अब से चेक बाउंस होने पर नहीं होगी जेल, ये 19 मामले नहीं माने जाएंगे अपराध
दिल्ली। केंद्र सरकार कुछ आर्थिक अपराधों को कम गंभीर अपराध की कैटेगरी में रखने पर विचार कर रही है। जिससे उद्योग एवं व्यवसाय जगत को संकट की इस घड़ी से उभारा जा सके। यही नहीं, कुछ और कानूनी उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से हटाकर राहत पहुंचाने का प्रस्ताव किया है। इनमें चेक बाउंस होने की स्थिति में जेल की सजा का प्रावधान भी शामिल है। सरकार का कहना है 'इज ऑफ डुइंग बिजनेस' को और बेहतर बनाने और अदालतों पर मुकदमों का बोझ कम करने के लिए सरकार अब ऐसे आर्थिक अपराधों की सजा के तौर लोगों को जेल में डालने के नियम हटा सकती है। इन अपराधों पर अब सिर्फ आर्थिक दंड लग सकता है।
हम आपको बता दें कि चेक बाउंस होने पर दो साल तक की जेल की सजा और चेक के वैल्यू की दोगुनी राशि तक जुर्माने का प्रावधान है। यह सजा निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत प्रावधानों के उल्लंघन पर तय की गई है। वित्तीय सेवा मंत्रालय ने 19 कानूनों के ऐसे 39 सेक्शन को हटाने पर लोगों से राय मांगी है, जिनका वास्ता कम गंभीर आर्थिक अपराधों से है। ये सेक्शन इसके प्रशासनिक क्षेत्र के भाग हैं, जैसे कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम, बीमा अधिनियम और परक्राम्य लिखत अधिनियम। डीएफएस ने इस प्रस्तावित कदम के पीछे तर्क देते हुए एक बयान में कहा कि प्रोसीजरल खामियों और मामूली गैर-अनुपालन को अपराध की कैटेगरी में रखने से व्यवसायों पर बोझ बढ़ जाता है। ऐसे में आवश्यक है कि उन प्रावधानों पर फिर से विचार करना चाहिए जो केवल प्रकृति में प्रक्रियात्मक हैं और बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक हित को प्रभावित नहीं करते हैं।
इसमें यह भी कहा गया है कि यह सरकार के 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के उद्देश्य को हासिल करने में भी उल्लेखनीय कदम होगा। मंत्रालय ने कहा है कि विभिन्न पक्षों से मिलने वाले सुझावों के आधार पर ही वित्तीय सेवा विभाग इस बारे में आगे निर्णय लेगा कि किस कानून के प्रावधान को अपराधिक श्रेणी में रहना देना चाहिये और किस कानून को कारोबार सुगमता बढ़ाये रखने के वास्ते उचित ढिंग से सुधार किया जाना चाहिये।
कानून के तहत विभिन्न नियमों के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी से हटाने के मामले में कुछ और कानून भी सुझाव और टिप्पणी के लिये पेश किए गए हैं। इनमें बीमा कानून, नाबार्ड कानून, राज्य वित्तीय निगम अधिनियम, क्रेडिट इन्फार्मेशन कंपनीज (नियमन) कानून और फैक्टरिंग नियमन कानून को भी शामिल किया गया है।
इसके साथ ही एक्चुअरीज एक्ट, जनरल इंश्योरेंस बिजनेस (राष्ट्रीयकरण) कानून, गैर-नियमन वाली जमा योजनाओं पर रोक लगाने संबंधी कानून, दि डीआईसीजीसी एक्ट और दि प्राइज चिट्स एण्ड मनी सकुर्लेशन स्कीम (बैनिंग) एक्ट भी इन कानूनों में शामिल किए गए हैं। इन कानूनों के तहत कई नियम ऐसे हैं, जिनमें छोटी आम प्रकृति के उल्लंघनों को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है। बहरहाल, सरकार इन सभी नियमों के उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बारे में संबंधी पक्षों से उनकी राय और सुझाव लेगी उन पर गौर करेगी और उसके बाद आगे का कदम उठाएगी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने प्रधानमंत्री के 21 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की अलग अलग किस्तों में घोषणा करते हुये पांचवीं और अंतिम किस्त की घोषणा करते हुये कहा था कि मामूली तकनीकी किस्म के कानूनी उल्लंघनों अथवा प्रक्रियागत उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से हटाया जाएगा ताकि कारोबारी और उद्यमियों के लिये व्यवसाय सुगमता को और बढ़ाया जा सकेगा।
सरकार इससे पहले कंपनी कानून के तहत भी इस तरह के कदम उठा चुकी है। कंपनी कानून के तहत भी कई उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है। वित्तीय सेवाओं के विभाग ने भी अब इसी तरह का कदम उठाते हुये विभिन्न कानूनों के तहत होने वाले मामूली किस्म के उल्लंघनों को आपराधिक उल्लंघन की श्रेणी से हटाने के लिये सूची तैयार की है।