कच्चे तेल का भारत करेगा भंडारण, जानें क्या है रणनीति
नई दिल्ली। कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में आई गिरावट का फायदा उठाते हुए भारत ने जमीन के नीचे अपने तेल भंडारों को भरने की तैयारी शुरू की है। इसके लिए सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इराक से कच्चे तेल की खरीद की जाएगी। मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि भारत के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान पिछले दिनों इन देशों के अपने समकक्ष लोगों से बातचीत कर चुके हैं।
भारत ने कर्नाटक के मंगलुरू और पादुर और आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में 53.33 लाख टन का आपातकालीन भूमिगत भंडार तैयार किया है। यह भारत की 10 दिन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। अभी मंगलुरू और पादुर के भंडार आधे खाली हैं, जबकि विशाखापत्तनम वाले भंडार में भी कुछ जगह रिक्त है। अबुधाबी नेशनल ऑयल कंपनी ने मंगलुरू की 15 लाख टन भंडारण क्षमता में आधी हिस्सेदारी खरीदी थी।
भारत ने पोदूर और उड़ीसा के चांदीखोल में 65 लाख टन क्षमता का दूसरा रणनीतिक तेल भंडार बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके तैयार हो जाने पर भारत के पास अतिरिक्त 11.5 दिन के खपत के बराबर तेल भंडार हो जाएगा।
भारतीय तेल कंपनियां रिफाइनरी के लिए अपना अलग भंडार रखती हैं। इनकी कुल भंडार क्षमता देश के 65 दिन के तेल खपत के लिए पर्याप्त है। हालांकि, इनकी गिनती रणनीतिक तेल भंडार के रूप में नहीं होती है। यह वजह है कि भारत रणनीतिक भंडार बना रहा है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के मानकों के मुताबिक उसके सदस्य देशों के पास तीन माह की खपत के बराबर भंडार होना चाहिए। उसका कहना है कि भारत का मौजूदा रणनीतिक भंडार केवल 10 दिन के बराबर का है जो पर्याप्त नहीं है।
मंगलुरु, विजग और पोदूर में .15 करोड़ बैरल के रणनीतिक भंडार के लिए करीब 2700 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इसमें 700 करोड़ रुपये वित्त मंत्रालय देने को राजी हो चुकी है। जबकि बाकी राशि फिलहाल तेल कंपनियां लगाएंगी, जिन्हें बाद में भुगतान किया जाएगा।
आपात स्थिति में तेल की उपलब्धता के लिए सभी देश अपना भंडार रखते हैं। युद्ध या किसी अन्य आपात स्थिति में तेल देने वाले देश बेचने से मना कर दें या उसमें रुकावट आ जाए तो यह भंडार काम आता है। भारत ने यूएई और सऊदी अरब के साथ मिलकर रणनीतिक भंडार बनाया है।