देश में अब बर्बाद नहीं होगी ऑक्सीजन, वैज्ञानिकों ने तैयार की राशनिंग डिवाइस एमलेक्स

देश में अब बर्बाद नहीं होगी ऑक्सीजन, वैज्ञानिकों ने तैयार की राशनिंग डिवाइस एमलेक्स
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नईदिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मेडिकल ऑक्सीजन की मांग कई गुना बढ़ गई है। संभावित तीसरी लहर का मुकाबला करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रोपड़ ने अपनी तरह की पहली ऑक्सीजन राशनिंग डिवाइस-एमलेक्स विकसित की है। यह डिवाइस ऑक्सीजन की अवांछित बर्बादी को रोकने में सहायता करेगी। इससे ऑक्सीजन सिलेंडर तीन गुना अधिक चलेगा।

ऑक्सीजन राशनिंग डिवाइस-एमलेक्स सांस लेने तथा रोगी द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने के दौरान रोगी को ऑक्सीजन की आवश्यक मात्रा की आपूर्ति करती है। यह प्रक्रिया ऑक्सीजन की बचत करती है। अभी तक, सांस छोड़ने के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर व पाइप में रहा ऑक्सीजन भी उपयोगकर्ता द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़े जाते समय बाहर निकल जाती है। इससे बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का नुकसान होता है। इसके अलावा मास्क में जीवन रक्षक गैस के लगातार प्रवाह के कारण रेस्टिंग पीरियड (सांस लेने और छोड़ने के बीच) में मास्क की ओपनिंग्स से बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन वातावरण में चली जाती है।

पीएचडी छात्रों ने तैयार की -

आईआईटी, रोपड़ के निदेशक प्रोफेसर राजीव आहुजा ने कहा, "यह डिवाइस पोर्टेबल पावर सप्लाई (बैट्री) तथा लाइन सप्लाई (220 वाट-50 हर्ट्ज) दोनों पर ऑपरेट कर सकती है।" इसे संस्थान के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के पीएचडी छात्रों-मोहित कुमार, रविंदर कुमार और अमनप्रीत चंद्र ने बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर आशीष साहनी के दिशानिर्देश में विकसित किया है।

सेंसर का उपयोग -

डॉ. साहनी ने कहा, "विशेष रूप से ऑक्सीजन सिलेंडरों के लिए बनाए जा रहे एमलेक्स को ऑक्सीजन सप्लाई लाइन तथा रोगी द्वारा पहने गए मास्क के बीच आसानी से कनेक्ट किया जा सकता है। यह एक सेंसर का उपयोग करता है जो किसी भी पर्यावरणगत स्थिति में उपयोगकर्ता द्वारा सांस लेने और छोड़ने को महसूस करता है और सफलतापूर्वक उसका पता लगाता है।" उपयोग के लिए तैयार यह डिवाइस किसी भी वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध ऑक्सीजन थिरेपी मास्क के साथ काम करती है जिसमें वायु प्रवाह के लिए मल्टीपल ओपनिंग्स हों।

प्रो. राजीव अरोड़ा ने कहा कि कोविड-19 से मुकाबला करने के लिए देश को अब त्वरित लेकिन सुरक्षित समाधानों की आवश्यकता है। चूंकि यह वायरस फेफड़ों और बाद में मरीज की श्वसन प्रणाली को प्रभावित कर रहा है, संस्थान की मंशा इस डिवाइस को पेटेंट कराने की नहीं है।

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