लाल कौल और निदेशक आशुतोष भटनागर ने लेफ्टिनेंट जनरल हसनैन का आभार व्यक्त किया।