राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव में की नई पीढ़ी को संस्कृति से जोड़ने की अपील
- राष्ट्रपति का ढोल और नगाड़ों के साथ स्टेडियम में स्वागत किया गया
बीकानेर/वेब डेस्क। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को बीकानेर के डॉ. करनी सिंह स्टेडियम में राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव का उद्घाटन किया। उन्होंने देश के सात सांस्कृतिक जोन के डोम में निरीक्षण किया। इसके बाद राष्ट्रपति ने दीप प्रज्वलित कर आयोजन की शुरुआत की। राष्ट्रपति ने 'राम राम सा' कहते हुए संबोधन की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि देश की कला व संस्कृति का प्रचार नई तकनीक से करना चाहिए। उन्होंने नई पीढ़ी को हमारी संस्कृति से जोड़ने की अपील की।
बीकानेर पहुंचने पर राज्यपाल कलराज मिश्र, केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल और राजस्थान के शिक्षा मंत्री डॉ बी डी कल्ला ने राष्ट्रपति का स्टेशन पर स्वागत किया। इससे पहले डॉ. करनी सिंह स्टेडियम में राष्ट्रपति का ढोल और नगाड़ों के साथ स्टेडियम में स्वागत किया गया। राज्यपाल कलराज मिश्र ने राष्ट्रपति की अगवानी की। इस मौके पर उन्होंने क्राफ्ट आंगन एवं कुजिन एरिया का दौरा भी किया। उनका देशनोक जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है। द्रौपदी मुर्मू आम हवाई अड्डे से नहीं, बल्कि एयरफोर्स की विशेष हवाई पट्टी पर पहुंची।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज इस 14वें राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में आकर और कला तथा संस्कृति के इस राष्ट्रीय उत्सव का उद्घाटन कर मुझे बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। मुझे बताया गया है कि यह उत्सव देश के विभिन्न राज्यों में आयोजित किया जा चुका है और पहली बार इसका आयोजन राजस्थान में हो रहा है। हममें से बहुत से लोग बीकानेर को बीकानेरी खाद्य पदार्थों के कारण जानते होंगे, लेकिन इतिहास में बीकानेर के महल और किले महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उसके अलावा बीकानेर कैमल्स से जुड़े नृत्यों और त्योहारों के लिए भी जाना जाता है। राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव देश के अलग-अलग राज्यों से आए कलाकारों को अपनी प्रतिभाएं सबके सामने प्रस्तुत करने का सुअवसर प्रदान कर रहा है।
उन्होंने कहा कि अभी पिछले सप्ताह ही मुझे संगीत नाटक अकादमी अवार्ड्स में देश के वरिष्ठ कलाकारों और कलाविदों से मिलने का अवसर मिला। कला क्षेत्र के प्रतिभावान और महान विभूतियों को देखकर मन में नई ऊर्जा का संचार होता है। राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव जैसे कार्यक्रम देश की कला और संस्कृति को तो बढ़ावा देते ही हैं, साथ ही साथ राष्ट्रीय एकता की भावना को भी और मजबूत बनाते हैं।
उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही हमारी कला शैली उच्च स्तर की रही है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय से ही नृत्य, संगीत, चित्रकारी, वास्तुकला जैसी अनेक कलाएं भारत में विकसित थीं। भारतीय संस्कृति में अध्यात्म की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सृष्टि की प्रत्येक रचना कला का अद्भुत उदाहरण है। नदी की लहर का मधुर संगीत हो या मयूर का मनमोहक नृत्य, कोयल का गीत हो, मां की लोरी या नन्हे से बच्चे की बाल-लीला हो, हमारे चारों ओर कला की सुगंध फैली हुई है।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्रौद्योगिकी का परम्पराओं से और विज्ञान का कला से मेल होना जरूरी है। आज का युग प्रौद्योगिकी का युग है। हर क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सहायता से नए-नए प्रयोग किये जा रहे हैं। कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी टेक्नोलॉजी को अपनाया जा रहा है। इन्टरनेट के माध्यम से नए और युवा कलाकारों की प्रतिभा भी देश के कोने-कोने तक फैल रही है। हम नयी टेक्नोलॉजी का उपयोग करके देश की कला, परम्पराओं और संस्कृति का प्रसार व्यापक रूप से कर सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हम जानते हैं कि परिवर्तन जीवन का नियम है। कलाओं, परम्पराओं और संस्कृति में भी समय के साथ परिवर्तन आता ही है। कला शैली, रहन-सहन का ढंग, वेश-भूषा, खान-पान सब में समय के साथ बदलाव आना स्वाभाविक है लेकिन कुछ बुनियादी मूल्य और सिद्धांत पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलते रहने चाहिए, तभी भारतीयता को हम जीवित रख सकते हैं। 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना, शांति और अहिंसा, प्रकृति से प्रेम, सब जीवों के लिए दया, दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ना- ऐसे अनेक मूल्य हैं जो हम सब देशवासियों को एक सूत्र में बांधते हैं। आज भारत विश्व भर में अपनी नई पहचान बना चुका है जिसमें आधुनिक सोच को अपनाने के साथ-साथ परंपराओं और संस्कृति को सहेजने की क्षमता है।