सोनिया ने कहा - केंद्र के फैसलों ने ही पहले से 'आत्मनिर्भर' मजदूरों को बनाया बेबस
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नई दिल्ली। केंद्र सरकार के आर्थिक राहत पैकेज में भी सीधे तौर पर प्रवासी मजदूरों के पल्ले कुछ नहीं आने पर कांग्रेस ने मोदी सरकार को निशाने पर लिया है। विपक्षी पार्टी के नेताओं का कहना है कि सिर्फ बड़ी-बड़ी बातों से जरूरतमंदों को लाभ नहीं पहुंचाया जा सकता। इसके लिए जरूरी है कि हकीकत की जमीन पर फौरी राहत लोगों तक पहुंचाई जाए।
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुरुवार को गरीब मजदूरों की समस्याओं का समाधान नहीं होने पर मोदी सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा कि हर गरीब की भूख को मिटाने के लिए प्रधानमंत्री के पास सिर्फ 'आत्मनिर्भर' शब्द है। उन्होंने पूछा कि क्या प्रधानमंत्री जी 'आत्मनिर्भर' का अर्थ समझते हैं? क्योंकि आपके फैसलों ने ही पहले से आत्मनिर्भर मजदूरों को बेबस और लाचार बना दिया है। आपके फैसलों का ही नतीजा है कि लोग अपने घरों की ओर भूखे-प्यासे पैदल ही निकल पड़े हैं। शायद इन मजबूर लोगों को भी पता चल गया है कि गरीबों की पुकार सुनने के बजाय केंद्र सरकार सिर्फ घोषणाएं करना जानती है।
पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों की मदद के लिए कांग्रेस पार्टी हमेशा उनके साथ खड़ी है। राहुल ने ट्वीट कर कहा, 'अंधकार घना है कठिन घड़ी है, हिम्मत रखिए- हम सभी मजदूरों की सुरक्षा में खड़े हैं। सरकार तक इनकी चीखें पहुंचा कर रहेंगे। इन्हें इनका हक दिला के रहेंगे।' उन्होंने कहा कि ये श्रमिक देश की साधारण जनता मात्र नहीं बल्कि देश के स्वाभिमान का ध्वज हैं, कांग्रेस पार्टी इसे कभी झुकने नहीं देगी।
इस दौरान राहुल ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो भी शेयर किया, जिसमें प्रवासी श्रमिकों को पैदल चलते और भूख से परेशान होते दिखाया गया है और सरकार से मदद की अपील करते गीत को फिल्माया गया है। गीत के बोल हैं- "मजदूरों को गांव हमारे भेज दो सरकार, सूना पड़ा घर द्वार... मजबूरी में हम सब मजदूरी करते हैं, घर बार छोड़ करके शहरों में भटकते हैं.. जो लेकर आए हमको, वहीं छोड़ गए मझधार... कुछ तो करो सरकार.."
उल्लेखनीय है कि पीएम केयर्स फंड से प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए एक हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इसी घोषणा के बाद कांग्रेस ने सरकार को घेरते हुए कहा कि यह मदद राज्यों के लिए है कि वो मजदूरों को उनके घर पहुंचा सकें। लेकिन असल सवाल यह है कि अपने गांव पहुंचने पर ये मजदूर क्या करेंगे। जब उनके पास रोजगार नहीं होगा, तो वे परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगे।