जनसंख्या असंतुलन देश के लिए खतरा

जनसंख्या असंतुलन देश के लिए खतरा
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घुसपैठिओं को नागरिकता अधिकार से वंचित किया जाय
विजयादशमी उत्सव पर प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का सम्बोधन

नागपुर/वेब डेस्क। प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने सीमावर्ती क्षेत्रों में हो रही विदेशी घुसपैठ के चलते जनसंख्या अनुपात में बढते असंतुलन पर चिंता जाहिर की है। सरसंघचालक ने कहा कि, जनसंख्या का धार्मिक असंतुलन देश के लिए गंभीर संकट का करण बन सकता है। प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत विजयादशमी के अवसर पर नागपुर के रेशिमबाग स्थित डॉ. हेडगेवार स्मृति मंदिर परिसर में उपस्थित चुनिंदा स्वयंसेवकों तथा आभासी रूप से जुडे करोड़ों लोगों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि, वर्ष 2011 में हुई जनगणना के विश्लेषण में जनसंख्या परिवर्तन की जानकारी सामने आई है।


सीमावर्ती इलाको में हो रही विदेशी घुसपैठ और देश मे चल रहे धर्म परिवर्तन की वजह से जनसंख्या असंतुलन बढा है। यह असंतुलन देश की एकता, अखंडता एवं सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है। विभिन्न धर्मो के लोगों के प्रजनन दरों में भी हमें भिन्नता नजर आती है। वर्ष 1951 और 2011 की जनगणना के आकड़ों में काफी बदलाव नजर आते हैं। भारत में पहले हिंदू 88 से घटकर 83.8 प्रतिशत हो गए। वहीं मुस्लिम जनसंख्या 9.8 से बढकर 14.23 प्रतिशत तक बढ गई है। इसी के साथ धर्म परिवर्तन के चलते ईसाइयों की जनसंख्या में भी बहुत इजाफा हुआ है। सरसंघचालक ने कहा कि, असम, पश्चिम बंगाल एवं बिहार के सीमावर्ती जिलों में तो मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, जो स्पष्ट रूप से बंगलादेश से अनवरत घुसपैठ का संकेत देता है।

परिवर्तन की अपेक्षाएं

इस अवसर पर प. पू. सरसंघचालक ने 2015 में जारी संघ के प्रतिवेदन में दर्ज मांगो से अवगत कराया। प्रतिवेदन में जनसंख्या असंतुलन पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से आग्रह किया गया है कि, देश में उपलब्ध संसाधनों, भविष्य की आवश्यकताओं एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए देश की जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण कर उसे सब पर समान रूप से लागू किया जाए। सीमा पार से हो रही घुसपैठ पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाया जाए । राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (एनआरसी) का निर्माण कर इन घुसपैठियों को नागरिकता के अधिकारों से तथा भूमि खरीद के अधिकार से वंचित किया जाए। प्रतिवेदन में कहा गया है कि अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल सभी स्वयंसेवकों सहित देशवासियों का आह्वान करता है कि वे अपना राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर जनसंख्या में असंतुलन उत्पन्न कर रहे सभी कारणों की पहचान करते हुए जन-जागरण द्वारा देश को जनसांख्यिकीय असंतुलन से बचाने के सभी विधि सम्मत प्रयास करें। विजयादशमी के अवसर पर प. पू. सरसंघचालक डॉ. भागवत ने 2015 के प्रतिवेदन की प्रासंगिकता और मांगों की प्रतिपूर्ति को जरूरी बताया।

भारत के पास तीसरा रास्ता

इस अवसर पर प. पू. सरसंघचालक ने कहा कि, दुनिया में प्रचलित पूंजीवाद और कम्युनिजम, यह दोनों अर्थ चिंतन मौजूदा समय में नई समस्याओं का सामना कर रहे हैं । इन चिंतनों से उपजी समस्याओं का समाधान अन्य देशों के पास नहीं है । डॉ. भागवत ने बताया कि, यांत्रिकीकरण से बढती बेरोजगारी, नीति रहित तकनीकी के कारण घटती मानवीयता एवं उत्तरदायित्व के बिना प्राप्त सामर्थ्य उनके कुछ उदाहरण हैं । संघ प्रमुख ने कहा कि समस्याओं से जूझते दोनों अर्थ चिंतनो के अलावा भारत के पास तीसरा विकल्प मौजूद है। साथ ही उन्होंने विश्वास जताया कि भारत का यह तीसरा रास्ता दुनिया के लिए पथ दर्शक साबित होगा।

परिवार रखें संस्कारों की नींव

समाज और देश में बढ़ती नशे कि आदतें और ड्रग्ज के फैलते कारोबार पर प. पू. सरसंघचालक ने कहा कि, इन चीजों से देश की युवा पीढ़ी का स्वास्थ्य ध्वस्त होता है। साथ ही इस कारोबार के करोड़ों रुपये देश के दुश्मनों की जेब में जाते हैं। नशे की आदत से बचने के लिए युवाओं का मन संस्कारित होना आवश्यक है। सरसंघचालक भागवत के मुताबिक, नशा, ड्रग्ज, ओटीटी प्लैटफॉर्म पर मौजूद कंटेंट से युवाओं को बचाना हो तो उन्हें अच्छे-बुरे का ज्ञान होना बेहद जरूरी है। नतीजतन परिवार में अच्छे संस्कारों की नींव रखना बेहद जरूरी है।

संघटित रहें, समर्थ बनें

इस अवसर पर प. पू. सरसंघचालक ने आह्वान किया कि, हिंदू समाज में फैली सामाजिक विषमता नष्ट होनी चाहिए। छुआछूत जैसी दकियानूसी बातों को मन से निकाल कर समाज के अगड़े और पिछड़ों में पारिवारिक संबंध प्रस्थापित होने चाहिए। बतौर डॉ. भागवत, संघ सामाजिक समानता के लिए काफी समय से प्रयासरत है और उसके बेहतर नतीजे दिखाई दे रहे हैं। वहीं संघ प्रमुख ने कहा कि, भारत की तरक्की को रोकने के लिए कई शक्तियां हमारे देश में अलग-अलग षडयंत्र रच कर हमें उलझाए रखना चाहती हैं। ऐसी साजिशों से सावधान रहने की जरूरत है। हिंदू किसी पर अधिकार प्रस्थापित करने के लिए नहीं लड़ते। लेकिन आत्मसम्मान और आत्मरक्षा के लिए हिंदुओ को शक्ति संपन्न होना चाहिए।

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